हिमालय पर्वत श्रृंखला के बारे में

Himalaya Parvat जानिए हिमालय पर्वत श्रृंखला के बारे में

नमस्कार दोस्तों ! हमे उम्मीद है कि, आपलोग himalaya parvat हिमालय का नाम तो जरूर सुना होगा। तो चलिए आज हमलोग इस लेख के माध्यम से हिमालय पर्वत श्रृंखला के विभिन्न पहलुओं से परिचित होंगे। जैसे हिमालय का स्थिति और विस्तार क्या है ? इसकी उत्पत्ति कैसे हुई है। इसके भौतिक एवं प्रादेशिक विभाजन। भारत के परिपेक्ष इसका क्या महत्व है। आदि आदि।

हिमालय
हिमालय
हिमालय पर्वत श्रृंखला का विस्तार
स्रोत:- NCERT, हिमालय पर्वत श्रृंखला का विस्तार

भारत के उत्तर में विश्व के सबसे ऊँची, नवीनतम तथा मोड़दार पर्वत श्रृंखला हिमालय स्थित है। यह भारत के उत्तर पश्चिम में नागा पर्वत चोटी ( शिखर ) से उत्तर पर्व में नामचा बरुआ पर्वत चोटी तक अर्थात भारत के उत्तर पश्चिम में सिंधु नदी के मोड़ से उत्तर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक अर्ध चंद्राकर रूप में फैला हुआ है।

भारत का भौतिक स्वरूप का मुख्य भू-आकृति उत्तरी पर्वतमाल, हिमालय पर्वत का क्षेत्रफल भारत में लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। इस पर्वत की लम्बाई पश्चिम से पूर्व लगभग 2500 किमी है। तथा उत्तर से दक्षिण की चौड़ाई 160 से 400 किमी है। इस पर्वत की औसत ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 6000 मीटर है।

यह पर्वत श्रृंखला पश्चिम की ओर चौड़ी 400 किमी तथा पूर्व की ओर 160 किमी संकरी होती जाती है। जबकि इसकी ऊंचाई पूर्व की ओर अधिक तथा जैसे-जैसे पश्चिम की ओर बढ़ते है इसकी उचाई कम होते जाती है। विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटियों में अधिकांश हिमालय में ही स्थित है। माउंट एवरेस्ट दुनिया के सबसे ऊँची पर्वत चोटी ( 8848 मीटर ) हिमालय में ही स्थित है।

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हिमालय पर्वत श्रृंखला की उत्पत्ति कैसे हुई है ?

हिमालय पर्वत में कैम्ब्रियन -पूर्व से लेकर आदिनूतन काल की चट्टानें पाई जाती है इससे पता चलता है कि,हिमालय पर्वत कई कालो के चट्टानों के जमाव के उत्थान से इसका निर्माण हुआ है।

भू-अभिन्नति सिद्धांत, महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत तथा प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार हिमालय पर्वत की उत्पत्ति का का व्याख्या किया जा सकता है।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

महाद्वीपीय वस्थापन सिद्धांत के अनुसर कार्बोनिफेरस युग के अंत में पैंजिय का विखंडन हुआ है। इसका उत्तरी भाग लोरेसिया ( अंगारालैंड )तथा दक्षिणी हिस्सा ( गौंडवानलैण्ड ) तथा इन दोनों के मध्य में टेथिस सागर का विकास हुआ। टेथिस सागर में निक्षेपित मलबा के उत्थान से हिमालय का निर्माण हुआ है।

भू-अभिन्नति सिद्धांत

भू-अभिन्नति सिद्धांत के अनुसार टेथिस सागर में अंगारालैंड तथा गौंडवानलैण्ड से निकलकर टेथिस सागर में गिरने नाली नदियों से निक्षेपण का जमाव टेथिस सागर में होने लगा। तथा अत्यधिक जमाव के कारण सागर के तल में धसाव की प्रक्रिया के कारण निक्षेपों की मोटाई और अधिक होती गई। जिसे भू-अभिन्नति के नाम से जाना जाता है। बाद में यही भूसन्नति के ऊपर उठने से हिमालय का निर्माण हुआ है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार मेसोजोइक महाकल्प ( 6.4 से 24.5 करोड़ वर्ष पूर्व ) में अंगारालैंड से इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट अलग होकर उत्तर पूर्व की ओर अग्रसारित होकर एशियाई प्लेट से जा टकराई। जिससे टेथिस भू-अभिन्नति में दबाव पड़ने के कारण मेसोजोइक महाकल्प के क्रिटेशियस काल ( 6.5 से 14.4 करोड़ वर्ष पूर्व ) टेथिस भू-सन्नति में उभार या ऊपर उठने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। और यह उभार की प्रक्रिया वर्त्तमान समय तक जारी है। जिससे हिमालय पर्वत की ऊचाई वर्त्तमान समय में भी बढ़ना जारी है।

इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट के लगातार उत्तर पूर्व की ओर अग्रसारण के कारण आदिनूतन ( Eocene ) काल में 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व महान हिमालय का उद्भव हुआ। इसी प्रकार अल्पनूतन ( Miocene ) काल में 2.5 से 3.0 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय का द्वितीय उत्थान लघु हिमालय के रूप में हुआ। तथा अतिनूतन काल ( Pliocene ) में 1.4 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय के शिवालिक श्रेणी की उत्पत्ति हुई।

इस प्रकार हिमालय पर्वत का उद्भव संभव हुआ है। भू-वैज्ञानिको का मानना है कि, भविष्य में प्लेटो के अभिसरण के कारण गंगा के मैदानों में एक चतुर्थ पर्वत श्रेणी का निर्माण हो सकता है।

हिमालय का प्राकृतिक या भौतिक या भू-आकृतिक विभाजन

भारत में हिमालय पर्वत का विस्तार 5 लाख वर्ग किमी में है। हिमालय पर्वत के अंतर्गत कई समांतर श्रेणियाँ उत्तर पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर फैली हुई है। इसको मुख्य रूप से चार प्राकृतिक भागो में विभाजित किया जाता है।

  1. पार ( Trans ) हिमालय।
  2. महान हिमालय।
  3. लघु हिमालय।
  4. शिवालिक हिमालय।

( 1. ) पार ( Trans ) हिमालय।

महान हिमालय के उत्तर की ओर या बाहर की ओर स्थित होने के कारण इसे पार हिमालय कहा जाता है। इसे ट्रांस हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत कैलाश श्रेणी, लद्दाख, जास्कर, तथा कराकोरम श्रेणी को शामिल किया जाता है। सिंधु नदी लद्दाख और जास्कर पर्वत श्रेणियों के मध्य में प्रवाहित होती है। और यह लद्दाख श्रेणी को बुंजी नामक स्थान पर काटकर गहरे गार्ज का निर्माण करती है।

इस हिमालय के कराकोरम श्रेणी में भारत का सर्वोच्च शिखर गाडविन आस्टिन ( K2 ) ( 8611 मीटर ) स्थित है। जो दुनिया के दूसरी सबसे ऊँची पर्वत चोटी है माउन्ट एवरेस्ट ( 8848 मीटर ) के बाद।

ट्रांस हिमालय परतदार चट्टानों से निर्मित है। तथा यहाँ वनस्पतियो का पूर्ण आभाव पाया जाता है। सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम स्थल इसी हिमालय में है।

( 2. ) महान हिमालय।

यह हिमालय पर्वत श्रृंखला का प्रमुख पर्वत श्रेणी है। इसकी औसत उचाई 6100 मीटर तथा औसत चौड़ाई 25 किमी है। यह एक सतत श्रेणी है। इसे दर्रो के माध्यम से पार किया जा सकता है। इसकी दक्षिणी ढाल तीव्र तथा उत्तरी ढाल मध्यम है। सर्वाधिक उचाई के कारण इसे बृहद हिमालय भी कहा जाता है। जिसके कारण इसको पार कर पाना काफी कठिन है। इसमें सालो भर बर्फ से ढके रहने के कारण इसे हिमाद्रि के नाम से भी पुकारा जाता है।

इस श्रेणी का निर्माण 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व आदिनूतन कल ( Eocene ) में हुआ है। इस श्रेणी के आंतरिक भाग में जीवाश्मरहित चट्टानें पाई जाती है। जिसके ऊपर अवसादी ( परतदार ) चट्टानें की परत थी किन्तु अपरदन के कारण वर्त्तमान समय में परतदार चट्टानें पूरी तरह से नष्ट हो गई है एवं आंतरिक भाग की अजैविक चट्टाने बाहर निकल गई है। ये चट्टानें ग्रेनाइट, निस, शिष्ट प्रकार की है।

