चक्रवात के नामकरण की शुरुआत सर्वप्रथम 1953 के मध्य में अटलांटिक महासागर क्षेत्र के संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के मायामी स्थित राष्ट्रीय हरिकेन सेंटर के पहल से की गई I ऑस्ट्रेलिया में इसे भ्रष्ट नेताओं के नाम पर शुरू किया गया था वहीं अमेरिका में इसका नामकरण महिलाओं के नाम पर रखा जाता था I 1979 के बाद इसमें पुरुषों का नाम भी शामिल किया जाने लगा बाद में फूलों, जानवरों, पक्षियों, पेड़ों तथा खाद्य पदार्थ के नाम पर किया जाने लगा I
हिंद महासागर में इसकी शुरुआत 2000 ईस्वी में विश्व मौसम संगठन-WMO (यूनाइटेड नेशन इकनोमिक एंड सोशल कमीशन को एशिया एंड पेसिफिक -ESCAR) के 27 वें सत्र में यह सहमति बनी कि हिंद महासागर में आने वाले चक्रवातों के नामकरण किया जाएगा I हिंद महासागर में उन्हीं चक्रवती तूफानों का नामकरण किया जाएगा जिसकी गति 34 नॉटिकल मील प्रति घंटा से अधिक होगी और इनकी शुरुआत 2004 ईस्वी से हुआ I
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चक्रवातो का नामकरण कौन करता है
विश्व भर में हर महासागरीय क्षेत्रों में बनने वाले चक्रवातो का नाम क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र (RSMCs ) और उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्रों (TCWCs ) द्वारा रखा जाता है विश्व में 6 क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र हैं इनमें से एक भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र ( IMD ) भी है इन केंद्रों के सदस्य देशों द्वारा सुझाए गए नामों के आधार पर इन क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातो का नामकरण किया जाता है
हिंद महासागर में चक्रवातो नामकरण कौन करता है
हिंद महासागर RSMCs और TCWCs अर्थात IMD के तटीय देशों का समूह यहां आने वाले चक्रवातो का नामकरण करते हैं वर्ष 2004 ईस्वी में इसमें भारत सहित 8 सदस्य देश बांग्लादेश, म्यानमार,, पाकिस्तान मालदीव, ओमान, श्रीलंका तथा थाईलैंड थे प्रत्येक देशों ने 8 8 नामों को सुझाव दिया था इस तरह से 64 नाम सामने आए थे जिसका अंतिम नाम अम्फान चक्रवात था बाद में 2018 मे पांच और देशों ( ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ) को इस सूची में शामिल किया गया इस तरफ से 13 देशों में फिर से 13 13 नाम सुझाए और इस तरह से कुल मिलाकर 169 नामों की सूची अगले 25 वर्षों के लिए तय किया गया औसतन प्रतिवर्ष 5 चक्रवाती तूफान आने की संभावना के आधार पर किया गया है
कैसे तय किया जाता है चक्रवातो का नाम
प्रिय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र ( RSMCs ) और उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्र ( TCWCs ) के सम्मिलित सदस्य देशों को अंग्रेजी के अल्फाबेट के अनुसार क्रम में कर लिया जाता है और इन सदस्य देशों द्वारा सुझाए गए नामों को देश के वर्ग में क्रम में कर लिया जाता है
इसे हिंद महासागर में आने वाले चक्रवातो के नाम क्रमो से समझते हैं इन महासागर के क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र ( RSMCs ) जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है इसे भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र भी कहा जाता है यहीं से हिंद महासागर अर्थात बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में आने वाली चक्रवातो का नामकरण एवं चेतावनी जारी किया जाता है
चक्रवातो का नामकरण का क्या कारण होता है
विश्व में 6 क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र और पांच चक्रवात चेतावनी केंद्र हैं इन केंद्रों का काम इन क्षेत्रों में आने वाली चक्रवातो से संबंधित दिशानिर्देश एवं चेतावनी जारी की जाती है इनमें से एक भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र भी है जो हिंद महासागर में आने वाली चक्रवातो का नामकरण एवं दिशा निर्देश जारी करता है
किसी एक ही क्षेत्र में एक ही समय पर दो चक्रवातो के आने की स्थिति में किसी प्रकार का कोई उलझन पैदा ना हो कि किस चक्रवात की बात किया जा रहा है आसानी से याद रखा जा सके इससे जागरूकता फैलाने में आसानी होती है इसके नामकरण से वैज्ञानिक, शोधकर्ता, आपदा प्रबंधको, मीडिया और आम लोगों में चक्रवात को अलग-अलग पहुंचाने में मदद मिलती है
इसी कारण से अलग-अलग महासागरीय क्षेत्रों आने वाले चक्रवातो का नामकरण उस क्षेत्र में स्थित विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र या चक्रवाती चेतावनी केंद्रों द्वारा जारी किया जाता है.
चक्रवातो के नामकरण के क्या मापदंड होते हैं
विश्व में आने वाले चक्रवातो के नामकरण में निम्न मानदंडों को आधार बनाया जाता है
- चक्रवातो का नामकरण किसी भी राजनीतिक पार्टी, शख्सियत, धर्म, संस्कृति और लिंग के आधार पर नहीं रखा जा सकता
- नामकरण में किसी समूह या समुदाय तबके की भावना को ठेस ना लगे
- सुनाई देने में कुरुरता एवं रुखा नहीं होना चाहिए
- इसे कम शब्दों का और आसानी से बोलने लायक होना चाहिए साथ ही साथ किसी देश के लिए आपत्तिजनक नहीं होना चाहिए
- चक्रवातो के नामकरण में सिर्फ 8 अक्षरों या उससे कम का होना चाहिए
- नाम तय करने वाले पैनल के पास किसी भी नाम को खारिज करने का अधिकार होता है अगर वह नाम मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है
- किसी नाम पर किसी तरह की आपत्ति दर्ज होने की स्थिति में 10 नामों की फिर से वार्षिक सम्मेलन में पैनल की मंजूरी से समीक्षा की जा सकती है
- एक ही नाम को दोबारा उपयोग नहीं किया जा सकता है
- प्रस्तावित नाम किसी भी मौसम विज्ञान केंद्र में दर्ज नहीं होना चाहिए