वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

अल्फ्रेड वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

नमस्कार दोस्तों ! एक और महत्वपूर्ण ब्लॉग पोस्ट में आपलोगों का स्वागत है। आज के इस भौतिक भूगोल के महत्वपूर्ण लेख में महाद्वीपों और महासागरों के वितरण संबंधी दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत तथा प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत में से महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के बारे में जानेंगे।

दोस्तों आपलोग लगभग सभी इस बात से परिचित होंगे कि सम्पूर्ण पृथ्वी का 70.8 प्रतिशत भाग पर महासागरों और 29.2 प्रतिशत भाग पर महाद्वीपों का वितरण है। ये महाद्वीप तथा महासागर एक साथ नहीं बल्कि अलग-अलग क्षेत्रो में फैले हुए है। जैसा कि मानचित्र में दिखाई देता है। क्या आरंभिक समय में इसकी स्थिति ऐसी थी और क्या आनेवाले समय में भी ऐसी ही रहेगी।इन्हीं प्रश्नो का उत्तर हमे महाद्वीपीय विस्थानप सिद्धांत एवं प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत से मिलता है।

महाद्वीपीय विस्थापन / प्रवाह (Continental Drift) क्या है ?

विश्व के मानचित्र को देखने से पता चलता है कि अटलांटिक महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों के बिच आश्चर्यजनक समानता देखने को मिलता है। इसी समानता के कारण बहुत सरे वैज्ञानिको को मानना है कि उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका और यूरोप तथा अफ्रीका आपस में जुड़े हुए भूखंड रहे होंगे और बाद में टूट कर अलग-अलग दिशा में प्रवाहित हो गए इसी को महाद्वीपीय विस्थापन या प्रवाह कहा जाता है।

महाद्वीपों का विस्थापन

महाद्वीपों के आपस में जुड़े होने की संभावना सर्वप्रथम 1526 ई. में एक डच ( हॉलैंड/नीदरलैण्ड ) के मानचित्रकार अब्राहम ऑर्टेलियस ( Abraham Ortelius ) व्यक्त किया था। एन्टोनियो पैलग्रीनी ( Antonio Pellegrini ) ने एक मनचित्र की रचना की जिसमे इन महाद्वीपों को इकट्ठा दर्शाया गया है। 1858 ई. एन्टोनियो स्नाइडर ( फ्रांस ) ने महाद्वीपों में प्रवाहित होने की संभावना का सुझाव सर्वप्रथम दिया। 1910 ई. में एफ़. जी. टेलर ने महाद्वीपीय प्रवाह की परिकल्पना के आधार पर मोड़दार पर्वतो के वितरण को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के विकास की पृष्टभूमि

वेगनर महोदय एक जलवायुवेता होने के कारण उन्होंने अपने अध्ययन में पाया की एक ही भूखंड में अलग-अलग जलवायु कटिबंध सम्बन्धी विशेषताएँ पाई जाती है। वर्त्तमान समय में जिन प्रदेशो की जलवायु उष्ण कटिबंधीय है वहां लम्बें समय तक शीत कटिबन्धीय जलवायु होने का प्रमाण मिले है। जैसे:- भारत, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया में प्राचीन हिमानियों के अवशेष।

वही शीत कटिबन्धीय क्षेत्रो में उष्ण कटिबंधीय जलवायु के प्रमाण मिले है। जैसे:- अलास्का, साइबेरिया, अंटार्कटिका में विशाल पैमाने में कोयले का निक्षेप पाया जाना। इस सम्बन्ध में उनके मन में दो तरह के विचार उत्पन्न हुए।

  1. अगर सभी महाद्वीप उत्पत्ति के समय से स्थिर अवस्था में रहे होंगे तो उसमे जलवायु कटिबंधों में क्रमशा स्थानांतरण हुआ होगा। जिसके कारण कभी शीत तो कभी उष्ण, कभी शुष्क तो कभी आर्द्र या उष्णार्द्र जलवायु कटिबंध का आगमन हुआ होगा। किन्तु इस प्रकार के प्रमाण जलवायु कटिबंधों के स्थनांतरण के प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिले है।
  2. और अगर जलवायु कटिबंध स्थिर है तो स्थलखंडों का जरूर स्थानांतरण हुआ होगा। वेगनर महोदय ने इसे ही स्वीकार किया क्योकि स्थलखंड स्थिर अवस्था में नहीं रहे है। इसके आधार पर उन्होंने अपना ” महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत” प्रस्तुत किया।