हिमालय पर्वत के सभी ऊँची पर्वत चोटियां इसी श्रेणी में स्थित है जो दुनियाँ की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ है जिनमे से दस पर्वत चोटियाँ इस प्रकार है।

क्रम संख्या पर्वत चोटी ( शिखर )देश ऊचाई ( समुद्र तल से मीटर में )
1माउन्ट एवरेस्ट नेपाल 8,848
2कंचन जुंगा भारत 8,598
3मकालु नेपाल8,481
4धौलागिरि नेपाल8,172
5नंगा पर्वत भारत 8,126
6अन्नपूर्णा नेपाल8,078
7नंदा देवी भारत 7,817
8कामेट भारत 7,756
9नामचा वरूआ भारत7,756
10गुरुला मन्धाता नेपाल7,728
महान हिमालय की दस प्रमुख पर्वत चोटियाँ

महान हिमालय में कई दर्रे है जो इसको काटती है।

  • जम्मु कश्मीर – बुर्जिला एवं जोजिला
  • हिमाचल प्रदेश – शिपकीला, बारालाचाला
  • उत्तराखंड – थाग-ला, लिपुलेख-ला
  • सिक्किम – नाथू-ला, जलेप-ला
  • अरुणाचल प्रदेश – बोमडीला

महान हिमालय में सालो भर बर्फ से ढके रहने के कारण यहाँ पर कई हिमनदियाँ प्रवाहित होती है। जिनमे से गंगोत्री, जेमू, मिलम प्रमुख है।

( 3. ) लघु हिमालय।

इस श्रेणी को हिमाचल, मध्य और निम्न हिमालय के नाम से जाना जाता है। इसकी ऊचाई 3700 मीटर से 4500 के मध्य है। इसकी औसत चौड़ाई 80 किमी है।

इसमें जीवाश्म रहित अवसादों या कायांतरित चट्टानों की बहुलता पाई जाती है। इसमें स्लेट, चूना पत्थर और क्वाट्र्ज चट्टाने पाई जाती है। ये चट्टाने पुराजीवी महाकल्प से लेकर आदिनूतन काल ( Eocene ) तक की है। इस श्रेणी का उत्थान 2.5 से लेकर 3.0 करोड़ वर्ष पूर्व अल्पनूतन काल ( Miocene ) में हुआ है।

इसके अंतर्गत पीरपंजाल श्रेणी ( जम्मुकश्मीर ), धौलाधर श्रेणी ( हिमाचल प्रदेश ), नागा टीबा श्रेणी, क्राल श्रेणी, मसूरी श्रेणी ( उत्तराखंड ), महाभारत श्रेणी ( नेपाल ) शामिल किया जाता है।

इस श्रेणी के दक्षिणी ढाल मंद तथा उत्तरी ढाल तीव्र है। इन ढालो में छोटे-छोटे घास के मैदान पाए जाते है जिसे कश्मीर में मर्ग ( गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि ) एवं उत्तराखंड में ( बुग्याल एवं पयार ) कहा जाता है।

महान हिमालय और लघु हिमालय के मध्य कई घाटियाँ स्थित है। जिसमे से कश्मीर घाटी, हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा और कुल्लू की घाटी, नेपाल में काठमांडू की घाटी काफी प्रसिद्ध है।

इस श्रेणी में भारत के अधिकांश स्वास्थ्य वर्धक स्थान या पर्वतीय नगर स्थित है जैसे:- शिमला, मसूरी, डलहौजी, नैनीताल, दार्जिलिंग इत्यादि।

( 4. ) शिवालिक हिमालय।

यह श्रेणी हिमालय के सबसे दक्षिणी श्रेणी है। जिसके कारण इसे बाह्य हिमालय या उप हिमालय के नाम से जाना जाता है। इसकी चौड़ाई 10 से 50 किमी तथा ऊंचाई समुद्र तल से 900 से 1100 मीटर है।

