नमस्कार दोस्तों ! इस लेख में हमलोग सौरमंडल के बारे में जानने का प्रयास करेंगे कि, सौरमंडल क्या है ? इसकी उत्पत्ति कैसे और कब हुई है? इसमें कौन-कौन से ग्रह है ? इसके सदस्य पिंड कौन-कौन से है इत्यादि।
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सौरमंडल ( Solar System ) के बारे में या
सौरमंडल क्या है?
यह कुछ खगोलीय पिंडो का एक समूह है जो सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते है। सौरमंडल का मुखिया सूर्य है, और इसके सभी सदस्य खगोलीय पिंड अपने-अपने निश्चित कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते है।
सौरपरिवार के सदस्यों में 1 तारा (सूर्य), 8 ग्रह ( बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, वृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण ), लगभग 63 उपग्रह ( चन्द्रमा, फोबोस, डीमोस, टाइटन इत्यादि ), लाखो की संख्या में ग्रहो के टुकड़े जिसे क्षुद्र या आवांतर ( Asteroids ) ग्रह कहा जाता है। इसके अतिरिक्त बौने ग्रह ( सिरस, प्लूटो, आईरिस, मेकमेक, हउमेया ), धूमकेतु या पुच्छल ( Comets ) तारे ( जैसे – हैली पुच्छल तारा, एन्की धूमकेतु, कोहुतेक धूमकेतु इत्यादि ), उल्का पिंड और उल्काश्म, वृहत मात्रा में गैस एवं धूलकण सम्मिलित किए जाते है।
सौरमंडल की उत्पत्ति कब और कैसे हुई है ?
नीहारिका को सौरमंडल का जनक कहा जाता है। जिसका अवशेष वर्त्तमान समय में सूर्य के रूप में चमक रहा है। जो सौरपरिवार के सदस्यों के ऊर्जा का स्रोत है। सौरमंडल का उत्पत्ति कैसे हुई है इस विषय में पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी सिद्धांतो को अध्ययन करने से मालूम हो जाता है। पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी कई सिद्धांत अनेक विद्वानों द्वारा दिया गया है। नीहारिका के विखंडन होने तथा विखंडित पदार्थो के संगठन से सौरपरिवार के सदस्यों के बनने की शरुआत लगभग 5 से 5.6 अरब वर्ष पहले हुई एवं इसमें से ग्रहो का विकास लगभग 4.6 से 4.56 अरब वर्ष पहले हुआ है।
सौरमंडल का मुखिया सूर्य के बारे में
सौर मंडल का एक मात्र तारा एवं सौरपरिवार का सबसे बड़े खगोलीय पिंड सूर्य है, जिसका निर्माण हाइड्रोजन और हीलियम गैसों के विशाल संघनित समूह से लगभग 5 से 6 अरब वर्ष पूर्व हुआ है। इसमें हाइड्रोजन हीलियम के संलयन से ऊर्जा का सृजन होता है जिससे सौरपरिवार के सभी सदस्य ऊर्जावान होते है। सूर्य के सतह का तापमान 6000 डिग्री सेंटीग्रेड है। सूर्य के इस बहरी भाग को क्रोमोस्फियर ( Chromosphere ) कहा जाता है। केंद्रीय भाग को फोटोस्फीयर ( Photosphere ) कहा जाता है। जिसका तापमान 15000 डिग्री सेंटीग्रेड होता है।
पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी 14 करोड़ 96 लाख किमी है। सूर्य की प्रकाश द्वारा एक सेकण्ड में लगभग 3 लाख किमी दूरी तय की जाती है। इसे मानक मानकर पृथ्वी सूर्य से 8 मीनट 20 सेकण्ड दूर है। अर्थात सूर्य पृथ्वी तक पहुंचने में 500 सेकण्ड समय लगता है। सूर्य के चारो ओर दिखाई वाला पट्टी सूर्य का मुकुट कहलाती है। सूर्य में 71 प्रतिशत हाइड्रोजन, 26.5 प्रतिशत हीलियम तथा 2.5 प्रतिशत अन्य पदार्थ पाए जाते है।
