नमस्कार दोस्तों ! आज हमलोग इस लेख में भारत के भौतिक स्वरूप के अंतर्गत एक और महत्वपूर्ण भूआकृति के बारे में जानेंगे वह है, भारतीय मरुस्थल इसे थार का मरुस्थल या भारत का महान मरुस्थल के रूप में जाना जाता है। यह मुख्य रूप से भारतीय उत्तरी मैदान का ही एक भाग है किन्तु, इसमें पाए जाने वाले भूआकृतियाँ, इसकी विशेषताएं, जलवायु, वनस्पति, जीवजंतु इत्यादि में भारतीय मैदान से काफी भिन्नता पाई जाती है। जिसके कारण इसे अलग भूआकृति मरुस्थलीय प्रदेश के रूप में जाना जाता है।
भारतीय मरुस्थल को जानने से पहले हमे यह जानना होगा कि मरुस्थल क्या होता है ? मरुस्थल का शाब्दिक अर्थ मृत-भूभाग से है अर्थात वैसा प्रदेश जहाँ मानव, जीवजंतु, एवं वनस्पति को जीवित रहने के लिए पर्यावरण से काफी संघर्ष करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहा जय तो वैसा भूआकृतिक प्रदेश जहाँ बहुत कम वार्षिक वर्षा ( 15 सें.मी. से कम वर्षिक वर्षा ) होती हो,तापमान प्रतिकूल ( अत्यधिक एवं अत्यधिक कम ) हो, मृदा में नमी की मात्रा काम पाई जाती हो, मृदा में जैविक तत्वों का आभाव पाया जाता हो ऐसे प्रदेश या भूभाग को मरुस्थलीय प्रदेश कहा जाता है। यहाँ वाष्पीकरण अधिक तथा वर्षा कम होती है। जिसके कारण हमेशा जल का आभाव पाया जाता है।
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भारतीय मरुस्थल की स्थिति और विस्तार क्या है ?
इस मरुस्थलीय प्रदेश की स्थिति भारत के अरावली पर्वत के पश्चिम में है। इस मरुस्थल का अधिकांश भाग राजस्थान में स्थित है। राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 61.11 प्रतिशत भूभाग में इसका विस्तार है। राजस्थान के अलावे इस मरुस्थल का कुछ भाग दक्षिणी हरियाणा एवं पंजाब तथा गुजरात के उत्तरी पश्चिमी भाग अर्थात कच्छ के रण इसमें शामिल किये जाते है। इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण 640 किमी तथा पूर्व से पश्चिम इसकी चौड़ाई 300 किमी और इसका कुल क्षेत्रफल 175000 वर्ग किमी है। इसका क्षेत्रफल समय के साथ बढ़ते जा रहा है।
थार का मरुस्थल एक उष्ण मरुस्थल है। विश्व के उष्ण मरुस्थलों में इसका स्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से 9वाँ, एवं शीत और उष्ण दोनों में इसका स्थान 17वाँ बड़ा मरुस्थल है। यह विश्व का सबसे घना बसा हुआ मरुस्थल है। इसमें सिर्फ राजस्थान की कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत जनसंख्या इसमें निवास करती है। रेडकिल्फ़ रेखा भारतीय थार मरुस्थल और पाकिस्तान के मरुस्थल को अलग करता है। पाकिस्तान में इसे थाल या चेलिस्तान का मरुस्थल कहा जाता है।
भारतीय मरुस्थल की उत्पत्ति कैसे हुई है ?