अल्फ्रेड वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

जमनी के प्रसिद्ध जलवायुवेता प्रोफेसर अल्फ्रेड वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत 1912 ई. में प्रस्तुत किया था। पुनः इसे 1924 ई. में इन्होने इसका संसोधित रूप प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत महाद्वीपो एवं महासागरों के वितरण से सम्बन्धित है।

इस सिद्धांत के अनुसार सभी महाद्वीप अंतिम कार्बोनिफेरस युग से पहले एक विशाल भूखंड में जुड़े हुए थे। जिसको इन्होने “पैंजिया “(Pangeea ) का नाम दिया। इस पैंजिया को चारो ओर से एक विशाल महासागर घेरे हुए था जिसे इन्होने “पैंथलासा” ( Panthalassa ) जिसका अर्थ उन्होंने जल ही जल बतलाया है। उन्होंने यह भी बतलाया कि पृथ्वी के भूपर्पटी मैंटल के ऊपर बिना अवरोध के तैर रहा है।

इनके अनुसार लगभग 30 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया का विखंडन होना प्रारम्भ हुआ। पैंजिया पहले दो बड़े भूखंडो में विभाजित हुआ उत्तरी भाग को इन्होने “लारेशिया” या “अंगारलैण्ड” तथा दक्षिणी भाग को “गोंडवानालैण्ड” नाम दिया। और इसके मध्य में टेथिस सागर का विकास हुआ।

बाद में लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व लारेशिया और गोंडवानलैंड का विखंडन होना प्रारम्भ हुआ जिससे वर्त्तमान महाद्वीपों की रचना हुई। लारेशिया के विखंडन से उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड, यूरोप, एशिया ( भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़कर ) आदि भूखंडों का विकास हुआ। वहीं गोंडवानालैण्ड के विखंडन से दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप, आस्ट्रेरिलया तथा अंटर्कटिका आदि भूखंडो का निर्माण हुआ।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में प्रमाण

वेगनर महोदय ने अपने सिद्धांत के पक्ष में अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये जो यह सिद्ध करता है कि सभी भूखंड एक साथ जुड़े हुए थे। जो विखंडन के बाद अलग-अलग दिशा में प्रवाहित हुआ है। कुछ महत्वपूर्ण प्रमाण निम्नलिखित इस प्रकार है।

महाद्वीपों में साम्य ( Jig-Saw-Fit )

महाद्वीपों में साम्य

अटलांटिक महासागर के पूर्वी एवं पश्चिमी तट विशेषकर दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तट तथा अफ्रीका के पश्चिमी तटों में त्रुटिरहित साम्य दिखाई देता है। ऐसा लगता है जैसे किसी वस्तु के दो टुकड़े है जो टूटकर अलग हो गया हो। बल्लर्ड ( Bullard ) महोदय ने 1964 ई. में एक कम्प्यूटर प्रोग्राम की सहायता से अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया था जो विल्कुल सही मिल गया था। दोनों तटों में साम्यता बैठाने का कोशिश तटरेखा के अपेक्षा 1000 फैदम की गहराई की तटरेखा में किया गया था। ( 1 फैदम =6 फुट =1.8 मीटर )

महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता

वर्त्तमान समय में किसी वस्तु का आयु निर्धारित करने की विधि रेडियोमीट्रिक काल निर्धारण ( Radiometric Dating ) द्वारा महासागरों के दोनों किनारो की चट्टानों की आयु सरलता से निर्धारित किया जा सकता है। इसके आधार पर ब्राजील के पूर्वी तट तथा पश्चिमी अफ्रीका में 200 करोड़ वर्ष पूर्व शैल समूह की एक पट्टी पाई जाती है। साथ ही साथ इन दोनों तटों पर आरम्भिक समुद्री निक्षेप जुरैसिक कल का पता चला है इससे यह पता चलता है कि जुरैसिक काल से पहले यहाँ पर महसागर की स्थिति नहीं थी।

टिलाइट ( Tillite )