सौरमंडल के ग्रह (Planet ) के बारे में
सूर्य के पश्चात सौरमंडल महत्वपूर्ण खगोलीय पिंड ग्रह है। ग्रह उन खगोलीय पिंड को कहा जाता है जो अपने नजदीक के तारे अर्थात सूर्य का चक्कर लगते है। उसमे अपना प्रकाश नहीं होता वह अपने जनक तारा सूर्य से प्रकाशित होते है। अंतर्राष्टीय खगोलीय संघ ( IAU ) की प्राग सम्मेलन ( 2006 ) के अनुसार ग्रह होने के लिए निम्न शर्ते होनी चाहिए।
- जो सूर्य के चारो ओर परिक्रमा करता हो।
- उसमे पर्याप्त गुरुत्वकर्षण बल होना चाहिए जिससे उसका स्वरूप गोलाकार ग्रहण कर सके।
- उनकी कक्षा अपने पड़ोसी ग्रह के मार्ग को न काटे।
उपरोक्त शर्तो के आधार पर वर्त्तमान समय में 8 ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, वृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण है।
सौरमंडल के ग्रहो से संबंधित तथ्य
- सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहो का क्रम – बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, वृहस्पति, शनि, अरुण ( यूरेनस ) और वरुण ( नेप्च्यून ) है।
- सबसे दूर का ग्रह – वरुण ( नेप्चून )
- सूर्य से सबसे नजदीक का ग्रह – बुध।
- आकार के अनुसार ग्रहो का क्रम ( घटते क्रम में ) – वृहस्पति, शनि, अरुण,वरुण, पृथ्वी, शुक्र, मंगल और बुध।
- सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह – वृहस्पति।
- सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह – बुध।
- घनत्व के अनुसार ग्रहो का क्रम (घटते क्रम में ) – पृथ्वी, बुध, शुक्र, मंगल, नेप्चून, वृहस्पति, अरुण और शनि।
- सबसे अधिक घनत्व वाला ग्रह – पृथ्वी।
- सबसे कम घनत्व वाला ग्रह – शनि।
- द्रव्यमान के अनुसार ग्रहो का क्रम ( बढ़ते क्रम में ) – बुध, मंगल, शुक्र, पृथ्वी, अरुण,वरुण, शनि, वृहस्पति।
- सबसे कम द्रव्यमान वाला ग्रह – बुध।
- सबसे अधिक द्रव्यमान वाला ग्रह – वृहस्पति।
- परिक्रमा वेग के अनुसार ग्रहो का क्रम ( बढ़ते क्रम में ) -बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, वृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण।
- सबसे अधिक परिक्रमा वेग -नेप्चून।
- सबसे कम परिक्रमा वेग – बुध।
- घूर्णन वेग के अनुसार ग्रहो का क्रम ( बढ़ते क्रम में ) – वृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, पृथ्वी, मंगल, बुध, शुक्र .
- सबसे अधिक घूर्णन वेग वाला ग्रह – शुक्र।
- सबसे कम घूर्णन वेग वाला ग्रह – वृहस्पति।
- अपने अक्ष पर झुकाव के आधार पर ग्रहो का क्रम ( घटते क्रम में ) – पृथ्वी, बुध, शुक्र, शनि, मंगल, वरुण, वृहस्पति, अरुण।
- सबसे अधिक झुका हुआ ग्रह – पृथ्वी।
- सबसे कम झुका हुआ ग्रह – अरुण।
ग्रहो से संबंधित कुछ और महत्वपूर्ण विन्दु
- शुक्र और अरुण को छोड़कर बाकि सभी छः ग्रह के घूर्णन एवं परिभ्रमण/परिक्रमण दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर वामवर्त ( घडी के सुई के दिशा के विपरीत Anticlock wise ) की और होती है। जबकि शुक्र और अरुण की परिभ्रमण एवं घूर्णन दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर दक्षिणावर्त ( घड़ी के सुई की दिशा के समान Clock wise ) होती है।
- शुक्र ग्रह पृथ्वी के सबसे निकट इसके पश्चात मंगल, बुध और वृहस्पति का स्थान आता है।
