जनसंख्या वृद्धि(परिवर्तन) दो तरह से होता है। पहला धनात्मक वृद्धि और दूसरा ऋणात्मक वृद्धि, धनात्मक वृद्धि और ऋणात्मक वृद्धि के दो दो प्रभाव होते है। जिसे सकारात्मक(लाभ) और नकारात्मक(हानि) प्रभाव के रूप में व्यक्त किया जाता है। यहां पर दोनों जनसंख्या वृद्धि धनात्मक और ऋणात्मक के दोनों प्रभवो को बारी-बारी से व्याख्या किया जा रहा है। पहले जनसंख्या के धनात्मक वृद्धि के दोनों प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक का व्याख्या की गई है उसके बाद जनसंख्या के ऋणात्मक वृद्धि के दोनों प्रभावों की व्याख्या की गई है।
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धनात्मक जनसंख्या वृद्धि(परिवर्तन) के प्रभाव/परिणाम
धनात्मक जनसंख्या वृद्धि तब होती है जब जन्मदर मृत्युदर से अधिक होती है। धनात्मक जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों को दो भागो में बांटा गया है। नकारात्मक प्रभाव और सकारात्मक प्रभाव, नकारात्मक प्रभाव उन प्रभावों को कहा जाता है। जिससे किसी क्षेत्र में तरह-तरह के समस्याएं उत्तपन्न होने लगती है। यह प्रभाव वर्तमान समय में पुरे विश्व के लिए चुनौती बना हुआ है। जब्कि सकारात्मक प्रभाव किसी क्षेत्र के लिए लाभकारी होता है। यहां पर हमलोग दोनों प्रभावों के सभी तत्वों को कुछ विन्दुओ के अंदर समाहित करके समझने का प्रयास करेंगे।
नकारात्मक प्रभाव (हानियाँ)
धनात्मक जनसंख्या वृद्धि के उन प्रभावों को नकारात्मक प्रभाव में शामिल करते है जो किसी क्षेत्र या सम्पूर्ण विश्व के लिए तरह-तरह के समस्याओं को उतपन्न करता है। वर्तमान समय में ये समस्याएँ विश्व में चुनौती बनकर सामने आई है। यहाँ पर लगभग सभी नकारात्मक परिणामो को कुछ विन्दुओ में समाहित करके इसकी व्याख्या करने का प्रयास किया जा रहा है।
बेरोजगारी की समस्या
किसी भी क्षेत्र में तीव्र गति से जनसंख्या बढ़ने से उत्तपन्न समस्याओ में बेरोजगारी की समस्या महत्वपूर्ण है। वतर्मान समय में विश्न के अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रो में यह समस्या गंभीरता के साथ सामने आई है। बेरोजगारी वह स्थिति होती है जिसमे व्यक्ति जिस कार्य को करने के लिए योग्य होता है किन्तु उसके लिए वह कार्य उपलब्ध नहीं हो पाता है जिससे वह व्यक्ति बेरोजगार या अलप बेरोजगार हो जाता है।
अंतरार्ष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) रिपोर्ट 2020 ने हल ही में ”वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स 2020”में वैश्विक बेरोजगारी 2.5 मिलियन बढ़ेगी। ILO की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में लगभग 188 मिलियन लोग बेरोजगार है। रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में लगभग 120 मिलियन लोगो ने नौकरी की तलाश छोड़ दी है। इसके अतिरिक्त करीब 165 मिलियन लोगो के पास पर्याप्त आय वाला रोजगार नहीं है। इस प्रकार विश्व में करीब 470 मिलियन लोग बेरोजगारी की समस्या से परेशान है।
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत में बेरोजगारी दर 2017-18 में 45 साल के उच्च स्तर यानि 6.1 पर पहुंच गई है। मतलब रोजगार के लिए तैयार हरेक 100 व्यक्ति में से 6.1 व्यक्ति बेरोजगार है।
गरीबी
जनसंख्या बढ़ने से बेरोजगारी की समस्या उत्तपन्न होती है। और रोजगार नहीं मिलने से गरीबी की समस्या उत्तपन्न होती है। समान्यतः उस व्यक्ति को गरीब कहा जाता है जो जीवन की मुलभूत आवश्यकताओ को पूरा करने में असमर्थ होता है। अंतरार्ष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने छः न्यूनतम आवश्यकताओ स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, जलापूर्ति,स्वच्छता और आवास की पहचान की है।
