नमस्कार मित्रो ! हमारी पृथ्वी की आंतरिक संरचना कैसी है ? इस विषय में वैज्ञानिको ने जिन स्रोतों या आधारों का सहारा लेकर भूगर्भिक संरचना की जानकारी दी है। इन पृथ्वी की आंतरिक संरचना के स्रोत को तीन वर्गो में विभाजित किया जाता है।
- प्रत्यक्ष स्रोत
- चट्टानें ( शैल )
- ज्वालामुखी
- अप्रत्यक्ष स्रोत
- तापमान
- घनत्व
- दबाव
- उल्काएँ
- गुरुत्वाकर्षण बल
- चुंबकीय क्षेत्र
- भूकम्पीय तरंगें
- पृथ्वी के उत्पत्ति संबंधी सिद्धांत
यहाँ पर तीसरा स्रोत का व्याख्या नहीं किया जा रहा है क्योकि इसका विस्तार से वर्णन पृथ्वी के उत्पत्ति कैसे हुई है में किया गया है इसको जानने के लिए इस लिंक को क्लिक करके देखा जा सकता है।
Table of Contents
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के प्रत्यक्ष स्रोत या आधार
हमारी पृथ्वी की आंतरिक संरचना के जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रत्यक्ष स्रोतों या आधारों के अंतर्गत उन आधारों को शामिल किया जाता है जिन्हे हम प्रत्यक्ष रूप से देख सकते है। और उन पदार्थो से अनुमान लगाया जा सकता है। इन स्रोतों को प्राकृतिक स्रोत भी कहा जाता है। वो निम्न दो है।
1. चट्टानें ( शैल )
हमारी पृथ्वी की ऊपरी परत विभिन्न प्रकार के चट्टानों से बनी है। इन चट्टानों में पाए जाने वाले पदार्थो एवं खनिजों से अनुमान लगाया जा सकता है कि की भूगर्भ में भी उसी प्रकार के पदार्थ पाए जाते होंगें।
धरातल के विभिन्न गहराई के चट्टानों को अध्ययन करने के लिए विश्व भर के वैज्ञानिको के द्वारा दो मुख्य परियोजना पर कार्य किया जा रहा है। वे है गहरे समुद्र में प्रभेदन परियोजना ( Deep ocean drilling project ) और समन्वित महासागरीय प्रबधन परियोजना ( Intrigrated ocean drilling project ) इसके तहत अब तक सबसे गहरा प्रभेदन ( Drill ) आर्कटिक महासागर के कोला ( Kola ) क्षेत्र में 12 किमी की गहराई तक किया गया है।
उपरोक्त कार्यो के अतिरिक्त खनन क्षेत्रो से प्राप्त चट्टानें। दक्षिण अफ्रीका की सोने की खाने सबसे अधिक गहरी 3 से 4 किमी है। इससे अधिक गहराई तक जा पाना सम्भव नहीं है। क्योकि जैसे-जैसे गहराई बढ़ती है तापमान में वृद्धि होते जाती है।
इन परियोजनाओं तथा खदानों के विभिन्न गहराई से प्राप्त पदार्थो के विश्लेषण से हमे पृथ्वी की आंतरिक संरचना से संबंधित असाधारण जानकारी प्राप्त हुई है।
2. ज्वालामुखी
प्रत्यक्ष प्रमाणों में ज्वालामुखी उद्गार पृथ्वी के भूगर्भ की जानकारी देता है। इससे निकलने वाले तप्त लावा से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पृथ्वी के अंदर में कुछ ऐसे क्षेत्र है। जहाँ अत्यधिक ताप के कारण सभी पदार्थ तरल अवस्था में होगें।
किन्तु ज्वालामुखी से यह स्पष्ट पता नहीं चलता है कि यह कितनी गहराई में अवस्थित है। जहाँ से लावा बाहर निकलता है।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अप्रत्यक्ष स्रोत
अप्रत्यक्ष प्रमाणों को एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते है। मन कि किसी 20-20 क्रिकेट के मैच में 5 ओवर के खेल खत्म होने पर सुरवाती बैटिंग करने वाली टीम का स्कोर 50 रन है। इससे हमलोग अनुमान लगते है कि 20 ओवर तक यह टीम कितना स्कोर बना सकती है। इसका उत्तर आप आसानी से दे सकते है और वह स्कोर होगा 200 रन।
इसी प्रकार पृथ्वी के धरातल पर पाई जाने वाले पदार्थो के गुण धर्म तथा धरातल के कुछ गहराई तक जाने पर इन पदार्थो के गुण धर्म में जिस गति से परिवर्तन होता है उस गति के आधार पर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना कैसी होगी। इन अप्रत्यक्ष स्रोतों को अप्राकृतिक स्रोत भी कहा जाता है।
भूगर्भ की जानकारी के लिए निम्न अप्रत्यक्ष स्रोतों का सहारा लिया जाता है वे निम्न इस प्रकार है।
1. तापमान