टिलाइट

प्राचीनकाल के हिमानी निक्षेपों से बने चट्टानों को टिलाइट जाता है। भारत में पाए जान वाले गोंडवाना श्रेणी के आधार तल में घने टिलाइट पाए जाते है जो लम्बे समय तक हिमावरण या हिमाच्छादन को इंगित करता है। इसी क्रम के निक्षेप दक्षिणी गोलार्द्ध के छः स्थलखंडो अफ्रीका, फ़ॉकलैंड( दक्षिण अमेरिका ), मैडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका ( अफ्रीका ), आस्ट्रेलिया तथा अंटार्टिका में पाए जाते है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ये भूखंड किसी काल में आपस में मिले रहे होंगें जहाँ पर लम्बे समय तक हिमावरण रहा होगा और कालांतर में इसका विखंडन के साथ विस्थापन हुआ होगा।

प्लेसर निक्षेप ( Placer Deposites )

खनिज सम्पन्न पहाड़ियों, पठारों के कगारों में तथा वहां से निकलने वाली नदियों के निक्षेपों में खनिज की शिराएँ पाई जाती है जिसे प्लेसर निक्षेप कहा जाता है। इसमें शुद्ध रूप से पाए जाने वाले खनिज प्रमुख होते है जैसे:-सोना, चाँदी आदि।

अफ्रीका महाद्वीप के घाना तट पर सोने के बड़े निक्षेप पाए जाते है जो गोल्ड कोस्ट के रूप में प्रसिद्ध है। किन्तु यहाँ पर सोना युक्त उद्गम चट्टानों का आभाव पाया जाता है जो आश्चर्यजनक है। सोनायुक्त शिराएँ एवं चट्टाने ब्राजील में पाई जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि घाना में पाए जाने वाले सोने का निक्षेप ब्राजील पठार से उस समय निकले होंगे जब दोनों महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े हुवे होंगे।

जीवाश्मों का वितरण ( Distribution Of Fossils )

जीवाश्मों का वितरण

“ग्लोसोप्टैरिस” नामक पैधे, “मेसोसौरस” एवं “लिस्ट्रोसौरस” नामक जंतुओं का जीवाश्म भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका, तथा दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप में पाए जाते है।

इसी प्रकार“लैमूर” के अवशेष भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में पाए जाते है।इन तीनो स्थलखंड को मिलाकर कई वैज्ञानिको ने ऐसे “लेमूरिया” ( Lemuria ) कहा है। इससे यह साबित होता है कि किसी काल में ये स्थलखंड आपस में मिले हुए होंगे।

प्रवालो का अवशेष

समान्य रूप से प्रवाल का विकास 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश से 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के मध्य उन समुद्री क्षेत्रो में होता है। जहाँ लगभग 20 डिग्री से ऊपर तथा गहराई 200 से 250 फिट के मध्य विकसित होते है। किन्तु इसके अवशेष इन क्षेत्रो से हटकर महाद्वीपों पर प्रवाल पाया जाना इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन भू-वैज्ञानिक काल में महाद्वीप भूमध्य रेखा के निकट स्थित थे।

ध्रुवों का घूमना

पूरा चुंबकत्व से महाद्वीपों के पैंजिया के रूप में एक दूसरे से जुड़े होनेका प्रमाण मिला है। मैग्मा, लावा तथा असंगठित अवसाद में उपस्थित चुंबकीय प्रवृति वाले खनिज जैसे:- मैग्नेटाइट, हेमेटाइट तथा पाइरोटाइट इसी प्रवृति के कारण उस समय चुंबकीय क्षेत्र के समांतर एकत्रित हो गए। यह गुण शैलो में स्थाई चुंबकत्व के रूप में रह जाता है। चुंबकीय ध्रुव की स्थिति में परिवर्तन होता रहा है।इसे ध्रुव का धुम्ना कहते है।

लेमिंग जीवो का बर्ताव

स्कैण्डिनेविया( नर्वे,स्वीडेन, डेनमार्क ) के उत्तरी भाग में पाए जाने वाले लेमिंग नामक छोटे-छोटे जंतु की संख्या अधिक हो जाने पर ये सभी पश्चिम की ओर भागने लगते है परन्तु आगे स्थल न मिलने के कारण सागर में डूबकर मर जाते है इससे यह पता चलता है कि अतीत काल में जब स्थलखंड आपस में जुड़े हुए होंगे तो ये जंतु पश्चिम की ओर भागा करते होंगे।