भारतीय मरुस्थल के निर्माण का मुख्य कारणों को लिखिए bhartiya marusthal ke nirman ka mukhya karan ko likhiye
ऐसा मन जाता है कि मेसोजोइक महाकल्प में यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था। जिसका प्रमाण ‘आकल’ ( जैसलमेर,राजस्थान ) में स्थित जुरासिक काल के लकड़ियों का अवशेष ‘कास्ट जीवाश्म पार्क’ में देखे जा सकते है। इसके साथ-साथ ‘ब्रह्मसर’ के आस-पास समुद्री निक्षेपों का प्रमाण मिला है। ‘काष्ट जीवाश्म पार्क’ में जीवाश्मों की आयु 18 करोड़ वर्ष आँकी गई है। इसके साथ-साथ इस क्षेत्र में पाए जाने वाले खारे पानी का झील जैसे:- सांभर, डिंडवाना, डेगाना, कुचमान आदि प्रमाणित करता है कि इस मरुस्थल का कुछ भाग सागर के पीछे हटने से हुआ है।
कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि इस थार के मरुस्थल ‘ग्रेट पेलियो आर्कटिक अफ़्रीकी मरुस्थल’ ( सहारा का मरुस्थल अफ्रीका ) का पूर्वी विस्तार है। गोंडवाना लैंड के विखंडन के पश्चात यह भारतीय प्लेट के साथ अफ्रीका के सहारा से उत्तर पूर्व की ओर अग्रसारित होकर वर्त्तमान अवस्था को प्राप्त किया है।
किसी भी उष्ण कटिबंधीय मरुस्थल के भांति भारतीय थार का मरुस्थल का विकास भी वर्षा का में कमी के कारण हुआ है। वर्षा के आभाव में प्राकृतिक वनस्पतियों का विकास नहीं हो पाता है और धरातल के ऊपरी परत हवा, ताप, दाब या अन्य कारको द्वारा इसका विखंडन सुरु होता है और धीरे-धीरे यही अनाक्षादन सम्पूर्ण प्रदेश को बालू के ढेर में परिवर्तित हो जाता है।
थार के मरुस्थल का भौतिक स्वरूप क्या है ?
भारतीय महान मरुस्थल एक उबड़-खाबड़ मरुस्थलीय प्रदेश है। जहाँ पर बहुत सरे अनुदैर्ध्य रेतीली टीले, बालुका स्तूप, और बरखान पाए जाते है। कुछ क्षेत्र ऐसे है जहाँ पर नंगी चट्टानों का विस्तार पाया जाता है। जिसे ‘हम्मादा’ चट्टानी मरुस्थल कहा जाता है। इस क्षेत्र में पाए जाने वाले अन्य भूआकृतियाँ इन्सेलबर्ग, छत्रक शैल, ज्यूजेन, प्लाया, टाट, तल्ली, रन इत्यादि है।
थार मरुस्थल का कितने भाग है ?
भारतीय थार के मरुस्थल को 25 सें.मी. समान वर्षा रेखा के आधार पर दो भागो में विभाजित किया जाता है।
- शुष्क क्षेत्र
- अर्धशुष्क क्षेत्र
( 1. ) शुष्क क्षेत्र
इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 25 सें.मी. से कम होती है। इसलिए इसे शुष्क मरुस्थलीय प्रदेश कहा जाता है। इसके अंतर्गत राजस्थान के चार जिले जो पाकिस्तान के सिमा रेखा से लगे श्रीगंगानगर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर है। इसे ही भारत के महान मरुस्थल कहा जाता है। इसका क्षेत्रफल लगभग 1 लाख वर्ग किमी है। इस क्षेत्र में बालुका स्तूपों की स्थिति के आधार पर दो भागो में बांटा जाता है।
बालुका स्तुप युक्त या सहित क्षेत्र
इस क्षेत्र में बालुका स्तुप के कई प्रकार पाए जाते है। जैसे:- अनुदैर्ध्य बालुका स्तुत, अनुप्रस्त बालुका स्तुप, बरखान आदि का विस्तार पाया जाता है। इस क्षेत्र का विस्तार राजस्थान के श्रीगंगानगर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर जिलों में मुख्य रूप से है।
बालुका स्तुप मुक्त या रहित क्षेत्र
इस मरुस्थलीय क्षेत्र का विस्तार मुख्य रूप से पोखरण, रामगढ़ ( जैसलमेर ), बाड़मेर और जालोर के कुछ भागो में है जहाँ नंगे चट्टानों का ढेर पाए जाते है। इसे ‘हम्मादा’ या चट्टानी मरुस्थल कहा जाता है। इसमें टर्शियरी कल के अवसादी चट्टाने पाई जाती है जिसमे चुना पत्थर की अधिकता पाई जाती है। इसी क्षेत्र में चांदन नलकूप ( थार का घड़ा ), बाटाडू का कुआँ ( रजस्थान का जलमहल ), लाठी सीरीज ( सेवत घास क्षेत ) भूगर्भिक पट्टी स्थित है।