संयुक्त राष्ट्र ने 2019 के ”वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)” के अनुसार इस समय पूरी दुनिया में कुल 1.3 अरब गरीब है जिसमे से भारत में 64 करोड़ से घटकर 37 करोड़ रह गई है।
संसाधनों पर दबाव
जनसंख्या बढ़ने से संसाधनों पर दबाव बढ़ता जाता है। क्योकि जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है उस गति से संसाधन बढ़ नहीं रहे है, बल्कि घट रहे है और समाप्त भी हो रहे है। ऐसे में जो वस्तु समान्य रूप से मिलता था वह धीरे-धीरे दूर्लभ और बहुमूल्य होते जा रहे है। विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, किन्तु भारत के पास पृथ्वी के धरातल का मात्र 2.4 प्रतिशत भू भाग ही है। देश में करोड़ो लोगो के पास आज भी रहने का स्थायी ठिकाना नहीं है। दुनिया के सबसे अधिक मलिन वस्तियाँ भारत में ही है। दिन प्रतिदिन पैट्रोलियम पदार्थो, रसोई गैस, भोजन समाग्री या अन्य वस्तुओ का मूल्य बढ़ते जा रहे है। सभी का मूल कारण जनसंख्या का दबाव है।
पर्यावरणीय समस्याएँ
जनसंख्या के बढ़ने से जैविक ईंधनों का खपत बढ़ गया है। जिसके कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषक पदार्थ वातावरण में उतसर्जित होते रहते है। और यह प्रदूषक वातावरण के उपयोगी तत्वों को विनास करते जा रहे है। जिससे कई प्रकार की समस्याएँ उतपन्न हो गई है। जैसे:- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ये प्रदूषण वर्तमान विश्व के लिए सबसे बड़ा चुनौति है। इन समस्याओ से सभी देश प्रभावित है और इससे शारीरिक गंभीर बीमारियों की उतपत्ति हो रही है। अब स्थिति यहाँ तक आगई है कि ना तो प्राकृतिक रूप से शुद्ध वायु उपलब्ध है और ना ही जल और भोजन इत्यादि।
प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग और दुरूपयोग
जनसंख्या बढ़ने से प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग और दुरूपयोग बढ़ गया है। वनो को काटकर प्रदूषण फ़ैलाने वाले उद्योगों की स्थापना की गई है, लोगो को बसाने के लिए वस्तियाँ बसाई गई है। कृषि के लिए भूमि तैयार किया गया है परिणाम यह हुआ कि जिन समस्याओ को पर्यावरण स्वयं समाधान निकल लेती थी वे समस्याएँ अब गंभीर हो गई है। पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए भूमि पर कम से कम 33 प्रतिशत भूभाग पर वनो का विस्तार होना यतिआवश्यक है। किन्तु वर्तमान समय में विश्व में 50 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत वन रह गए है।
वहीं भारत में ”15 वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट (Indian state of foret report ISFR 2017)” के अनुसार कुल वनावरण एवं वृक्षावरण 8,02,088 वर्ग किमी है। देश में कुल वनावरण 7,08,273 वर्ग किमी है जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 21.54 प्रतिशत है।
इसी तरह से जल संसाधन (धरातलीय, भूमिगत), वायु संसाधन, मृदा संसाधन, खनिज संसाधन इत्यादि का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। और पृथ्वी के संतुलन को बिगड़ने का काम किया जा रहा है। जिससे कई प्रकार कि प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाएँ होते रहती है।
प्राकृतिक आपदाओं की बारम्बारता में वृद्धि
पृथ्वी को असंतुलित करने का श्रेय मानव को ही जाता है। धरातल के अंदर दबे खनिज पदार्थो को दोहन करके पृथ्वी को खोखला करने, प्राकृतिक नदियों पर विससकारी बांध का निर्माण करने, पर्वतो के चट्टानों को तोड़-तोड़ कर गगनचुम्बी इमारतों, उद्योगों, सचर के साधनो का निर्माण करने, वनो को विनास करके मानव बस्तियाँ बसाई गयी है, कृषि योग्य भूमि का विकास किया गया है। जिससे धरातल पर असंतुलन उत्तपन्न हो गया है। और इन सभी कारणों से प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, बाढ़, सूखा,अतिवृष्टि, चक्रवात, वैश्विक तापन, सुनामी, ज्वालामुखी इत्यादि ) की बारम्बारता का प्रतिशत बढ़ गया है।