यह श्रेणी पंजाब में पोटवार बेसिन से प्रारम्भ होकर पूर्व में कोसी नदी तक फैली हुई है। इसका निर्माण अतिनूतन काल ( Pliocene ) में 1.4 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है। यह पश्चिम में चौड़ी तथा पूरब की ओर संकीर्ण होती गई है।

शिवालिक श्रेणी में मुख्य रूप से ऊपरी तृतीय काल की चट्टानें जैसे बलुआ पत्थर,मृतिका, मिश्र पिंडाश्म और चूना पत्थर पाए जाते है।

लघु हिमालय तथा शिवलीक हिमालय के बीच कहीं-कहीं समतल संरचनात्मक घाटियाँ पाई जाती है जिन्हे पश्चिम में दून ( Duns ) जैसे:- देहरादून, पोटलीदून, कोठरीदन, तथा पूर्व में दुआर ( Duar ) के नाम से जाना जता है।

हिमालय पर्वत शृंखला का प्रादेशिक विभाजन

क्षेत्रीय विभिन्नताओं, उच्चावच या भू-आकृतियों के आधार पर हिमालय पर्वत श्रृंखला को कई विद्वानों ने इसको कई उप खंडो या प्रादेशिक या अनुदैर्ध्य विभाजन करने का प्रयास किया है।

ब्रिटिश भूगर्भ शास्त्री सिडनी बुर्राड ने हिमालय को चार प्रदेशिक भूखंडों में विभाजित किया है।

  1. पंजाब हिमालय ( 560 किमी ) – सिंधु नदी से सतलज नदी तक।
  2. कुमायूँ हिमालय ( 320 किमी ) – सतलज नदी से काली नदी तक।
  3. नेपाल हिमालय ( 800 किमी ) – काली नदी से तीस्ता नदी तक।
  4. असम हिमालय ( 750 किमी ) – तीस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक।

प्रोफेसर एस. पी. चटर्जी ने 1973 ई. में हिमालय को पाँच प्रादेशिक खंडो में विभाजित करने का प्रयास किया है जो काफी व्यवहारिक है। जो निम्न इस प्रकार है।

  1. कश्मीर हिमालय।
  2. हिमाचल हिमालय।
  3. कुमायूँ हिमालय।
  4. केंद्रीय हिमालय ( नेपाल )।
  5. पूर्वी हिमालय।

NCERT कक्षा 11,विषय -भूगोल, पुस्तक- भारत भौतिक पर्यावरण, अध्यय-2, में हिमालय को निम्नलिखित पाँच प्रदेशिक उपखंडो में विभाजित करके हिमालय पर्वत का वर्णन किया गया है। जो निम्न इस प्रकार है।

  1. कश्मीर या उत्तरी-पश्चमी हिमालय।
  2. हिमाचल और उत्तरांचल हिमालय।
  3. दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय।
  4. अरुणाचल हिमालय या असम हिमालय।
  5. पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत।

( 1. ) कश्मीर या उत्तरी-पश्चमी हिमालय।

  • इसके अंतर्गत कराकोरम, कद्दाख़, जास्कर और पीरपंजाल श्रेणियों को शामिल किया जाता है।
  • कश्मीर हिमालय का क्षेत्रफल लगभग 3.5 लाख वर्ग किमी है। तथा इसकी औसत ऊंचाई 3000 मीटर है।
  • इसका उत्तरी पूर्वी भाग जो महान हिमालय और कराकोरम के मध्य में स्थित है जो एक शीत मरुस्थल के नाम से जाना जाता है।
  • महान हिमालय और पीरपंजाल के बीच में विश्व की प्रसिद्ध ‘कश्मीर की घाटी’ और ‘डल झील’ स्थित है। इसी क्षेत्र में ‘बलटोरो‘ और ‘सियाचिन‘ हिमानी नदियां स्थित है जो दक्षिण एशिया में अपना स्थान रखती है।
  • कश्मीर हिमालय ‘करेवा’ के लिए प्रसिद्ध है। जहाँ जाफ़रान ( केशर ), अखरोट, पिस्ता ( बादाम ), सेब, जर्दालु, सतालू आदि की खेती की जाती है।
  • करेवा एक प्रकार के हिमानी निक्षेप होते है जो हिमानी क्षेत्रो के गर्तो ( झीलों ) में जमा होते है।
  • इस हिमालय में जोजिला तथा पीरपंजाल महान हिमालय के दर्रे, फोटुला दर्रा जास्कर श्रेणी में, खर्दुंगला दर्रा लद्दाख श्रेणी में स्थित है।
  • डल और वुलर अलवणीय झील इसी हिमालय में स्थित है।
  • पांगांग सो और समुरिरि लवणीय झील भी इसी हिमालय में है।
  • इस क्षेत्र में सिंधु तथा इसकी सहायक नदियाँ झेलम और चिनाव प्रवाहित होती है। श्रीनगर झेलम नदी के तट पर बसा हुआ है।
  • वैष्णो देवी, अमरनाथ की गुफा और चरार-ए-शरीफ इसी इसी में स्थित है।
  • कश्मीर हिमालय के दक्षिणी भाग में अनुदैर्ध्य ( Longitudinal ) घाटियाँ पाई जाती है। जिन्हे दून के नाम से जाना जाता है। जैसे- जम्मू-दून, पठानकोट-दून आदि।