- पृथ्वी एवं शुक्र का आकर लगभग समान ( बराबर ) होने के कारण दोनों ग्रह को जुड़वाँ ग्रह ( Twin Planet ) कहा जाता है। इसी कारण से शुक्र ग्रह को पृथ्वी का बहन एवं भगनी भी कहा जाता है।
- शनि ग्रह के सर्वाधिक उपग्रह 30 से भी अधिक इसके बाद अरुण के लगभग 17, वृहस्पति के 16, वरुण के 8, मंगल के 2 , और पृथ्वी का 1 उपग्रह है।
- बुध और शुक्र के कोई उपग्रह नहीं है।
- फोबोस और डीमोस मंगल के दो उपग्रह है।
- शुक्र सौरमंडल के सबसे गर्म एवं चमकीला ग्रह है। इसे भोर एवं शांयकाल का तारा भी कहा जाता है।
- मंगल में लौह के ऑक्साइड अधिक होने के कारण इसे लाल ग्रह कहा जाता है।
- पृथ्वी में जल की अधिकता होने के कारण इसे नीला ग्रह कहा जाता है।
- शनि ग्रह तीन चमकदार संकेन्द्रिय वलयो से घिरा हुआ है।
- टाइटन शनि का सबसे बड़ा एवं फोबे सबसे छोटा उपग्रह है।
ग्रहो का वर्गीकरण
उपरोक्त वर्णित सभी आठ ग्रहो को कठोरता एवं सूर्य से दूरी के आधार पर दो भागो में विभाजित किया जाता है। इन दोनों ग्रह समूहों के मध्य में विभाजक के रूप में क्षुद्र ग्रह स्थित है।
(1) आंतरिक या भीतरी या पार्थिव ग्रह
- सूर्य और क्षुद्र ग्रह के मध्य में स्थित ग्रह को आंतरिक या भीतरी या पार्थिव ग्रह कहा जाता है। इसके अंतर्गत बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल को सम्मिलित किया जाता है।
- यह ग्रह आकर में छोटे तथा घनत्व में अधिक होते है वाह्य ग्रहो के अपेक्षा।
- ये ग्रह ठोस अवस्था में है।
- पृथ्वी की भांति शैलो एवं धातुओं होने के कारण इन ग्रहो को पार्थिव ग्रह कहा जाता है।
- सौर पवन के कारण भीतरी ग्रह के आदिकालीन गैस ( हाइड्रोजन तथा हीलियम ) लगभग समाप्त हो गए है या सूर्य द्वारा अवशोषित कर लिया गया है या भीतरी ग्रह के वायुमंडल से बाहर धकेल दिया गया है।
- भीतरी ग्रह के गुरुत्वाकर्षण शक्ति अपेक्षाकृत कम होने के कारण इनसे निकली हुई गैस इनपर रुक नहीं सकती।
बुध ( Mercury )
यह ग्रह सूर्य के सबसे नजदीक तथा सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। इसके पास कोई भी उपग्रह नहीं है। यह सूर्य की परिक्रमा सबसे कम समय में करता है। यह अपनी धुरी में 58.6 दिन में एक चक्कर घूमता है। तथा 88 दिन में सूर्य का परिक्रमा लगाता है। यहां दिन अत्यधिक गर्म एवं रातें बर्फीली होती है। इस ग्रह का तापांतर सभी ग्रहो से अधिक ( 600 डिग्री सेंटीग्रेड ) रहता है। रात में -173 डिग्री सेंटीग्रेड व दिन में 427 डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है। इसका सबसे महत्वपूर्ण गुण इसमें चुंबकीय क्षेत्र का पाया जाना है।
शुक्र ( Venus )
यह आंतरिक ग्रहो में से पृथ्वी के सबसे निकटतम ग्रह है। यह सबसे अधिक चमकीला तथा गर्म भी है। इसे भोर एवं सांझ( शाम ) का तारा भी कहा जाता है। यह पृथ्वी से शाम में पश्चिम दिशा तथा सुबह में पूरब में दिखाई देता है। यह अन्य ग्रहो के विपरीत दक्षिणावर्त ( घड़ी के सुई के दिशा के समान Chockwise ) चक्रण करता है।इसका घनत्व, आकर एवं व्यास लगभग पृथ्वी के समान होने के कारण इसे पृथ्वी का जुड़वाँ, बहन और भगिनी ग्रह के नाम से भी जाना जाता है।