( 2. ) अर्ध शुष्क क्षेत्र
इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 25 से 50 सें.मी. के मध्य होती है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 75000 वर्ग किमी है। यह अपेक्षाकृत नम प्रदेश होने के कारण इसमें स्टेपी प्रकार के वनस्पति पाई जाती है। इस प्रदेश को चार भागो में विभाजित किया जाता है।
- घग्घर का मैदान
- शेखावाटी प्रदेश
- नागौरी उच्च भूमि
- लूणी बेसीन
घग्घर का मैदान
इस मैदान का निर्माण घग्घर नदी के निक्षेपण कार्य से हुआ है। यह एकमात्र ऐसी नदी है जो शिवालिक हिमालय से निकलकर हरियाणा होते हुए राजस्थान के उत्तर पश्चिम में स्थित श्रीगंगानगर,और हनुमानगढ़ जिले में विलीन हो जाती है। अगर इसमें जल की मात्रा अधिक रहती है तो यह पाकिस्तान तक पहुंच जाती है। यह एक समतल जलोढ़ का मैदान है जहाँ पर कृषि कार्य अधिक मात्रा में किया जाता है। इस क्षेत्र में अधिक सिचाई कार्य होने से ‘सेम’ की समस्या ( नामक वाली मिट्टी ) उत्पन हो गई है।
शेखावाटी प्रदेश
इस प्रदेश को अंतः जल परवाह क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत राजस्थान के जिले शिकर, झुंझुन, चूरू, इसके साथ-साथ उत्तर पूर्वी नागौर, दक्षिणी हरियाणा को शामिल किया जाता है। इस प्रदेश को बांगर प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है। इसमें एक आंतरिक प्रवाहित नदी कांतली है जो इसी क्षेत्र में विलीन हो जाती है। इस क्षेत्र में कच्चे-पक्के कुओं को ‘जोड़’ या ‘नाडा‘ कहा जाता है। यहाँ पर स्थित अस्थाई झीलों को ‘सर’ या ‘सरोवर‘ के नाम से जाना जाता है।
नागौरी उच्च भूमि
यह थार के मरुस्थल का सबसे ऊँचा प्रदेश है। इसकी औसत उचाई समुद्रतल से लगभग 300 से 500 मीटर पाई जाती है। इस क्षेत्र में कई नमकीन पानी के झीलें स्थित है जैसे:- डिडवान, डेगाना, सांभर, नावां, कुचामन आदि प्रमुख है। जिससे नमक प्राप्त किये जाते है। इन झीलों में नमक पाए जाने का मुख्य कारण इस क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली अस्थाई नदियों द्वारा लाये गए सोडियम क्लोराइड के निक्षेप से हुआ है। इसके साथ-साथ इस क्षेत्र के भूगर्भ में पाए जाने वाले मैकासिस्ट चट्टानों में पाए जाने वाले नमक के कारण माना जाता है। कुछ लोगो का कहना है की ये झील समुद्र के अवशेष है जिसके कारण इसमें नमक पाया जाता है।
इस प्रदेश के आंतरिक भागो में फ्लोराइड प्रकार की चट्टानें भी पाई जाती है। जिसके कारण इसका प्रभाव इस क्षेत्र के लोगो में देखा जा सकता है। जैसे:- बूढ़े लोगो का झुका होना अर्थात उनके पीठ पर कूबड़ होना, लोगो के दांत काले या पीले होना। इसके कारण इस क्षेत्र को राजस्थान का ‘कूबड़ पट्टी‘ भी कहा जाता है।
लूणी बेसीन
यह प्रदेश एक अर्धशुष्क प्रदेश है जिसमे लूणी तथा इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ के बेसीन से इस प्रदेश का निर्माण हुआ है। जिसमे जोजड़ी दाई ओर से मिलने नाली एकमात्र सहायक नदी है। तथा बाई ओरअरावली पर्वत से निकलने वाली सुकड़ी, मीठड़ी, लीलड़ी, जवाई, सागी, बांडी, खारी प्रमुख सहायक नदियां है। जालौन क्षेत्र में लूणी प्रवाह क्षेत्र को रेल या नेहड़ा के नामा से जाना जाता है। लूणी उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली नील, नाइजर के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसकी कुल लम्बाई 495 किमी तथा राजस्थान में इसकी लम्बाई 330 किमी है। यह थार मरुस्थलीय क्षेत्र की एक मात्र नदी है जो अरब सागर में मिलती है।