( 2. ) हिमाचल और उत्तरांचल हिमालय।

  • यह हिमालय पश्चिम में रावि नदी तथा पूर्व में काली नदी ( घाघरा की सहायक नदी ) के बीच में स्थित है।
  • इस क्षेत्र में रावि, व्यास और सतलुज ( सिंधु की सहायक नदियाँ ) तथा यमुना और घाघरा ( गंगा की सहायक नदियाँ ) प्रवाहित होती है।
  • हिमाचल हिमालय का सुदूर उत्तरी भाग लद्दाख के ठंडे मरुस्थल का विस्तार है।
  • इस हिमालय में हिमालय के तीनो श्रेणियों ( महान, लघु और शिवालिक श्रेणी ) का स्पष्ट स्थिति दीखता है।
  • इस क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ शिवालिक और दून है। जैसे- चंडीगढ़-कालका का दून, नालागढ़ दून, देहरादून, हरीके-दून, कोटा-दून इत्यादि प्रमुख दून है।
  • महान हिमालय के घाटियों में भोटिया प्रजाति के लोग रहते है। जो खानाबदोशी होते है।
  • उचाई में स्थित घास के मैदानों को बुग्याल कहा जाता है।
  • कांगड़ा, कुल्लू, मनाली, लाहुल और स्पिति घाटियाँ इसी क्षेत्र में है। ये घाटियां प्राकृतिक सौंदर्य और फलोद्यानो के लिए काफी प्रसिद्ध है।
  • शिमला, मसूरी, फूलो की घाटी, डलहौजी, धर्मशाला, चुंबा, कुल्लू, मनाली, नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत, बागेश्वर यहाँ के प्रमुख पहाड़ी शरण स्थली है।
  • गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ और हेमकुंठ साहिब इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • इस क्षेत्र में कई प्रयाग ( नदियों के संगम स्थल ) है। जैसे:- देव प्रयाग, रूद्र प्रयाग, कर्ण प्रयाग, विष्णु प्रयाग, आदि प्रमुख है।
  • रोहतांग, बारा-लाचा-ला और शिपकीला, थाग-ला, मुलिंग-ला, माना-पास, निति-पास, टुन-जुन-ला, लिपुलेख प्रमुख दर्रे स्थित है।

( 3. ) दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय।

  • इस हिमालय के पश्चिम में नेपाल हिमालय तथा पूर्व में भूटान हिमालय स्थित है।
  • इसमें तेज बहाव वाली तीस्ता नदी तथा कंचनजुंगा जैसी ऊँची पर्वत चोटी और गहरी घटियाँ स्थित है।
  • लेपचा जनजाति इस हिमालय के ऊँचे शिखरों पर निवास करते है तथा दक्षिणी भाग में मिश्रित जनसंख्या निवास करती है। जिसमे नेपाली, बंगाली तथा मध्य भारत की जन-जातियाँ पाई जाती है।
  • इसमें हिमालय के मध्यम ढाल वाली घटियों में गहरी व जीवाश्मयुक्त मिट्टी और पर्याप्त वर्षा के कारण चाय की खेती की जाती है
  • मध्यम ढाल वाली पर्वतीय घाटियाँ अधिक मात्रा में पाई जाती है। जिसे दुआर कहा जाता है। जिसका उपयोग चाय की फसल उगने के लिए किया जाता है।
  • नाथु-ला और जेलेप-ला दर्रा गंगटोक को ल्हासा ( तिब्बत ) से जोड़ता है। इसी हिमालय में स्थित है।