इसमें भी बुध के भांति कोई उपग्रह नहीं पाया जाता है। यह सूर्य का परिक्रमा 243 दिन तथा अपने अक्ष पर एक घूर्णन करने में 224.7 दिन लगाता है। यहां दिन और रात के तापमान लगभग समान होता है। इसका वायुमंडल में 90 से 95 प्रतिशत कार्बन-डाई-ऑक्साइड है। इसके चारो ओर सल्फ्यूरिक एसिड के जमे हुए बादल पाए जाते है।
पृथ्वी ( Earth )
पृथ्वी सूर्य से दूरी के अनुसार तीसरा, घनत्व में सबसे अधिक घनत्व वाला ठोस ग्रह है। इस ग्रह की सबसे बड़ी विशेषता इसमें जल और जीवन की उपलब्धता पाया जाना है। चन्द्रमा पृथ्वी का एक मात्र प्राकृति उपग्रह है। पृथ्वी के बारे में और अधिक जानकारी के लिए इसे क्लिक कर विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते है।
मंगल ( Mars )
इसे लाल ग्रह कहा जाता है। इसका रंग लाल आयरन ऑक्साइड में अधिकता के कारण दिखाई देता है। यहां पृथ्वी के समान दो ध्रुव है तथा इसका कक्षातली 25 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है। जिसके कारण यहां पृथ्वी के समान ऋतु भी परिवर्तन होता है। इसके दिन का मान एवं अक्ष का झुकाव पृथ्वी के समान है। यह अपनी धुरी पर 24 घंटे में एक चक्कर लगता है। फोबोस और डीमोस इसका दो उपग्रह है। यह सूर्य का परिक्रमा 687 दिन में पूरा करता है। सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी ओलिपस मेसो तथा सौरमंडल का सबसे ऊँचा पर्वत निक्स ओलम्पिया जो माउन्ट एवरेस्ट से तीन गुना अधिक ऊँचा है इसी ग्रह पर स्थित है।
( 2 ) वाह्य या जोवियन या वृहस्पतिय ग्रह
- सौरमंडल में क्षुद्र ग्रह के बाहर स्थित सभी ग्रह को वाह्य या जोवियन या वृहस्पतिय ग्रह कहा जाता है।
- इसके अंतर्गत वृहस्पति, शनि, अरुण तथा वरुण को सम्मिलित किया जाता है।
- ये ग्रह वृहस्पति ग्रह के भांति गैसीय अवस्था में पाए जाने के कारण इसे जोवियन या वृहस्पतिय ग्रह कहा जाता है।
- ये ग्रह आकर में बड़े तथा घनत्व में अपेक्षाकृत कम होते है। सबसे कम घनत्व वाले चार ग्रह यही है।
- इन ग्रहो में हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों की अधिकता पाई जाती है।
- इन ग्रहो में सौर पवन का प्रभाव नहीं के बराबर होता है।
- ये ग्रह सूर्य से दूर पर अवस्थित होने के कारण इसे वाह्य ग्रह कहा जाता है।
वृहस्पति ( Jupiter )
यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह एवं सूर्य से दूरी के अनुसार पाँचवा ग्रह है इसे अपनी धुरी में चक्कर लगाने में 10 घंटे ( सबसे कम ) और सूर्य की परिक्रमा करने में 12 वर्ष लगते है। इसका द्रव्यमान सौरमंडल के सभी ग्रहो का 71 प्रतिशत है। इसका वायुमंडल हाइड्रोजन और हीलियम गैस की प्रधानता है। इसके 16 उपग्रह है। यह अत्यधिक गर्म ग्रह है। इसका अक्ष 1 डिग्री झुका होने के कारण यहां मौसम सदा एक समान रहता है।
शनि ( Saturn )
यह वृहस्पति के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। इसका सबसे अधिक उपग्रह है जिसकी संख्या 30 से भी अधिक है। इसका सबसे बड़ा उपग्रह का नाम टाइटन है। इसका घनत्व सभी ग्रहो एवं जल से भी कम है। यानि इसे जल में रखने पर तैरने लगेगा। इसके तल के चारो ओर 7 वलय छल्ले पाए जाते है। यह आकाश में पीले तारे के समान दिखाई पड़ता है।
अरुण ( Uranus )
