नमस्कार मित्रों ! आज हमलोग इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगें कि, अक्षांश और देशांतर क्या है ? अक्षांश और देशांतर से संबंधित उन तमाम पहलुओं से परिचित होंगें जो हमे पृथ्वी के बारे में जानने में मदद करेगा। साथ ही साथ पृथ्वी पर किसी स्थान की स्थिति कैसे निर्धारित की जाती है। किसी स्थान के समय और तिथि कैसे अक्षांश और देशांतर से प्रभावित होते है इत्यादि।
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अक्षांश और देशांतर के बारे में
अगर मैं आपसे पूछूँ की आपकी स्थति इस पृथ्वी पर कहाँ है तो, आपका उत्तर क्या होगा जरा सोचिये। हमारी पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न लक्षणों, स्थानों की स्थिति इस पृथ्वी पर कहाँ है ? इसे कैसे निर्धारित किया जाता है? इसे निर्धारित करने के लिए ग्लोब ( पृथ्वी ) पर कुछ काल्पनिक क्षैतिज एवं उर्ध्वाधर रेखाएं खींची जाती है, इन्हे ही अक्षांश और देशांतर रेखाएं कहा जाता है। इन्हे भौगोलिक निर्देशांक कहा जाता है। इसका उपयोग करके किसी भी स्थान की स्थिति, दूरी तथा दिशा को आसानी से निर्धारित किया जा सकता है।
क्या आपने कभी अपनी पृथ्वी पर स्थिति जानने का प्रयास किया है। गूगल ( Google ) के एक महत्वपूर्ण टूल गूगल मैप ( Google Maps ) के माध्यम से अपनी स्थिति को आसानी से पता कर सकते है जो लगभग सभी एंड्राइड मोबाइल में उपलब्ध होता है। अगर नहीं है तो आप प्ले स्टोर से इसे डाउनलोड करके उपयोग कर सकते है।
हमारी पृथ्वी अपनी अक्ष पर पश्चिम से पूरब की ओर वामवर्त ( घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में – Anticlock wise ) में घूर्णन करती है। इस अक्ष के उत्तरी भाग को उत्तरी ध्रुव तथा दक्षणी भाग को दक्षणी ध्रुव कहा जाता है। ये दोनों विन्दु भौगोलिक ग्रिडों का आधार पदान करते है। भौगोलिक ग्रिडों से तातपर्य अक्षांश और देशांतर से है।
ग्लोब या पृथ्वी पर अनंत अक्षांश समांतर एवं देशांतरीय याम्योत्तर रेखाएं खींची जा सकती है, उनमे से कुछ चुनी हुई रेखाएँ ही मानचित्र पर खींची जाती है। अक्षांशो और देशान्तरों को डिग्री या अंश ( ० ) में मापी जाती है, क्योकि ये कोणीय दूरी को प्रदर्शित करती है। प्रत्येक डिग्री को 60 मिनट ( ‘ ) एवं प्रत्येक मिनट को 60 सेकेण्ड ( ” ) में विभाजित किया जाता है।
अक्षांश और देशांतर रेखाओं को जानने से पहले अक्षांश और देशांतर को जानना होगा।
अक्षांश ( Latitude )
ग्लोब पर किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर पृथ्वी के केंद्र पर कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते है। यहाँ पर कोणात्मक दुरी का संबंध भूमध्य रेखा से पृथ्वी के केंद्र पर बनने वाला कोण से है। यदि कोई स्थान भूमध्य रेखा के उत्तर में है तो उसका अक्षांश उत्तरी और यदि दक्षिण में है तो उसका अक्षांश दक्षणी होगा।
