नमस्कार दोस्तों ! आज हमलोग इस लेख में भारत का अपवाह तंत्र के अंतर्गत भारत के गंगा नदी तंत्र के बारे में जानेंगे। इसके तहत आने वाली प्रमुख नदियों के भौगोलिक विशेषताओं को जनने का प्रयास करेंगे। यह नदी तंत्र अपनी अपवाह द्रोणी और सांस्कृतिक महत्व के कारण भारत के सबसे महत्वपूर्ण नदी तंत्र के रूप में जानी जाती है। गंगा अपवाह तंत्र कृषि की दृष्टी से काफी महत्वपूर्ण स्थान रखती है।खद्यान फसलों का सर्वाधिक उत्पादन इसी बेसीन में किया जाता है। जिसके कारण यहाँ भारत का लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या से अधिक निवास करती है।
इस नदी तंत्र के अंतर्गत गंगा तथा इसकी सहायक नदियों के अपवाह क्षेत्र को सम्मिलित किया जाता है। यह नदी तंत्र भारत के सबसे बड़ी नदी तंत्र है जिसका क्षेत्रफल 8,61,452 वर्ग किमी है। इस नदी तंत्र में हिमालय पर्वत से निकलने वाली अधिकांश नदियोंके साथ-साथ प्रायद्वीय पठार से निकलने वाली उन नदियों को शामिल किया जाता है जो विंध्यन पर्वत, मालवा का पठार, बुंदेलखंड, बघेलखण्ड के पठार निकलकर उत्तर की ओर प्रवाहित होते हुए गंगा और यमुना में मिलती है। जैसे:- सिंध, केन, बेतवा, चंबल आदि साथ ही साथ सोन, दामोदर नदी तंत को शामिल किया जाता है।
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गंगा नदी तंत्र की नदियाँ
इस नदी तंत्र को जल स्रोत के आधार पर दो भागो में विभाजित किया जाता है।
- हिमालय से निकलने वाली नदियाँ – यमुना, गोमती, शारदा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा आदि।
- प्राद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियाँ – चंबल, सिंध, बेतवा, केन, सोन, पुनपुन, दामोदर आदि।
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
इसके अंतर्गत उन नदियों को शामिल किया जाता है। जिसका उद्गम स्रोत हिमालय है। इन नदियों में जल का स्रोत वर्षा के साथ-साथ हिमालय के हिमानी भी है। इसलिए ये नदियाँ बारहमासी या सदावाहनी होती है। हिमालय से निकलने वाली नदियों में गंगा के अतिरिक्त इसमें मलने वाली अन्य महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ निम्नलिखित इस प्रकार है।
गंगा नदी
गंगा नदी तंत्र के सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्व नदी गंगा है। जिसमे गंगा नदी तंत्र की सभी सहायक नदियाँ मिलती है। यह भारत की सबसे बड़ी एवं लम्बी नदी है। इसकी लम्बाई देवप्रयाग ( उत्तराखंड ) से बंगाल की खाकी तक 2525 किमी है। यह नदी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में माना दर्रे के निकट गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनदी से 3900 मीटर की उचाई से निकलती है। गोमुख से लेकर देवप्रयाग तक इसको भागीरथी के नाम से जाता जाता है। देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के मिलने के बाद इसे गंगा के नाम से जाना जाता है।
प्रयाग – नदियों के संगम स्थल को प्रयाग कहा जाता है। जहाँ दो या दो से अधिक नदियाँ आपस में मिलती है। जैसे – प्रयागराज, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, विष्णुप्रयाग, कर्णप्रयाग, आदि।
धौली गंगा और विष्णु गंगा, विष्णु प्रयाग या जोशीमठ में मिलती है जहाँ से इसे अलकनंदा के नाम से जाना जाता है। कर्णप्रयाग में पिंडर नदी अलकनंदा से मिलती है आगे प्रवाहित होते हुए अलकनंदा रूद्र प्रयाग में मंदाकिनी नदी से मिलती है इसके बाद अलकनंदा देवप्रयाग में भागीरथी से मिलती है और गंगा का निर्माण करती है।