यह सूर्य से सातवाँ निकटम ग्रह है इसके लगभग 17 उपग्रह है इसके चारो ओर पाँच धुंधले वलय अल्फ़ा, बीटा, गमा, डेल्टा और ईप्सिलास है। यह शुक्र के भांति अपने अक्ष तथा सूर्य की परिक्रमा पूर्व से पश्चिम की ओर दक्षिणावर्त ( घड़ी के सुई के दिशा के अनुरूप Clock wise ) घूमता है यह सौर मंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह ठंडा ग्रह है। इसका सबसे बड़ा उपग्रह टाइटेनिया है यह अपनी धूरी पर सूर्य की ओर इतना झुका हुआ है कि लेटा हुआ प्रतीत पड़ता है। इसलिए इसे लेटा हुआ ग्रह कहा जाता है।
वरुण ( Neptune )
यह सौर मंडल का सूर्य से सबसे दुरी पर स्थित ग्रह है इसके ट्रिटॉन तथा एन दो बड़े उपग्रह है यह धुंधला हरे रंग का ग्रह है। इसके चारो ओर अति शीतल मीथेन का बादल पाया जाता है।
सौरमंडल के उपग्रह ( Satellite ) के बारे में
- सौरमंडल के वे आकाशीय पिंड जो अपने ग्रहो के परिक्रमा करते है उपग्रह कहलाते है।
- ये सभी अपने ग्रहो के परिक्रमा करने के साथ-साथ सूर्य की भी परिक्रमा करते है।
- जिस तरह ग्रह चमक रहित होते है। उसी तरह उपग्रह के पास भी चमक नहीं होता है वे सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते है।
- अधिकतर ग्रहो के उपग्रह उसी दिशा में परिक्रमा करते है जिस दिशा में ग्रह, सूर्य की परिक्रमा करते है।
- अभी तक ज्ञात उपग्रहों में दस उपग्रह ऐसे है जो प्रतिकूल दिशा में परिक्रमा करते है।
- इनमे वृहस्पति के चार ,अरुण के चार, शनि तथा वरुण के एक-एक उपग्रह है।
पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा के बारे में
- चन्द्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।
- यह सौरमंडल का पाँचवा सबसे बड़ा उपग्रह है।
- यह पृथ्वी से औसतन 3,84,365 किमी की दूरी पर स्थित है।
- इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 1/81 भाग है।
- चन्द्रमा का व्यास 3478 किमी है।
- इसका आकर पृथ्वी के आकर का लगभग 1/4 भाग है।
- इस उपग्रह में टाइटेनियम अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है।
- चन्द्रमा पर गुरुत्वाकर्षण बल का मान पृथ्वी के तुलना में 1/6 भाग के बराबर है। जिसके कारण इसका वयुमण्डल विरल पाया जाता है।
- इसको अध्ययन करने वाला विज्ञान को सेलेनोलॉजी कहा जाता है।
सौरमंडल के बौने ग्रह ( Dwarf Planet ) के बारे में
- बौने ग्रह, ग्रह से छोटे होते है।
- यह सूर्य की परिक्रमा करते है न कि किसी ग्रह के।
- इसकी स्थिति सौरमंडल के बहरी भाग, वरुण ग्रह के बाद होती है।
- इसके पास इतना गुरुत्वाकर्षण बल होता है कि वे अपने भार को खींचकर आकार दे सकता है।
- इसका कोई उपग्रह नहीं होता है।
- बौने ग्रह और एक ग्रह में अंतर होता है। एक ग्रह के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण दूसरे छोटे-बड़े पिंड या तो उसकी कक्षा या परिक्रमा पथ में आ जाते है या दूर चले जाते है किन्तु बौने ग्रह का गुरुत्वाकर्षण बल यह करने में सक्षम नहीं होता अतः उसे ग्रह की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।
- अबतक अंतरार्ष्ट्रीय खगोलीय संघ ( IAU )ने पाँच बौने ग्रहो की पहचान की है। – सीरस, यम ( प्लूटो ), आईरिस, मेकमेक और हउमेया
सौरमंडल के बौने ग्रह यम ( Pluto )के बारे में