चित्र में पृथ्वी के एक स्थान A है, जिसका विषुवत रेखा से पृथ्वी के केंद्र पर बनने वाला कोण 45 डिग्री है। अतः इस A स्थान का अक्षांश 45 डिग्री होगा।
हमारी पृथ्वी का आकर लगभग गोलाकार है। और एक गोले में 360 डिग्री होते है। यदि हम विषुवत रेखा को आधार बनाकर चले तो विषुवत रेखा का मान 0 डिग्री होगा। यदि हम विषुवत रेखा से उत्तरी तथा दक्षणी ध्रुव पर जाएं तो हम पृथ्वी के गोले का एक चैथाई हिस्सा पर होते है। अर्थात 90 डिग्री का मान ध्रुवो का होगा। अतः पृथ्वी तल पर अक्षांश 0 से 90 डिग्री उत्तरी तथा 90 डिग्री दक्षणी तक ही होते है। अतः पृथ्वी के किसी भी स्थान का अक्षांश 90 डिग्री से अधिक नहीं होगा।
अक्षांश रेखाएँ या समांतर रेखाएँ या अक्षांश वृत्त ( Parallels Of Latitude )
एक समान अक्षांशो को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को अक्षांश रेखा कहा जाता है। चूँकि यह विषुवत रेखा के समांतर पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व की ओर खींची जाती है। अतः इन रेखाओं को अक्षांश समांतर भी कहा जाता है। ये रेखाएँ पूर्ण वृत्त होती है और ध्रुवो की ओर जाने पर वृत्त छोटे होने लगते है।
दूसरे शब्दों में विषुवत रेखा से एक समान कोणीय दूरी वाले स्थानों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को अक्षांश रेखा कहा जाता है, ये रेखाएँ विषुवत रेखा के समांतर होती है।
पृथ्वी पर दोनों ध्रुवो अर्थात उत्तरी तथा दक्ष्णि ध्रुवो के मध्य क्षैतिज काल्पनिक रेखा को भूमध्य रेखा ( विषुवत रेखा, 0 डिग्री अक्षांश रेखा ) या भूमध्य वृत्त कहा जाता है। यह वृत्त ग्लोब या पृथ्वी को दो बराबर भागो में विभाजित करती है। उत्तरी भाग को उत्तरी गोलार्द्ध तथा दक्षणी भाग को दक्षणी गोलार्द्ध कहा जाता है। अतः इसे वृहत वृत्त ( Great Circle ) कहा जाता है। विषुवत वृत्त के उत्तरी तथा दक्षणी अन्य समांतर रेखाओं या वृत्त, विषुवत वृत्त से छोटी तथा ग्लोब को आसमान भागो में विभाजित करती है। अतः इन वृतो को लघु वृत्त ( Small Circle ) के नाम से जाता जाता है। विषुवत वृत्त से ध्रुवो की ओर जाने पर अक्षांश समानंतरो की लम्बाई उत्तरोत्तर घटती जाती है। और ध्रुव तक आते आते एक विन्दु में परिणित हो जाती है।
भूमध्य ( विषुवत ) रेखा के उत्तर में स्थित अक्षांश रेखाओं को उत्तरी अक्षांश रेखाएँ तथा दक्षिण में स्थित अक्षांश रेखाओं को दक्षणी अक्षांश रेखाएँ कहा जाता है। ग्लोब पर अक्षांश रेखाओं की संख्या अनंत हो सकती है। किन्तु अदि इनको 1 डिग्री के अंतराल पर खींचते है ,तो दोनों गोलार्द्धों में 89-89 अक्षांश वृत्त होंगे। दोनों ध्रुवों पर 90 डिग्री का अक्षांश वृत्त एक विन्दु में परिणित हो जाता है। अतः इसे गिनती में शामिल नहीं किया जाता है। इस तरह से कुल अक्षांश वृत्त की संख्या 89+89+1( विषुवत वृत्त )= 179 होते है।