गंगा नदी हरिद्वार के निकट पर्वतीय प्रदेश को छोड़कर मैदानी प्रदेश में प्रवेश करती है। यहाँ से यह पहले दक्षिण की ओर फिर दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए प्रयागराज में यमुना से मिलती है उसके बाद पूर्व की दिशा में बहती है। अंत में फरक्का बांध/ बराज ( प.बंगाल ) के नीचे यह दक्षिण-पूर्व दिशा में मुड़ जाती है और दो भागो में विभाजित हो जाती है। हुगली तथा पद्मा। हुगली कोलकाता से होकर तथा पद्मा बंगलादेश से होकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
इसकी लम्बाई 2525 किमी है। यह उत्तराखंड में 110 किमी, उत्तर प्रदेश में 1450 किमी, बिहार में 445 किमी, और पश्चिम बंगाल में 520 किमी तक प्रवाहित होती है।
यमुना नदी
गंगा नदी तंत्र की सबसे बड़ी सहायक नदी यमुना है इसकी लम्बाई 1375 किमी है। यह नदी यमुनोत्री हिमनदी से हिमालय में बन्दरपूँछ श्रेणी के पश्चिमी ढाल पर 6316 मीटर की उचाई से निकलती है। मसूरी श्रेणी के निकट ताजेवाल नामक स्थान पर यह मैदानी प्रदेश में प्रवेश करती है। यह नदी गंगा के समानांतर दक्षिण-पूर्व में प्रवाहित होते हुए प्रयागराज में इसका संगम गंगा नदी के बायें तट होता है।
हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच यह एक सीमा रेखा बनाती है। इस नदी के तट पर दिल्ली, मथुर और आगरा शहर बसा हुआ है। यमुना नदी की अधिकांश सहायक नदियाँ इसके दाहिने तट पर आकर मिलती है। जिनका उद्गम प्रायद्वीपीय पठार में अरावली पर्वत, विंध्यन पर्वत और मालव एवं बुंदेलखंड के पठार से होता है। ये नदियाँ चंबल, सिंध, केन, बेतवा आदि प्रमुख है। इसे बाएं तट पर हिंडन, रिन्द, सेंगर,वरुणा, आदि नदियाँ मिलती है।
यह नदी तंत्र का अपवाह क्षेत्र लगभग लगभग 3,66.223 वर्ग किमी है जो मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, दक्षिण-पूर्व राजस्थान, उत्तरी-पश्चिमी मध्य प्रदेश में फैला हुआ है। इस नदी का अधिकांश जल का उपयोग सिचाई के लिए किया जाता है। यमुना नदी से पूर्वी तथा पश्चिमी यमुना नहर और आगरा नहर निकला गया है।
शारदा नदी
इसे सरयू नदी के नाम से भी जाना जाता है इसका उद्गम कुमायूं हिमालय के मलान हिमनद से हुआ है जहाँ इसे गौरीगंगा के नाम से जाना जाता है। यह भारत और नेपाल के मध्य सीमा रेखा बनती है इसकी लम्बाई 602 किमी है। इसकी सहायक नदियां लिसार, पूर्वी रामगंगा, चौकिया आदि है। इस नदी को सीमा क्षेत्र में काली या काली गंगा या चैका के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी बाराबंकी के निकट घाघरा नदी में मिलती है। घाघरा नदी में मिलने से पहले इसे चौका कहा जाता है।
रामगंगा नदी
इसका उद्गम नैनीताल के निकट मुख्य हिमालय के दक्षिणी भाग में हुआ है। इसकी कुल लम्बाई 696 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 32,800 वर्ग किमी है। कन्नौज के निकट यह गंगा में जाकर मिल जाती है। यह नदी अपक्षाकृत एक छोटी नदी है यह दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रवाहित होते है। यह नदी शिवालिक हिमालय को पार कर नजीबाबाद में मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है।
घाघरा नदी