( 4. ) अरुणाचल हिमालय।

  • इसे असम हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
  • इसका विस्तार भूटान हिमालय के पूर्व से लेकर पूर्व में डिफू दर्रे तक फैला हुआ है।
  • यहाँ पर हिमालय पर्वत श्रृंखला का समान्य दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर है।
  • इसमें प्रमुख दर्रे बोमडी-ला, डिफू, पोंगसाऊ, देबांग, त्से-ला, योग्ग्याप, टूँगा है।
  • इस क्षेत्र की प्रमुख पर्वत चोटियाँ अका, डाल्फा, गिरि, काँगतु, नामचा बरवा इत्यादि है।
  • कमेंट, सुबनसरी, दिहांग, दिबांग और लोहित आदि ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ प्रवाहित होती है।
  • इस हिमालय में भी कई जनजातियाँ निवस करती है। जो पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमसः इस प्रकार है। मोनपा, डफ्फ्ला, अबोर, मिशमी, निशी और नागा।
  • यहाँ की ज़्यदातर जनजातियाँ झूम खेती करती है। जिसे स्थानांतरी कृषि या स्लैश और बर्न कृषि भी कहा जाता है।
  • इसी हिमालय के उत्तरी सीमा महान हिमालय के सहारे मैकमोहन रेखा 1140 किमी लम्बी है। जो भारत और चीन को अलग करती है।

( 5. ) पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत।

  • हिमालय पर्वत इस भाग में पूर्णता उत्तर से दक्षिण की ओर फैला हुआ है।
  • पूर्वी पहाड़ी को विभिन्न स्थानीय नामो से जाना जाता है। जैसे:- पटकाई बूम ( अरुणाचल प्रदेश ), नागा पहाड़ियाँ ( नागालैंड ), मणिपुर पहाड़ियाँ, ब्लू माउंटेन, मिजो, लुसाई पहाड़ियाँ ( मिजोरम में )
  • इस क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली बराक नदी मणिपुर और मिजोरम की मुख्य नदी है जो मेघना नदी की सहायक नदी है।
  • मणिपुर घाटी के मध्य में लोकताल झील स्थित है।
  • मणिपुर के पूर्व में बहने वाली नदियाँ चिंदविन की सहायक नदियाँ है जो म्यांमार में बहने वाली इरावदी की सहायक नदी है।
  • डिफु, हपुंगन, चौकान, पंगसाउ, और कीखापानी ( अरुणाचल प्रदेश ) के दर्रो के माध्यम से उत्तरी पूर्वी म्यांमार को जोड़ा जाता है।

हिमालय के प्रमुख दर्रे

क्र.सं.दर्रे का नाम स्थिति जुड़ने वाले स्थान का नाम
1 बनिहाल जम्मूकश्मीर जम्मु को श्रीनगर से।
2 बड़ालाचाहिमाचल प्रदेश, लद्दाख मनाली को लेह से।
3 बोमडी-ला अरुणाचल प्रदेश अरुणाचल प्रदेश को ल्हासा ( तिब्बत )।
4 बुर्जिला जम्मुकश्मीर कश्मीर घाटी को लद्दाख से।
5 चांग-ला लद्दाख लद्दाख को तिब्बत से।
6 देब्सा हिमाचल प्रदेश कुल्लु और स्पीति को।
7 दिहांग अरुणाचल प्रदेश अरुणाचल प्रदेश को मंडाले ( म्यांमार )।
8 डिफु अरुणाचल प्रदेशअरुणाचल प्रदेश को मंडाले ( म्यांमार )।
9 इमिस-लालद्दाखलद्दाख को तिब्बत से।
10 खारदुंगला ( सबसे ऊँचा )लद्दाखलद्दाख को लेह से।
11 खुंजेराब लद्दाख लद्दाख को तिब्बत से ।
12 जलेप-ला सिक्किम सिक्किम को ल्हासा ( तिब्बत )
13 लनक-ला लद्दाख (अक्साई चीन )लद्दाख को तिब्बत से।
14 लिखापानी अरुणाचल प्रदेश अरुणाचल प्रदेश को म्यांमार से ।
15 जोजिला जम्मुकश्मीर श्रीनगर को कश्मीर और लेह से।
16 लिपुलेख उत्तराखंड उत्तराखंड को तिब्बत से।
17 माना उत्तराखंडउत्तराखंड को तिब्बत से।
18 मंगशा धुरा उत्तराखंडउत्तराखंड को तिब्बत से।
19 मूलिंग-ला उत्तराखंडउत्तराखंड को तिब्बत से।
20 नाथुला सिक्किम सिक्किम को चीन से।
21 निति उत्तराखंड उत्तराखंड को तिब्बत से।
22 पंगसान अरुणाचल प्रदेश अरुणाचल प्रदेश को मंडाले ( म्यांमार )।
23 पेंजी-ला जम्मूकश्मीर कश्मीर घाटी को कारगिल से।
24 पीरपंजाल जम्मूकश्मीरजम्मु को श्रीनगर से
25 शिपकी-ला हिमाचल प्रदेश हिमाचल प्रदेश को तिब्बत से
26 थगला लद्दाख लद्दाख को तिब्बत से।
हिमालय के प्रमुख दर्रे