किसी स्थान की स्थिति विषुवत वृत्त के उत्तर या दक्षिण में होने के आधार पर अक्षांशो के मान के साथ उत्तरी ( N ) तथा दक्षिणी ( S ) लिखा जाता है।
यदि हमारी पृथ्वी विल्कुल गोल होती तो 1 डिग्री समांतर अक्षांशो के मध्य दूरी 111 किमी होता, किन्तु ऐसा नहीं है, क्योकि यह ध्रुवो पर चपटी है,अतः 0 डिग्री अक्षांश पर 1 डिग्री समांतर की दूरी सबसे कम 110.569 किमी, जबकि ध्रुवों पर सर्वाधिक 111.700 किमी हो जाती है।
23 डिग्री 30 मिनट उत्तरी अक्षांश वृत्त को कर्क रेखा तथा 66 डिग्री 30 मिनट उत्तरी अक्षांश वृत्त को उत्तरी ध्रुवीय वृत्त कहा जाता है।
23 डिग्री 30 मिनट दक्षिणी समांतर को मकर रेखा तथा 66 डिग्री 30 मिनट दक्षिणी अक्षांश वृत्त को दक्षिणी उप ध्रुवीय वृत्त कहा जाता है।
ध्रुवो के अतिरिक्त ग्लोब पर प्रत्येक विन्दु किसी न किसी अक्षांश वृत्त पर स्थित होता है।
अक्षांश रेखाओं को ज्ञात करने की विधि
इन अक्षांश रेखाओं की ज्ञात करने के लिए निम्न दो विधियों का उपयोग किया जा सकता है।
( 1. ) ध्रुव तारा के माध्यम से
आश्मान में ध्रुव तारा उत्तर दिशा में चमकता है जिससे विषुवत रेखा पर इसकी स्थिति क्षैतिज होती है। इससे विषुवत रेखा पर 0 डिग्री तथा उत्तरी ध्रुव पर 90 डिग्री का कोण बनता है। उत्तरी गोलार्द्ध से किसी स्थान पर ध्रुव तारा का बनने वाला कोण ही उस स्थान का अक्षांश होता है।
( 2. ) सूर्य के माध्यम से
21 मार्च और 23 सितंबर को मध्यान ( दोपहर 12 बजे ) के समय सूर्य विषुवत रेखा पर लंबवत चमकता है अर्थात सूर्य की किरणे एकदम सीधी पड़ती है। या यूँ कहे कि कोई व्यक्ति इन तिथियों में मध्यान के समय विषुवत वृत्त पर खड़ा होता है तो उसकी परछाया ( छाया ) उसी को घेरे हुए उसके पैर के नीचे होगा। विल्कुल उसको ढके हुए।
किसी स्थान पर इन तिथियों को किसी वस्तु के बनने नाली छाया का कोण वस्तु के शीर्ष पर बनने वाला कोण में 90 डिग्री घटाकर उस स्थान का अक्षांश ज्ञात किया जा सकता है।
चित्र के अनुसार B स्थान पर एक छड़ी समकोण पर गाड़कर मध्यान के समय बनने वाली कोण छड़ी के शीर्ष में बनने वाली कोण को 90 डिग्री में घटाने से अक्षांश प्राप्त हो जाता है।
B स्थान का अक्षांश मान = 90 डिग्री – 30 डिग्री = 60 डिग्री अक्षांश
देशांतर ( Longitude )
ग्लोब पर देशांतर को जानने से पहले हमे देशांतर रेखाओं या यम्योत्तर को जानना होगा।उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाओं को देशांतर रेखा कहा जाता है। ये रेखाएँ विषुवत वृत्त पर समकोण बनाती है।
इन रखाओं की गणना के लिए किसी एक देशांतर रेखा को मनक बनाकर उपयोग किया जा सकता है। किन्तु हरेक देश अपने अनुसार किसी भी देशांतर रेखा को मानक देशांतर रेखा मानकर उपयोग करें तो इससे किसी भी स्थान की स्थिति अलग अलग देशो के लिए अलग-अलग होगा और एक सर्वमान्य देशांतर या उस स्थान की स्थिति, समय, दूरी स्पष्ट नहीं हो पाएगी।