भारतीय थार मरुस्थल को बालू और चट्टानों अर्थात बनावट के आधार पर इसे चार भागो में विभाजित किया जाता है।
- इर्ग
- हम्मादा
- रेग
- लघु मरुस्थल
इर्ग
यह रेतीले मरुस्थल है। इसी प्रदेश में अनुदैर्ध्य बालुका स्तुप ( वायु परवाह दिशा में अर्थात हवा प्रवाह के समांतर बनने वाला बालुका स्तुप ), अनुप्रस्थ बालुका स्तुप ( हवा बहाव के समकोण बनने वाला बालुका स्तुप ), बरखान ( हवा बहाव के समकोण पर बनने वाला अर्ध चंद्राकर बड़े-बड़े बालुका स्तुप ), उरमिकाएँ प्रमुख मरुस्थलीय स्थलाकृतियां है। यह प्रदेश थार के मरुस्थल का लगभग 85 प्रतिशत भाग है। यह मुख्य रूप से राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर तथा गुजरात के कच्छ में फैला हुआ है।
हम्मादा
यह एक प्रकार का चट्टानी मरुस्थल है जिसमे नंगे चट्टानों के ढेर पाए जाते है। इसके अंतर्गर राजस्थान के जैसलमेर का पूर्वी भाग विशेषकर रामगढ़ और पोखरण ,जोधपुर के दक्षिण पश्चिम तथा बाड़मेर के उत्तर पश्चिम भाग सम्मिलित है। इस क्षेत्र को भारत का शक्ति स्थल कहा जाता है। यही पर दो बार भारत का परमाणु परीक्षण किया गया था।
रेग
इसे पथरीली मरुस्थल भी कहा जाता है। जहाँ छोटे-बड़े पत्थरो के साथ-साथ बालू का भी समान मात्रा में विस्तार पाया जाता है। इसका विस्तार जैसलमेर जिला के रुद्रवा था रामगढ़ में फैला हुआ है।
लघु मरुस्थल
यह अर्ध शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र है जहाँ कृषि कार्य किया जाता है। इस क्षेत में अस्थाई झील पाए जाते है जिसे रण, टाट, तल्ली, चल्ली, पोखर, सर, सरोवर आदि स्थानीय नमो से जाना जाता है
थार मरुस्थल में वर्षा एवं तापमान की स्थिति क्या है ?
इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 15 सेंटीमीटर से भी कम होती है तथा वाष्पीकरण अधिक होने से सदा जल का आभाव पाया जाता है। इस मरुस्थल के पश्चिमी क्षेत्र में तो 5 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है जबकि पूर्वी भाग पर 50 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है। यहाँ कुल वार्षिक वर्षा का 90 प्रतिशत वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून से जुलाई से लेकर सितंबर के मध्य होती है।
जहाँ तक तापमान का प्रश्न है तो, यहाँ तापांतर अर्थात दिन और रात के तापमान में तथा गर्मी एवं शर्दी के तापमान में बहुत अधिक अंतर पाया जाता है। गर्मी के दिनों में औसतन तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तथा रात में घटकर 10 डिग्री के आस-पास हो जाता है। वही शर्दी के ऋतू में दिन का औसतन तापमान 5 से 10 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो जाता है जबकि रात का तापमान 0 डिग्री से भी नीचे चला जाता है। सर्वाधिक गर्मी मई एवं जून के महीने में देखने को मिलता है। इसी समय तेज तथा गर्म धूल भरी आंधियां चला करती है। वही दिसंबर और जनवरी सबसे ठण्ड महीना होता है।
भारतीय मरुस्थल के अपवाह तंत्र