हिमालय के प्रमुख हिमनद।

क्र.सं.हिमनदी के नामस्थितिलम्बाई ( किमी )
1 सियाचिन कराकोरम 75
2 ससैनी कराकोरम68
3 हिस्पार कराकोरम61
4 बियाफो कराकोरम60
5 बलटोरा कराकोरम58
6 चोगो लुंग्मा कराकोरम50
7 ख़ोरदोपीन कराकोरम41
8 रीमो कश्मीर 40
9 पुनमाहकश्मीर 27
10 गंगोत्री उत्तराखंड 26
11 जेमु सिक्किम, नेपाल 25
12 रूपल कश्मीर16
13 डीयामीर कश्मीर11
स्रोत:- भारत का भूगोल, माजीद हुसैन और रमेश सिंह

हिमालय पर्वत श्रृंखला का महत्व।

भारत की दृष्टि से देखा जय तो हिमालय पर्वत्त श्रृंखला का स्थान काफी महत्वपूर्ण है। इसकी स्थिति के कारण भारत एक अलग भारतीय उप महाद्वीप के रूप में जाना जाता है। इसके महत्व को निम्न विन्दुओ के माध्यम से समझने का प्रयास करते है।

( 1. ) भारतीय जलवायु पर प्रभाव:-

हिमालय पर्वत के कारण ही पूरी भारतीय उप महाद्वीप में उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है। हिमालय पर्वत एक प्रकृतिक अवरोध के रूप में स्थित है। हिन्द महासागर से प्रवाहित होने वाली दक्षिण पश्चिम मानसूनी हवाओ को रोक कर भारत में वर्षा कराती है। यहाँ स्पष्ट शीत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु पाई जाती है।

इसके साथ-साथ साइबेरिया से आने वाली ठंडी हवाओ को भारत में प्रवेश होने से रोकती है। हिमालय के कारण जेट धाराएँ दो शाखाओ में विभाजित हो जाती है। जो वर्षा ऋतु को प्रभावित करती है।

( 2. ) सुरक्षा दीवार:-

हिमालय के ऊंचाई के कारण तथा सालो भर बर्फ जमे रहने के कारण इसे पार कर पाना काफी कठिन कार्य है। इसी कारण से भारत में अबतक उत्तर की ओर से कोई भी आक्रमण का प्रमाण नहीं मिलता है। आक्रमणकारियों द्वारा जो भी भारत में आक्रमण किये गए है। वह भारत के पश्चिम और सागर की ओर से हुए है।

किन्तु वर्त्तमान समय में नए अविष्कारों जैसे:-हवाई उड़ान, सेटेलाइट, मिसाइल आदि के कारण विश्व के कोई क्षेत्र सुरक्षित नहीं है।

( 3. ) सदावाहिनी नदियों के जल का स्रोत:-

हिमालय से निकलने वाली लगभग सभी नदियाँ में जल का प्रवाह सालो भर बना रहता है। जिसका मुख्य कारण इन नदियों को वर्षा के साथ-साथ हिमालय में स्थित हिमानियों से जल प्राप्त होता रहता है।