संक्रामक रोगो का प्रकोप
ऐसा मान जा रहा है कि जनसंख्या के तीव्र गति से वृद्धि के कारण नए-नए संक्रामक रोगो की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। ज़्यदा लोगो के एक दूसरे के सम्पर्क में आने से ये बीमारियाँ विकराल रूप धारण कर रही है। प्राचीन कल में एक सभ्यता के सम्पर्क अन्य सभ्यताओं से कम थी जिससे संक्रामक बीमारिया भी कम थी। वर्तमान समय में भूमण्डलीकरण के कारण नित्य नए रोगो का सृजन हो रहा है। वर्तमान समय में कोरोना (COVID 19) इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। इसके अलावे N1H1, एड्स आदि बीमारियाँ भी हजारो लोगो की जान ले चुकी है।
उपरोक्त इन सभी नकारात्मक परिणामो के अलावे जनसंख्या वृद्धि के और भी अनेक परिणाम है जैसे संसाधनों कि कमि, भ्र्ष्टाचार, आतंकवाद, जातीय, प्रजातीय, क्षेत्रीय संघर्ष इत्यादि।
सकारात्मक प्रभाव (लाभ)
जनसंख्या के धनात्मक वृद्धि के सकारात्मक प्रभाव किसी क्षेत्र या विश्व के लिए लाभकारी होता है। सकारात्मक प्रभाव बढ़ती जनसंख्या किसी क्षेत्र के लिए समस्या उतपन्न नहीं करती बल्कि वर्तमान समस्याओ और आनेवाली समस्याओ को समाधान करती है। कुछ देश जनसंख्या को समस्या के रूप में नहीं बल्कि संसाधन के रूप में अपनाया है। जैसे जापान,सिंगापूर, दक्षिण कोरिया इत्यादि । ये देश सघन जनसंख्या घनत्व वाले देश है। इन देशो के जनसंख्या घनत्व भारत के जनसंख्या घनत्व से अधिक है। इन देशो ने अपनी जनसंख्या को संसाधन में बदल दिया है। जनसंख्या को संसाधन में बदलने के लिए दो कार्य करने होते है, शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में अधिक मात्रा में निवेश किया जाय। जनसंख्या के धनात्मक वृद्धि के सकारात्मक प्रभाव निम्न विन्दुओ के सहयोग से दर्शाया जा सकता है।
मानव संपदा का प्रचुर मात्रा
किसी भी देश के लिए जनसंख्या सबसे महत्वपूर्ण संसाधन होता है। क्योकि ये वही संसाधन होता है जिसके कारण अन्य संसाधनों की उत्तपति होती है। चीन, भारत मानव सम्पदा के रूप में सम्पन्न देश है। यहाँ के विभिन्न कौशलों से सम्पन्न व्यक्ति विश्व के सभी भागो में पाये जाते है। भारत में जनसंख्या अधिक होने के कारण यहाँ विभिन्न कौशलों से सम्पन्न श्रमशक्ति सस्ते दरों में उपलब्ध होते है।
संसाधनों का विकास
जनसंख्या बढ़ने के बाद यह संसाधन में विकसित हो जाती है तब नई-नई तकनीकों का विकास होता है। इन तकनीकों कि सहायता से विकास किया जाता है। प्राचीन कल में लोगो की संख्या कम पायी जाती थी और तकनीक का विकास कम हुआ था उस समय कोयला,सोना, लोहा इत्यादि महत्वपूर्ण खनिज संसाधन मिट्टी के ढेले के समान थी। वर्तमान समय में जनसंख्या वृद्धि के साथ तकनीक के विकास के कारण मिट्टी, चट्टान को संसाधन में विकसित करना सम्भव हुआ है।
उत्पादक्ता
यहाँ उत्पादक्ता का संबंध कार्यशील जनसंख्या से है मतलब ऐसी जनसंख्या जो अर्थव्यवस्था को चलाने का कार्य करती है जिसकी उम्र 16 वर्ष से 60 वर्ष तक होती है। जिस देश के पास यह जनसंख्या अधिक होती है वह देश मानव सम्पदा का सम्पन्न देश होता है इस जनसंख्या को स्वस्थ्य और कौशल में परिवर्तित करके आर्थिक वृद्धि को तीव्र किया जा सकता है। इस दृष्टि से भारत सम्पन्न देश है। इसी जनसंख्या को उपयोग करके चाहे वह घरेलू हो या अन्य देश उत्पादन के स्तर को बढ़ाने का काम किया जा रहा है। जापान संसाधन विहीन देश है एवं द्वितीय विश्व युद्ध के मर झेलते हुए भी एक सम्पन्न, समृद्ध एवं विकसित देश बना है।
आर्थिक विकास दर तेज होती है।