इस नदी को कई स्थानीय नामो से जाना जाता है। नेपाल में इसे कर्णाली या कौरियाल तथा भारत के गंगा के मैदान से इसे घाघरा के नाम से जाना जाता है। इसकी लम्बाई 1080 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 1,27,500 वर्ग किमी है। इसका उद्गम नेपाल हिमालय में मान्धाता चोटी (7,220 मीटर ) के मापचाचुंगों हिमानी से होता है। यह भी एक पूर्ववर्ती नदी है। जो हिमालय के तीनो श्रेणियों को काटते हुए गहरे खड्ड का निर्माण करती है।
यह नदी तीला, सेती व बेरी नामक नदियों का जलग्रहण करते हुए शीशा पानी में एक गहरे खड्ड का निर्माण करती है और पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है। मैदानी क्षेत्र में शारदा नदी ( काली या काली गंगा या सरयु ) आकर मिलती है। जिसके बाद इसे घाघरा के नाम से जाना जाता है। घाघरा का अर्थ ‘लहँगा’ होता है। अयोध्या तथा फ़ैजाबाद को पार करते हुए सारन जिले के निकट छपरा ( बिहार ) में गंगा में मिल जाती है।
गंडक नदी
गंडक नदी को नेपाल में शालिग्राम तथा मैदानी भाग में नारायणी के नाम से जाना जाता है इसका उद्गम नेपाल हिमालय में घौलागिरि तथा एवरेस्ट के मध्य में नेपाल और चीन सीमावर्ती क्षेत्र में हुआ है यह नेपाल के लगभग बीचो-बीच से गुजरती हुए भारत में प्रवेश करती है। इसकी भारत में 425 किमी लम्बाई है यह नदी भारत के मैदानी प्रदेश में बिहार के चम्पारण जिले में प्रवेश करती है तथा दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित हेते हुए सोनपुर के निकट गंगा में मिलती है।
इसकी सहायक नदियों में काली गंडक तथा त्रिशूली गंगा प्रमुख है। गंडक नदी में पाए जाने वाले गोल-गोल पत्थरों को शालिग्राम कहा जाता है। जिसके कारण इस नदी को शालिग्राम भी कहा जाता है। यह नदी मैदानी क्षेत्र में अपने मार्ग बदलने के लिए जानी जाती है।
कोसी नदी
यह एक पूर्ववर्ती नदी है इसे ‘बिहार के शोक’ के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी अपना मार्ग बदलने के लिए कुख्यात है। जिसके कारण प्रत्येक वर्ष कई गाँवो को अपने चपेटे में ले लेती है और बाढ़ से भारी तबाही मचाती है।
इस नदी का उद्गम स्रोत तिब्बत में माउन्ट एवरेस्ट के उत्तर में हुआ है। जहाँ इसे अरुण के नाम से जाना जाता है। वृहत हिमालय को पार करने के बाद इसके पश्चिम में सोन कोसी तथा पूर्व में तुमर कोसी आकर मिलती है इसके बाद इसको सप्त कोसी के नाम से जाना जाता है।
यह नदी महाभारत तथा शिवालिक श्रेणी को पार करते हुए बिहार के सहरसा जिले में छत्रा के निकट मैदान में प्रवेश करती है। और मनिहारी से 30 किमी पश्चिम में करगोला के दक्षिण में यह गंगा नदी से मिलती है।
यह नदी अपने मार्ग बदलने के रूप में जानी जाती है। इसकी लम्बाई 730 किमी है। तथा इसका कुल अपवाह क्षेत्र 86,900 वर्ग किमी है। इसमें से 21,500 वर्ग किमी अपवाह क्षेत्र भारत में है। इसे कौशिकी के नाम से भी जाना जाता है।
महानंदा नदी
यह गंगा नदी के बाएं तट पर अंतिम सहायक नदी है जो पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के निकट दार्जिलिंग हिमालय से निकलकर दक्षिण की ओर प्रवाहित होते हुए गंगा में मिलती है।
प्राद्वीपीय पठार से निकलने वाली गंगा की सहायक नदियाँ
गंगा नदी तंत्र में यद्यपि जल हिमालय से निकलने वाली नदियों से अधिक मात्र में प्राप्त होती है किन्तु कुछ जल प्रायद्वीपीय पठार की नदियों से भी प्राप्त होती है। ये नदियाँ चंबल, सिंध, केन, बेतवा सोन और दामोदर प्रमुख है।
चंबल नदी