( 4. ) उत्तरी वृहत मैदान के उपजाऊ मृदा का स्रोत:-

हिमालय से निकलने वाली नदियों के निक्षेपों से भारत के उत्तरी मैदान का निर्माण हुआ है। ये नदियाँ अपने साथ भरी मात्रा में जलोढ़ को बहाकर लाती है। और मैदानी क्षेत्रो में फैला देती है और यह क्रिया प्रत्येक वर्ष होता है। जिसके कारण मैदानी क्षेत्र की मिट्टियाँ उपजाऊ बनी रहती है। जिसे खादर के नाम से जाना जाता है।

( 5. ) सिचाई, पनविजली के स्रोत:-

हिमालय से निकलने नाली नदियाँ सदावाहिनी होती है। जिसके कारण इसके जल का सम्पूर्ण उपयोग के लिए पर्वतीय क्षेत्रो में कई बांधो का निर्माण करके इसके जल से जलविद्युत, मछलीपालन, सिचाई के लिए नहर का निर्माण किया गया है। जैसे:- भाखड़ा-नांगल, सिलाल, दुलहस्ती, टिहरी, बगलिहार इत्यादि बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं का निर्माण किया गया है।

( 6. ) वन संसाधन की प्रचुरता:-

हिमालय पर्वत श्रृंखला में विविध प्रकार के वनस्पति एवं जीव-जंतु पाए जाते है। यहाँ पर विविध ऊंचाई पर उष्ण से लेकर शीत कटिबंधीय वनस्पतियाँ पाई जाती है। जिमे विभिन्न प्रकार के वन उत्पाद प्राप्त किये जाते है। जैसे:- इमरती लकड़ी, गोंद, लाह, रेजिन, विभिन्न प्रकार के जड़ी-बूटी लकड़ी, छाल, फल, फूल, जीव-जंतु इत्यादि।

( 7. ) विशेष प्रकार की खेती:-

शीत जलवायु तथा हिमानी निक्षेपों के कारण इन क्षेत्रो में विशेष प्रकार की मृदा ( करेवा निक्षेप ) पाई जाती है। जिसके कारण इन क्षेत्रो में सेब, नाशपाती, अँगूर, पीच, चेरी, कीमू, अखरोट, बादाम, जरदालू , केशर, चाय इत्यादि का उत्पादन किया जाता है।

( 8. ) खनिज सम्पदा:-

हिमालय में आर्कियन से लेकर नूतन काल की चट्टानें पाई जाती है। जिसके कारण यहाँ पर विविध प्रकार की खनिज सम्पदा पाई जाती है। जैसे:- तांबा, जस्ता, निकल, सोना, चाँदी, एंटिमनी, टंगस्टन, मैग्नेसाइट, चूना पत्थर, कोयला इत्यादि। किन्तु इनका दोहन करना इतना आसान नहीं है। क्योकि हिमालय की दुर्गमता के कारण इसको निकलने में काफी कठिनाई है।

( 9. ) प्राकृतिक सौन्दर्य:-

पूरी दुनियाँ में अपने प्राकृति सौन्दर्य के कारण हिमालय विख्यात है। यहाँ अनेको प्राकृति पर्यटन स्थल स्थित है। जिसे देखने के लिए दुनियाँ भर से लाखो पर्यटक प्रतिवर्ष यहाँ देखने के लिए आते है। कुछ पर्यटक स्थल इस प्रकार है। श्रीनगर, पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग, चम्बा, डलहौजी, चर्मशाला, शिमला, मसूरी, मनाली, कांगड़ा, कुल्लू, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, दार्जिलिंग इत्यादि।

( 10. ) धार्मिक स्थल के रूप में:-

हिमालय पर्वत विशेष कर पश्चिमी हिमालय में कई तीर्थस्थल प्राचीन काल से स्थापित किये गए है जिसे देखने के लिए प्रतिवर्ष लाखो श्रद्धालु जाते है। इन धार्मिक स्थलों में अमरनाथ, हजरतबल, कैलाश,मानसरोवर, वैष्णोदेवी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, हरिद्वार, गंगोत्री, यमुनोत्री, ज्वालदेवी इत्यादि काफी प्रसिद्ध है।


हिमालय पर्वत श्रृंखला के बारे में जो रोचक जानकार दी गई उम्मीद करते है आपको इससे लाभ हुआ होगा।

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