डॉ० भारत झुनझुनवाला (आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्णीकार ) के अनुसार यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के प्रोफेसर जूलियन साइमन बताते है कि हांगकांग, सिंगापूर, हॉलैंड और जापान जैसे जनसंख्या सघन देशो की आर्थिक विकास दर अधिक है, जब्कि विरल आबादी वाले अफ्रीका में आर्थिक विकास दर धीमी है, सिंगापुर के प्रधानमंत्री के अनुसार जनता को अधिक संख्या में संतान उतपन्न करने को प्रेरित करना देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। उनकी सरकार ने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, हाऊसिंग अलाउंस तथा पैटर्निटी लीव में सुविधाएँ बढ़ई है।दक्षिण कोरिया ने दूसरे देशो से इमिग्रेशन को प्रोत्साहन दिया है। इमिग्रेटर्स की संख्या वर्तमान में आबादी का 2.8 प्रतिशत से बढ़कर 2030 तक 6 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। इंग्लैण्ड के संसद के विड रुड ने कहा है की द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यदि इमिग्रेशन को प्रोत्साहित किया जाता तो इंग्लैण्ड की विकास दर न्यून नहीं रहती
स्पष्ट होता है कि जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बात सीधी सी है उत्पादन मनुष्य द्वारा किया जाता है, जितने लोग होंगे उतना उत्पादन हो सकेगा और आर्थिक विकास दर बढ़ेगी।
”बढ़ती जनसंख्या यदि उत्पादन में रत रहे, तो जीवन स्तर में सुधार होता है। अतः समस्या लोगो को रोजगार दिलाने की है, न कि जनसंख्या की अधिकता की। जनसंख्या के आर्थिक विकास पर उपरोक्त सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए चीन की सरकार ने एक संतान की पॉलिसी में परवर्तन किया है।” — डॉ० भारत झुनझुनवाला (आर्थक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार )
ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि(परिवर्तन)के प्रभाव/परिणाम
ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि में जन्मदर मृत्युदर से कम होती है। धनात्मक जनसंख्या वृद्धि कि तरह ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि के दो प्रभाव होते है, सकारात्मक प्रभाव और नकारात्मक प्रभाव। ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव किसी क्षेत्र की जनसंख्या के आकार पर निर्भर करता है। अगर किसी क्षेत्र की जनसंख्या का आकर बड़ा है तो जनसंख्या का ऋणात्मक वृद्धि उस क्षेत्र के लिए लाभदायक होता है। और किसी क्षेत्र की जनसंख्या का आकार छोटा हो तो जनसंख्या का ऋणात्मक प्रभाव उस क्षेत्र के लिए हानिकारक होगा चाहे वह क्षेत्र छोटा हो या बड़ा।
नकारात्मक प्रभाव (हानि)
जनसंख्या वृद्धि के ऋणात्मक परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव किसी क्षेत्र में जनसंख्या में कमी आने से कम जनसंख्या आकर वाले क्षेत्रो में कई समस्याएँ उतपन्न हो जाती है जिसके कारण इन क्षेत्रो में की सरकारे जनसंख्या बढ़ने के लिए लोगो को प्रोत्साहित कर रही है। ऋणात्मक परवर्तन के नकारात्मक प्रभाव को निम्न विन्दुओ के द्वारा व्यक्त किया जा रहा है।
मानव सम्पदा का ह्रास
जिस तरह से यूरोपियन देशो में बच्चो के प्रति उदासीनता देखा जा रहा है। उससे यह पता चलता है कि आने वाले कुछ वर्षो में इन देसो में मानव सम्पदा का आभाव हो जाएगा। और इन देशो में पाई जाने वाली विशेष प्रजाति, जाति का विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है। इसको लेकर इन क्षेत्रो की सरकारों ने तरह-तरह की सुविधाएँ दे रही है। जिससे जन्मदर में बढ़ोतरी हो और जनसंख्या बढ़े।
अनुत्पादक जनसंख्या की अधिकता