- यह सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है। इससे बड़ा आईरिस बौना ग्रह है।
- वर्ष 2006 से पहले प्लूटो को सौरमंडल का सबसे बहरी एवं नौवां ग्रह माना जाता था।
- अगस्त 2006 की अंतराष्ट्रीय खगोलीय संघ ( IAU ) की प्राग सम्मेलन में ग्रह कहलाने के मापदंड पर खरे नहीं उतरने के कारण प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से अलग कर बौने ग्रह की श्रेणी में रखा गया।
- प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से निकाले जाने के तीन कारण बताये गए है।
- 1. आकार में चन्द्रमा से छोटा होना।
- 2. इसकी कक्षा का वृताकार नहीं होना।
- 3. वरुण की कक्षा को काटना।
सौरमंडल के धूमकेतु या पुच्छल तारे ( Comets )
यह धूल, बर्फ,एवं हिमानी गैसों के पिंड होते है जो सूर्य से दूर ठंडे एवं अँधेरे क्षेत्रो में होते है। तथा अपनी कक्षा में घूमते हुए कई वर्षो के बाद जब सूर्य के समीप से गुजरते है तो गर्म होकर गैस का फुहार निकलती है और यह एक लम्बी पूंछ के समान दिखाई देती है। जो कभी-कभी अत्यधिक लम्बी होती है। समान्यतः पुच्छल तारे में पूंछ नहीं होती है। किन्तु वह जैसे ही सूर्य के समीप से गुजरता है वैसे ही सूर्य अपनी गर्मी से उसकी बाहरी हिस्से में वाष्पीकृत हो जाता है। जिससे वह गैस के बादल में बदल जाते है और सिर ( Head ) का निर्माण होता है। इसकी पूंछ सूर्य से सदैव दूर पर होती है।
वर्ष 1986 में हैली पुच्छल तारा दिखाई दिया था। यह तारा 76.3 वर्षो बाद सूर्य के समीप आया था। इसी भांति ऐन्की धूमकेतु प्रति तीन वर्ष बाद सूर्य के समीप से गुजरता है। वर्ष 1974 में दिखाई देने वाला कोहुतेक धूमकेतु 75 हजार वर्षो बाद दिखाई देगा खगोलशास्त्रियों को मानना है कि सौरमंडल में लगभग एक लाख धूमकेतु घूम रहे है। जो कई लाखो वर्षो बाद सूर्य के समीप पहुंचते है।
सौरमंडल के क्षुद्रग्रह या आवांतर ग्रह ( Asteroids )
मंगल और वृहस्पति ग्रह के बीच लगभग 547 मिलियन किमी क्षेत्र में कई छोटे-छोटे आकाशीय पिंड सूर्य की परिक्रमा कर रहे है इसे क्षुद्रग्रह या आवांतर ग्रह कहा जाता है। सर्वप्रथम सिरस नामक आवांतर ग्रह इटली के खगोलशास्त्री पियाजी द्वारा देखा गया था इसके बाद पलास जूनो तथा फोर वेस्टा की खोज हुई।
खगोलशस्त्रियों के अनुसार ग्रहो के विस्फोट के फलस्वरूप टूटे टुकड़े से क्षुद्र ग्रहो का निर्माण हुआ है।
उल्का पिंड और उल्काश्म ( Meteurs and Shooting Star )
अंतरिक्ष में भ्रमण करते हुए धूल और गैस पिंड जब पृथ्वी के समीप से गुजरते है तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण तेजी से पृथ्वी की ओर आते है। ये पृथ्वी के वायुमंडल में आकर घर्षण से चमकने लगते है और पृथ्वी पर पहुंचने से पहले ही जलकर राख हो जाते है, इन्हे ही उल्का पिंड कहा जाता है। इसे टूटता हुआ तारा के रूप में भी जाना जाता है। जब कुछ पिंड पूर्णतः जल नहीं पाते है एवं पृथ्वी पर चट्टान के रूप में गिरते है तो उन्हें उल्काश्म कहा जाता है।
आसा करते है कि उपरोक्त सौरमंडल के बारे में रोचक जानकारियों से आपलोगों के ज्ञान में वर्धन हुआ होगा और सौरमंडल के खगोलीय पिंडो से परिचित हुए होंगे।
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thank you sir ji.