इस समस्या के निवारण के लिए वाशिंगटन डीसी में 22 अक्टूबर 1884 को एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते के द्वारा इंग्लैण्ड में लंदन के पूर्व में ग्रीनविच ( Greenvich ) नामक स्थान पर स्थित रॉयल वेधशाला से गुजरने वाली देशांतर रेखा को प्रधान मध्याह्न या याम्योत्तर ( Prime Meridian ) माना गया और इसे ग्रीनविच मध्याह्न या याम्योत्तर ( Greenvich Meridian ) का नाम दिया गया।
जिस प्रकार अक्षांश को निर्धारित करने के लिए विषुवत रेखा को आधार बनाया जाता है, उसी प्रकार किसी स्थान का देशांतर जानने के लिए ग्रीनविच मध्याह्न देशांतर रेखा को आधार मानकर निर्धारित किया जाता है। ग्रीनविच मध्याह्न को 0 डिग्री देशांतर रेखा निर्धारित किया गया है।
प्रधान मध्याह्न ( 0 डिग्री ) ग्रीनविच रेखा से किसी स्थान की पूरब अथवा पश्चिम की ओर कोणात्मक दूरी को उस स्थान का देशांतर कहलाता है। जैसे – चित्र के अनुसार A स्थान ग्रीनविच रेखा से पूर्व पर स्थित है। और इस स्थान का ग्रीनविच से केंद्र पर बनने वाला कोण 50 डिग्री है अतः A स्थान का देशांतर 50 डिग्री पूर्व होगा।
देशांतर रेखाएँ ( Meridian Of Longitude )
समान देशांतरों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को देशांतर रेखा कहा जाता है। ये रेखाएँ अनंत हो सकती है। ये रेखाएँ उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव को जोड़ती है। इन्हे Meridians Of Longitude या Lines Of Longitude भी कहा जाता है।
पृथ्वी या ग्लोब को पूर्व और पश्चिम में विभजित करने वाली वृत्त को देशांतरीय याम्योत्तर कहा जाता है। ये रेखाएं उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव से होकर गुजरती है अर्थात यह उत्तर से दक्षिण की ओर विषुवत वृत्त के लंबवत खींची जाती है। दो देशांतरीय याम्योत्तर रेखाओ के मध्य दूरी विषुवत रेखा पर सर्वाधिक तथा ध्रुवो की ओर जाने पर उत्तरोत्तर घटती जाती है।
ग्लोब के केंद्र पर 360 डिग्री का कोण बनता है अतः 1 डिग्री के अंतराल से 360 देशांतर रेखाएँ खींची जा सकती है। 1 डिग्री देशांतर की विषुवत रेखा पर दूरी 111.32 किमी होती है जो ध्रुवो की और क्रमशः घटती जाती है। यह ध्रुवो पर 0 किमी हो जाती है।
प्रधान याम्योत्तर ( Prime Meridean ) से पूर्व तथा पश्चिम 180-180 डिग्री देशांतर रेखाएँ होती है। इसकी कुल संख्या प्रधान याम्योत्तर सहित 360 होती है।
प्रधान याम्योत्तर 0 डिग्री देशांतर रेखा को अंतरार्ष्ट्रीय समय रेखा तथा 180 डिग्री देशांतर रेखा को अंतरार्ष्ट्रीय तिथि रेखा कहा जाता है।
देशान्तरों का उपयोग प्रमुख याम्योत्तर के सापेक्ष स्थानीय समय को निर्धारित करने में किया जाता है।
देशांतर रेखाएँ और समय ( Lines of Longitude and Time )