जनसंख्या के नकारात्मक परिवर्तन यह भी है कि किसी क्षेत्र में कार्यशील जनसंख्या कम हो जाती है। और निर्भर जनसंख्या विशेषकर 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग वाले लोगो की संख्या बढ़ने लगती है। जिसका असर इस देश के अर्थव्यवस्था में देखा जा सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण चीन देश है जहाँ पर 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग वाले लोग कुल जनसंख्या का लगभग 12 प्रतिशत है। भारत में 6 प्रतिशत, जापान में सबसे अधिक 28 प्रतिशत, यूरोप में 19 प्रतिशत, उत्तरी अमेरिका में 16 प्रतिशत है। UN World Population Prospects 2019 Data Boolet के अनुसार।
अकुशल श्रमिकों का आभाव
ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि के हानिकारक प्रभावों में प्रमुख प्रभाव है। विकसित देशो में ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि हो रही है। यहां के अधिकांश कार्यशील जनसंख्या कुशल श्रमिक होते है। लगभग सभी के पास विशेष कौशल होता है। जिसके कारण ही ये देश विकसित देश हो पाते है वही इसका दूसरा पहलु यह भी होता है की इन देशो में अकुशल श्रमिक नहीं पाए जाते है इसी कारण से इन देशो में अकुशल श्रमिक वाले कार्यो को मशीनों के द्वारा किया जाता है। उद्योग भी होते है वह भी कुशल श्रमिक प्रधान होते है। जैसे इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, संचार इत्यादि सरे कार्य कुशल श्रमिकों एवं मशीनों के द्वारा किया जाता है। इसी लिए इन देशो में विकासशील एवं पिछड़े देशो के अकुशल श्रमिक अधिक देखे जाते है।
सकारात्मक प्रभाव (लाभ)
ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि के सकारात्मक प्रभाव का अर्थ किसी क्षेत्र में जनसंख्या घटने से उस क्षेत्र को क्या लाभ होता है। इसी को सकारात्मक प्रभाव कहते है।
संसाधनों पर से जनसंख्या का दबाव कम होना
किसी क्षेत्र में जनसंख्या कम होने से संसाधनों पर से जनसंख्या का दबाव कम होता है। जिससे लोगो का पहुंच सभी संसाधनों तक आसानी से हो जाता है। प्रति व्यक्ति संसाधनों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। लोग प्रचुर मात्रा में वस्तुओ का उपयोग कर सकते है।
बेरोजगारी की समस्या का समाधान
जनसंख्या में ऋणात्मक परिवर्तन से बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो जाता है क्षेत्र में ज़्यदा-से-ज़्यदा लोगो के लिए रोजगार उपलब्ध होते है। जनसंख्या में धनात्मक वृद्धि के कारण बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण की हुई है। और इसका एकमात्र उपाय जनसंख्या में कमी लाना या रोजगार उपलब्ध करना।
गरीबी पर नियंत्रण
जनसंख्या घटने से कार्यशील जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध हो जाती है। और सभी लोगो को रोजगार मिलने से वे अपने जीवन को चलने के लिए आधारभूत आवश्यकताओ को आसनी से पूरा कर सकते है। और गरीबी से छुटकारा पा सकते है।
जीवन स्तर में सुधार
जनसंख्या कम होने से किसी देश के नागरिको को शिक्षा, रोजगार, पोषण, चिकित्सा, स्वस्थ्य आदि की सुविधाएँ के लिए उपलब्ध होने से लोगो के जीवन स्तर में सुधर होता है। इसी आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने मानव विकास सूचकांक जारी करता है। और अधिकांश छोटे जनसंख्या वाले देशो का सूचकांक ऊपर पाया जाता है चाहे वह नार्वे, स्वीडेन, आयरलैंड हो या श्रीलंका, आस्ट्रेलिया, कनाडा इत्यादि।
इस तरह से हम देखते है कि जनसंख्या में धनात्मक वृद्धि के नकारात्मक परिणाम जितने घातक होते है उतने ही घातक जनसंख्या के ऋणात्मक वृद्धि के नकारात्मक परिणाम भी है। जनसंख्या वृद्धि(परिवर्तन)के जितने लाभ है उससे कहि अधिक उससे हानियाँ है। अतः किसी क्षेत्र में जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ना या घटना दोनों परिस्थतियो में घातक साबित होता है। जिसके लिए पूरा विश्व चिंतित है और समाधान निकलने का प्रयास जारी है।
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