पृथ्वी के घरातल के नीचे जाने पर तापमान बढ़ने लगता है। इसका प्रमाण खद्दानो, ज्वालामुखी से निकलने वाले गर्म जल के स्रोत आदि के तापमान से प्रमाणित होता है। समान्यतः प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि हो जाती है। इस आधार पर 50 किमी की गहराई पर तापमान 1200 से 1800 डिग्री सेल्सियस के बीच तथा केंद्र पर 2 लाख डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
किन्तु ऐसा भूकम्पीय तरंगो के व्यवहार से पता चला है कि गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान वृद्धि की दर कम होती जाती है। धरातल से 100 किमी की गहराई तक 12 डिग्री सेल्सियस प्रति किमी और उससे नीचे 300 किमी तक 2 डिग्री सेल्सियस प्रति किमी और उससे नीचे 1 डिग्री सेल्सियस प्रति किमी की दर से तापमान में वृद्धि होती है। इसी आधार पर पृथ्वी की क्रोड का तापमान लगभग 6000 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
2. घनत्व
पृथ्वी का गोलाकार आकार, औसत त्रिज्या एवं द्रव्यमान तथा न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है जब्कि धरातलीय चट्टानों का औसत घनत्व 2.7 से 3.00 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है इस आधार पर ऊपरी परत के नीचे 4 से 5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर होगा जब्कि क्रोड में 11 से 12 प्रति ग्राम घन सेंटीमीटर होगा।
3. दबाव
पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान एवं घनत्व की भांति दबाव में भी वृद्धि होती है। दबाव में वृद्धि से घनत्व में वृद्धि होती है। परन्तु आधुनिक प्रयोगो द्वारा यह प्रमाणित किया गया है कि प्रत्येक चट्टान में एक ऐसी सीमा होती है जिसके आगे उसका घनत्व अधिक नहीं हो सकता चाहे दबाव कितनी भी जयदा क्यों न हो इस आधार पर यह खा जा सकता है की पृथ्वी के अंतरतम के घनत्व पर दबाव का प्रभाव तो होता है परन्तु इसकी भूमिका सीमित होती है।
अतः ऐसे में यह संभव प्रतीत होता है कि पृथ्वी के केंद्र भारी धातुओं से बना है जिसका घनत्व और भार अधिक है।
4. उल्काएँ
भूगर्भ की जानकारी का उल्काएँ भी एक महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष स्रोत है। अक्सर उल्काएँ वायुमंडल में जलकर रख हो जाती है किन्तु कभी-कभी वह धरातल पर पहुंचने में सफल भी हो जाती है। हलांकि उल्काएँ पृथ्वी के आंतरिक भाग से नहीं निकलती है फिर भी ऐसा मान जाता है कि समस्त सौरमंडल की रचना एक प्रक्रिया से हुई है। अतः उनमे पाए जाने वाले पदार्थ पृथ्वी के पदार्थो से मिलती जुलती है।अतः उल्काएँ भी पृथ्वी की आंतरिक जानकारी के महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष स्रोत है।
5. गुरुत्वाकर्षण बल
हमारी पृथ्वी के धरातल के अलग-अलग अक्षांशो में इसका मान अलग-अलग होता है। यह ध्रुव पर सर्वाधिक तथा भूमध्यरेखा पर कम पाया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योकि गुरुत्वाकर्षण बल दूरी से काफी प्रभावित होता है और ध्रुव पृथ्वी के केंद्र से नजदीक होते है जब्कि भूमध्यरेखीय क्षेत्र पृथ्वीके केंद्र से दूर होते है।
गुरुत्वाकर्षण बल पदार्थो के द्रव्यमान एवं अन्य कारको द्वारा भी प्रभावित होता है। इसके कारण अलग-अलग स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण बल भी अलग-अलग पाया जाता है। इसे गुरुत्व विसंगति कहा जाता है। इससे यह पता चलता है की पृथ्वी के भीतरी भाग में पदार्थो एवं द्रव्यमान में भिन्नता है।
6. चुंबकीय क्षेत्र
धरातल पर विभिन्न चुम्कीय सर्वेक्षणों से पता चलता है कि, भूपर्पटी पर चुंबकीय पदार्थो का वितरण आसमान रूप से है अतः इसी आधार पर पृथ्वी की आंतरिक भाग में चुंबकीय पदार्थो एवं क्षेत्रो में भिन्नता पाई जाती होगी।
7. भूकम्पीय तरंगें
वर्तमान समय में पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी के लिए भूकम्पीय तरंगों का उपयोग अप्रत्यक्ष स्रोतों में सबसे उपयोगी एवं महत्वपूर्ण साधन साबित हो रहा है। इस संबंध में सर्वपर्थम प्रयास 1909 ई. में मोहोरोविसिस ( Mohorovicis ) के द्वारा किया गया था।