किसी भी स्थान का देशांतर उस स्थान का समय निर्धारक होता है।अतः देशांतर और समय में काफी घनिष्ट संबंध होता है। हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक चक्कर लगती है। इस प्रक्रिया में पृथ्वी 360 डिग्री घूम जाती है। अतः पृथ्वी एक घंटे में 360 / 24 = 15 डिग्री घूमती है।
यदि दो स्थान A और B एक दूसरे से 15 डिग्री पूरब अथवा पश्चिम में है, तो उनके समय में 1 घंटे का अंतर होगा। और जिन स्थानों के देशांतर में 1 डिग्री का अंतर होगा, उनके समय में 60 / 15 = 4 मिनट का होगा।
हमारी पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। इसलिए पूर्व में स्थित स्थानों पर सूर्योदय पहले होता है। अतः जैसे-जैसे हम पूर्व की और जाते है समय में वृद्धि होते जाती है। और इसके विपरीत जैसे-जैसे हम पश्चिम की ओर बढ़ते है वैसे-वैसे समय में देरी होती जाती है।
कुछ उद्हारण से समझते है।
उद्हारण 1. – भारत का मानक समय क्या होगा ? जबकि ग्रीनविच याम्योत्तर पर दोपहर के 12:00 बजे है ( भारत का मानक समय रेखा प्रयाग राज (अल्लाहाबाद )के नैनी से होकर गुजरने वाली देशांतर 82 डिग्री 30 मिनट पूर्व से मापा जाता है।
हल :- ग्रीनविच का देशांतर 0 डिग्री तथा प्रयाग राज का देशांतर 82 डिग्री 30 मिनट है। अतः दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = (82 डिग्री 30 मिनट – 0 डिग्री ) = 82 डिग्री 30 मिनट होगा। चूँकि 1 डिग्री देशांतर के अंतर होने पर समय में 4 मिनट का अंतर होता है। अतः 82 डिग्री 30 मिनट देशांतर में अंतर होने पर समय में अंतर = (82 डिग्री 30 मिनट गुने 4 )= 330 मिनट अथवा 330 / 60 = 5 घंटे 30 मिनट का अंतर होगा।
क्योकि प्रयाग राज ग्रीनविच से पूर्व में स्थित है इसलिए वहाँ का समय ग्रीनविच के समय से आगे होगा। अर्थात जब ग्रीनविच पर दोपहर के 12 बजेगा तब प्रयाग राज अर्थात समूचे भारत में (क्योकि भारत का स्थानीय समय 82 डिग्री 30 मिनट पर ही निर्धारित किया जाता है। ) शाम के 5 : 30 का समय होगा।
उद्हारण 2. – यदि ग्रीनविच पर दोपहर के 12 बजे है तो 74 डिग्री पश्चमी देशांतर पर स्थित न्यूयार्क सिटी में क्या समय होगा।
हल :- ग्रीनविच का देशांतर 0 डिग्री तथा न्यूयार्क के देशांतर 74 डिग्री है। अतः दो स्थानों के देशांतरों में अंतर = (74 डिग्री – 0 डिग्री )= 74 डिग्री होगा। चूँकि 1 डिग्री देशांतर के अंतर होने पर समय में 4 मिनट का अंतर होता है। अतः 74 डिग्री देशांतर में अंतर होने पर समय में अंतर = (74 डिग्री गुने 4 )= 296 मिनट अथवा 296 / 60 = 4 घंटे 56 मिनट का अंतर होगा।
क्योकि न्यूयार्क ग्रीनविच से पश्चिम में स्थित है इसलिए वहाँ का समय ग्रीनविच के समय से पीछे होगा। अर्थात जब ग्रीनविच पर दोपहर के 12 बजेगा तब न्यूयार्क में सुबह के 7 बजके 04 मिनट का समय होगा।
स्थानीय समय ( Local Time )