इस मरुस्थलीय प्रदेश का समान्य ढाल उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की और है इस मरुस्थल का अधिकांश भाग अंतः जल प्रवाह क्षेत्र के अंतर्गत आता है जहाँ वर्षा के समय विकसित होती है। तथा ये नदियाँ कुछ दूर चलने के बाद इन्ही रेत में विलीन हो जाती है। इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ लूणी, कांतली, घग्घर, जोजड़ी, जवाई प्रमुख है।
लूणी नदी
इस क्षेत्र लूणी ही एक मात्र नदी है जो समुद्र तक पहुंच पाती है। लूणी नाग पर्वत से निकलकर 495 किमी की दूरी तय करते हुए कच्छ के रण ( गुजरात ) अर्थात अरब सागर में विलीन हो जाती है। इसकी प्रवाह दिशा उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम, मूलतः उत्तर से दक्षिण की ओर है। इसकी सहायक नदियाँ जोजड़ी नदी, जो उत्तर से दक्षिण की प्रवाहित होते हुए लूणी नदी के दाई ओर एक मात्र नदी मिलती है। लूणी की बाकी सहायक नदियाँ जैसे:- सुकड़ी, मीठड़ी, लीलड़ी, जवाई, सागी, बांडी, खारी अरावली पर्वत से निकलकर परब से पश्चिम की ओर प्रवाहित होते हुए लूणी नदी के बाई ओर मिलती है।
घग्घर नदी
थार के मरुस्थल में प्रवाहित होने वाली घग्घर एक मात्र ऐसी नदी है। जो शिवालिक हिमालय से निकलकर हरियाणा होते हुए राजस्थान के श्रीगंगानगर तथा हनुमानगढ़ में समाप्त हो जाती है। जब नदी में अत्यधिक जल प्रवाह होता है तब यह नदी बॉर्डर पार कर पाकिस्तान में विलुप्त हो जाती है। इस नदी का प्रवाह दिशा उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर है। इसके अपवाह क्षेत्र उपजाऊ होने के कारण यहाँ सघन कृषि कार्य किया जाता है।
कांतली नदी
कांतली नदी थार के मरुस्थल के शेखावटी प्रदेश में प्रवाहित होती है। और इसी क्षेत्र में विलुप्त हो जाती है। शेखावटी प्रदेश और नागौरी उच्च भूमि में बालू के टीलों के मध्य कई अस्थाई खारे पानी के झील विकसित हो जाती है, जिसे ‘प्लाया’ कहा जाता है। जब इन क्षेत्रो में पानी की मात्रा कम हो जाती है तो इन दलदलीय गर्त को ‘रण’ तथा जल पूर्ण रूप से सुख जाने पर इसे ‘टाट’ कहा जाता है।
भारतीय मरुस्थल के वनस्पति एवं जीव-जंतु
यहाँ पर जो मरुस्थलीय वनस्पति एवं जीव-जंतु पाए जाते है अन्य क्षेत्रो के तुलना में अत्यधिक संघर्षशील होते है। जो वनस्पतियां पाई जाती है उसे ‘मरुद्भिद’ वनस्पति कहा जाता है। जिसकी प्रमुख विशेषता कंटीले प्रकार तथा छोटे आकार के होते है। वनस्पतियो की सघनता भी बहुत कम पाई जाती है। पेड़-पौधे के बीच दूरी अधिक होती है। प्रमुख वनस्पतियों में नागफनी की कई प्रजातियाँ, रोहड़ी, बबूल, कीकर, खैर, बेर, आंवला, खेजड़ी, खजूर तथा कई प्रकार के कंटीले झाड़ियाँ पाई जाती है।
इन वनस्पतियों के अतिरिक्त यहाँ स्टेपी प्रकार की वनस्पतियाँ भी पाई जाती है। जिसमे कई प्रकार के घास जैसे:- सेवट, धामन, मुराल, मोड़, पामरोजा, खस, बूर( ओलेवरी या लेमन ग्रास, सुगरी ) आदि प्रमुख है।
भारतीय मरुस्थलीय प्रदेश में कई विशेष प्रकार के जीव-जंतु पाए जाते है। जो समान्य अन्य क्षेत्रो में नहीं पाए जाते है। जैसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाने वाला जानवर ऊँट, राजस्थान का रजकीय पशु चिंकारा, कला हिरण, कई प्रकार के सांप, खरगोश, लोमड़ी, गाय, भैस, भेड़, बकरी, आदि कई प्रकार के जानवर पाए जाते है।
इसी प्रकार कई प्रकार के पक्षी भी इस प्रदेश में पाए जाते है। जैसे तीतर, बटेर, सोनचिड़िंयां, कला हंस, बतख, गोडावन पक्षी ( राजस्थान का राजकीय पक्षी )
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