महाद्वीपीय पार पर्वतीकरण में समानता

भूगर्भिक प्रमाणों के आधार पर अटलांटिक महासागर के दोनों तटो पर कैलिडोनियन तथा हरसीनियम पर्वत क्रमो में समानता पाई जाती है।

महाद्वीपीय विस्थापन सम्बन्धी बल

अल्फ्रेड वेगनर ने महाद्वीपों के विस्थापन में दो तरह के बलों को उत्तरदायी माना है।

  1. ध्रुवीय या पोलर फ़्लिंग बल ( Polar Fleeing force )
  2. ज्वारीय बल ( Tidal Force )

( 1 ) ध्रुवीय या पोलर फ़्लिंग बल

पोलर फ़्लिंग बल की उत्पत्ति पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन के कारण उत्पन्न होता है जिसके कारण पृथ्वी भूमध्य रेखा पर उभरी हुई तथा ध्रुवो पर चपटी है। इसी घूर्णन के कारण पृथ्वी के पदार्थो का विस्थापन भूमध्यरेखा की ओर होता है इसी बल के कारण यूरोप, एशिया, अफ्रीका का विस्थापन उत्तर की ओर हुआ है।

( 2 ) ज्वारीय बल

पृथ्वी पर ज्वारीय बल की उत्पत्ति सूर्य और चन्द्रमाँ के आकर्षण शक्ति के कारण होता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूरब की ओर घूर्णन करती है। इन दोनों कारणों से पृथ्वी पर उत्पन्न ज्वर का प्रवाह पूर्व से पश्चिम की ओर होता है। इसी कारण से उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका का प्रवाह पश्चिम की ओर हो गया है और इन दोनों महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में घर्षण अवरोध के कारण रॉकी एवं एंडीज पर्वतमाला की उत्पत्ति हुए है।

वेगनर महोदय का मानना था कि ये बल अपर्याप्त होते हुए करोडो वर्षो के दौरान ये बल प्रभावशाली होकर महाद्वीपों के विस्थापन का कारण बना। हलांकि अधिकांश विद्वान इन दोनों बालो को इतने बड़े पैमाने तथा बड़े महाद्वीपों का विस्थापन के लिए सर्वथा अप्रयाप्त मानते है।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की आलोचना

महासागरों एवं महाद्वीपों के वितरण एवं उत्पत्ति के संबंध में दिय गए विभिन्न विचारो में वेगनर महोदय का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। तथापि वर्त्तमान समय में मुख्यतः प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के आने इनके सिद्धांत में कई विसंगतियां पाई गई। जिसे निम्न आधारों पर विद्वानों ने आलोचना की है।

  1. वेगनर के द्वारा बताये गए महाद्वीपीय विस्थापन के लिए उत्तरदाई बल महाद्वीपों के प्रवाह के लिए सर्वथा अपर्याप्त है।
  2. इनके अनुसार सियाल सीमा पर बिना रुकावट के तैर रहा है। फिर इसमें अचानक से रुकावट कहाँ से उत्पन्न हो जाता है। जिसके कारण उन्होंने रॉकी एवं एंडीज पर्वत की उत्पत्ति बताई है।
  3. अटलांटिक महासागर के दोनों तटों को पूर्ण रूप से नहीं मिलाये जा सकते है इसके साथ-साथ दोनों तटों की भूगर्भिक बनावट भी हर जगह में नहीं खाती है।
  4. वेगनर ने महाद्वीपों के विखंडन एवं प्रवाह की दिशा एवं तिथि पर विशेष प्रकाश नहीं डाला है। कार्बोनिफेरस युग से पहले पैंजिया किस-किस बल के कारण स्थिर एवं इक्क्ठा रहा।

निष्कर्ष

उपरोक्त आलोचनाओं के बवजूद भी वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत आनेवाले महत्वपूर्ण सिद्धांतों का आधार निर्मित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी कारण से वर्त्तमान समय में इस सिद्धांत की प्रासंगिकता बनी हुई है तथा प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के कारण इस सिद्धांत को एक नई दिशा मिली है।

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