पृथ्वी पर किसी स्थान का स्थानीय समय सूर्य पर निर्भर करता है। पृथ्वी पर किसी स्थान विशेष का समय सूर्य की स्थिति से परिकलित समय स्थानीय समय कहलाता है। स्थानीय मध्यमान उस समय होता है जब सूर्य आकाश में अपनी उच्चतम स्थिति में पहूँच जाता है। और पृथ्वी पर किसी वस्तु की छाया सबसे कम हो जाती है। और जब सूर्य किसी देशांतर पर लंबवत होता है तो उसे दोपहर के 12 बजे मान लिया जाता है, और घडियो में दोपहर के 12 बजा लिए जाते है। इस स्थिति में वहाँ की घड़ियाँ उस स्थान का स्थानीय समय दिखाएगी। एक ही देशांतर पर स्थित सभी स्थानों का स्थानीय समय एक जैसा ही होता है।
प्रामाणिक ( मानक ) समय ( Standard Time )
प्रामाणिक समय एक प्रामाणिक देशांतर का स्थानीय समय होता है। जैसे भारत का प्रमाणिक समय 82 डिग्री 30 मिनट पूर्वी देशांतर को माना गया है, इसी आधार पर सम्पूर्ण भारत में एक समान समय होता है, पूरे विश्व का प्रमाणिक समय ग्रीनविच याम्योत्तर रेखा से प्रमाणित क्या जाता है।
यदि प्रत्येक स्थान अपना-अपना स्थानीय समय का प्रयोग करे तो रेडिओ, रेलवे, वायु परिवहन, दूरदर्शन जैसी सार्वजनिक सेवाओं में बहुत गड़बड़ी हो जाएगी। इस समस्या के समाधान के लिए 1884 ई. में वाशिंगटन डीसी में एक अंतरार्ष्ट्रीय सहमति के तहत इंग्लैण्ड के ग्रीनविच स्थान से गुजरने वाली देशांतर रेखा को मानक समय रेखा मानकर विश्व को 24 समय कटिबंधो में विभाजित किया गया है।
अंतराष्ट्रीय तिथि रेखा ( International Date Line )
पृथ्वी पर 180 डिग्री देशांतर के सहारे स्थल खण्डों को छोड़ते हुए एक काल्पनिक रेखा निर्धारित की गई है जीसे अंतरार्ष्ट्रीय तिथि रेखा कहा जाता है, क्योकि इस रेखा के दोनों ओर तिथियों में एक दिन का अंतर हो जाता है।
ग्रीनविच ( 0 डिग्री ) देशांतर तथा 180 डिग्री देशांतर के बीच 24 घंटे का अंतर होता है, ऐसा इसलिए होता है, क्योकि जब हम ग्रीनविच के पूर्व में समय का गणना करते है तो,180 डिग्री पूर्व पर समय 12 घंटा आगे होता है, तथा ग्रीनविच के पश्चिम 180 डिग्री जाने पर समय 12 घंटे पीछे चला जाता है, इस प्रकार 180 डिग्री देशांतर पर कुल 24 घंटे का अंतर हो जाता है।
एक उद्हारण से समझते है, यदि ग्रीनविच पर रविवार 15 नवम्बर 2020 को दोपहर के 12 बजे हो तो 180 डिग्री पूर्वी देशांतर पर 15 नवंबर, 2020 की मध्य रात्रि होगी, जबकि 180 डिग्री पश्चिमी देशांतर पर 14 नवम्बर 2020 की मध्य रात्रि होगी।
इसका तातपर्य यह हुआ कि, 180 डिग्री देशांतर के दोनों ओर दो अलग-अलग तिथियों पाई जाती है। 180 डिग्री देशांतर रेखा को पूर्व की ओर लांघने है तो, एक दिन दोहराया जाता है और इसे पश्चिम की ओर लांघते है तो एक दिन कम कर दिया जाता है।
निष्कर्ष
अक्षांश और देशांतर एक निर्देशांक के रूप में होता है। जिसके माध्यम से पृथ्वी के कोई स्थान, क्षेत्र की वस्तविक स्थिति को निर्धारित किया जाता है। उम्मीद करते है कि आपलोगो को इससे संबंधित तथ्यों को समझने में मदद मिला होगा।
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