यह नदी मध्य प्रदेश के मालवा पठार पर स्थित महू ( Mhow ) के निकट से निकलती है और यह उत्तर दिशा में होकर आगे गहरे खड्ड में प्रवाहित होते हुए राजस्थान के कोटा पहुँचती है। जहाँ इस नदी पर गाँधी सागर बांध का निर्माण किया गया है। जवाहर सागर, राणा प्रताप सागर, कोटा बांध यदि का निर्माण चंबल तथा इसकी सहायक नदियों में किया गया है। जिसक उपयोग आसपास के क्षेत्रों में सिचाई के लिए किया जाता है।
कोटा से यह बांदी, सबाई, माधोपुर और धौलपुर होते हुए इटावा ( उत्तर प्रदेश ) से 38 किमी की दुरी पर यमुना नदी में जाकर मिलती है। इसकी कुल लम्बाई 995 किमी है। चंबल नदी घाटी अपनी ‘उत्खात’ या ‘खड्ड’ भूमि वाली भू-आकृति के लिए विख्यात है। जिसे ‘चंबल का विहड़’ ( Ravine ) कहा जाता है। चंबल की सहायक नदियों में काली सिंध, पार्वती, सिप्ता, बनास, कुरल, बामनी व मेज प्रमुख है।
बेतवा नदी
यह नदी मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में कुमरागांव के समीप विंध्याचल पर्वत से निकलती है। यह उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए भोपाल, विदिशा, झाँसी, जालौन, आदि जिलों होकर बहती है। इस नदी के ऊपरी क्षेत्र में कई छोटे-बड़े झरने, क्षिप्रिकाये का निर्माण होता है। झाँसी के मैदानी क्षेत्र में इसका परवाह धीमा हो जाता है। इस नदी की लम्बाई 480 किमी है तथा यह हमीरपुर के निकट यमुना से मिलती है। इसके तट पर प्रसिद्ध प्राचीन एवं सांस्कृतिक नगर साँची और विदिशा स्थित है।
केन नदी
यह नदी मालवा के पठार से निकलकर मध्य प्रदेश के पन्ना जिले से बहती हुए उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में यमुना नदी से मिल जाती है सोनार एवं बीवर इसकी मुख्य सहायक नदी है।
सोन नदी
यह नदी अमरकंटक की पहाड़ी से निकलती है। इसी पहाड़ी से नर्मदा नदी का भी उत्पत्ति होती है इसकी लम्बाई 780 किमी है यह नदी पठारी क्षेत्र से शीघ्र ही निकलकर मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है और इस दौरान यह अपने मार्ग पर जल प्रपात का निर्माण करती है।
यह नदी निचले क्षेत्रो में अधिक चौड़ी तथा उथली हो जाती है। झारखण्ड के गढ़वा जिले के उत्तर-पश्चिम में इसकी चौड़ाई 5 किमी हो जाती है। बाढ़ के समय यह नदी विकराल रूप में दिखाई देती है। तथा विनाशकारी होती है। अंत में यह बिहार के पटना के निकट गंगा में मिल जाती है। इसकी सहायक नदियों में रिहन्द, कनहर, उत्तरी कोयल प्रमुख है।
दामोदर नदी
यह नदी छोटानागपुर पठार के पश्चिमी भाग अर्थात झारखण्ड के लोहरदगा जिले में कुरु प्रखंड से निकलती है। इसे ‘देवनदी’ भी कहा जाता है। यह नदी लोहरदगा, लातेहार, हजारीबाग, बोकारो और धनबाद जोलो को पार करके पश्चिम बंगाल के आसनसोल जिले में एक संकीर्ण स्थान में गंगा के डेल्टाई मैदान में प्रवेश करती है और हुगली नदी में मिलती है। इसकी लम्बाई 592 किमी है तथा अपवाह क्षेत्र 23,371 वर्ग किमी है।
इस नदी को पूर्व में ‘बंगाल का शोक‘ के नाम से जानी जाती थी। दामोदर घाटी परियोजना के तहत इस नदी तंत्र में कई बांध का निर्माण किया गया है। जैसे- तिलैया, मैथन, पंचेत पहाड़ी, बाल पहाड़ी, कोनार, तेनुघाट आदि। जिसके कारण बाढ़ में नियंत्रण कर लिया गया है।
बराकर इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी है। इसके अलावे इसकी सहायक नदियों में बोकारो, कोनार, भैरवी, जमुनिया, दूधी आदि प्रमुख है।
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