यह ठीक उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार अल्ट्रासाउंड या एक्सरे की मशीन के द्वारा निकली तरंगों से हमारे शरीर के भीतरी भाग की जानकारी हासिल होती है ठीक उसी तरह सिस्मोग्राफ के माध्यम से भूकंप के कारण निकलने वाली तरगों की हरकतों से भूगर्भ की जानकारी हासिल होती है।
भूकंप के कारण इसके उद्गम केंद्र से तीन प्रकार की भूकम्पीय तरंगे पी तरंगे, एस तरंगे और एल तरंगे निकलती है। जिसका गुण-धर्म अलग-अलग होता है तथा पृथ्वी आंतरिक भाग में स्थित पदार्थो के साथ भी अलग-अलग प्रतिक्रिया देती है। जिससे हमे आंतरिक भाग की जानकारी मिलती है।
‘पी’ तरंगें ( ‘P’ waves )
इस तरंग को प्रथमिक तरंग ( Primary waves ) कहा जाता है। पी तरंगे ध्वनि तरंगो जैसी होती है। इसकी गति सबसे अधिक होती है। और यह धरातल के किसी भी स्थान पर सबसे पहले पहुँचती है। इसे अनुदैर्ध्य ( Longitudinal ) तरंग भी कहा जाता है। पी तरंगों से कम्पन की दिशा तरंगो की दिशा के समानांतर हो होती है। यह अपने संचरण गति की दिशा में ही पदार्थो पर दबाव डालती है। इसके फ़लस्वरुप पदार्थो के घनत्व में भिन्नता आती है। शैलो में संकुचन एवं फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है। यह पदार्थ के तीनो रूपों ( ठोस, तरल और गैस ) से होकर गुजर सकती है।
‘एस’ तरंगें ( ‘S’ waves )
इस तरंग को द्वितीयक तरंगें ( Secondary waves ) या गौण या आङी तरंगें से भी सम्बोधित किया जाता है। इसकी औसत गति 4 किमी प्रति सेकण्ड होती है। ये तरंगे पी तरंगों के बाद किसी स्थान पर पहुँचती है। ये तरंगें प्रकाश अथवा जल तरंगो के भांति होती है। इसे अनुप्रस्थ तरंग ( Transverse waves ) भी कहा जाता है। एस तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगो की दिशा के समकोण पर कम्पन पैदा करती है। अतः यह जिस पदार्थ से गुजरती है उसमे उभार एवं गर्त का निर्माण करती है।
एस तरंगों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि, यह केवल ठोस पदार्थो के माध्यम से गुजरती है और तरल पदार्थ में लुप्त हो जाती है। इसी विशेषता के कारण वैज्ञानिको ने भूगर्भिक संरचना को समझने के लिए उपयोग किये है।
‘एल’ तरंगें ( ‘L’ waves )
इन तरंगो को धरातलीय तरंगें ( Surface waves ) या ( Long waves ) के नाम से जाना जाता है। इसकी उत्पत्ति भौगर्भिक तरंगो ( पी और एस )और धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण होता है। इसकी औसत गति 3 किमी प्रति सेकण्ड होती है।
घरातलीय तरंगें भूकंपलेखी ( Seismograph ) पर अंत में अभिलेखित होती है। ये तरंगे ज्यादा विनाशकारी होती है। इससे शैले एक स्थान से दूसरे स्थान पर खिसक जाती है। और इमारते ध्वस्त होने लगती है।
भूकम्पीय तरंगों के गुण-धर्म
भूकम्पीय तरंगों को आंकलन सिस्मोग्राफ नामक यंत्र के द्वारा किया जाता है। इसमें इन तरंगों के व्यवहारों को निम्नलिखित विन्दुओ के माध्यम से समझ जा सकता है।
- सभी भूकम्पीय तरंगों का वेग अधिक घनत्व वाले पदार्थो से गुजरने पर बढ़ जाती है तथा कम घनत्व वाले पदार्थो से गुजरने पर इनकी गति कम हो जाती है।
- केवल प्रथमिक तरंगें ही पृथ्वी के केंद्र से होकर गुजर सकती है।
- द्वितीयक तरंगें तरल पदार्थो से होकर नहीं गुजर सकती है।
- पदार्थो के घनत्व में भिन्नता होने तथा पदार्थो के विभिन्न माध्यमों ( ठोस, तरल और गैस ) से जब तरंगें गुजरती है तो ये तरंगें परावर्तित ( Reflection ) तथा आवर्तन ( Refraction ) होती है।
- परावर्तन से तरंगें प्रतिध्वनित होकर वापस लौट आती है।
- जब्कि आवर्तन से तरंगे की दिशाओं में चली जाती है।
- भौगर्भिक तरंगें (पी और एस ) भूगर्भ में सीधी सीधी रेखा में गमन नहीं करती बल्कि यह कर्व के रूप में गमन करती है। ऐसा पदार्थो के घनत्व में भिन्नत्ता के कारण होती है।
इस तरह से हम पाते है कि, पृथ्वी की आंतरिक संरचना के स्रोत के आधार पर वैज्ञानिको ने बताने में सक्षम हुए है कि, हमारी पृथ्वी की भूगर्भिक संरचना कैसी है।
Prithvi ki aantrik sanrachna ka adhyayan acchi hai
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