नमस्कार दोस्तों ! इस लेख के माध्यम से आज हमलोग भारत के प्रमुख झीलों के बारे में जानेंगे। भारत में लगभग सभी प्रकार के भू-आकृतिक प्रदेश स्थित है। जैसे:- हिमालय पर्वत माला, प्रायद्वीपीय पठार, उत्तरी विशाल मैदान तथा भारत के तटीय मैदान आदि। इसमें कई प्रकार की झीलें पाई जाती है। इस लेख में हमलोग यह जानेंगे कि झील क्या है ? या झील किसे कहते है ? यह कितने प्रकार के होते है। इसका विकास या निर्माण कैसे होता है ? इन झीलों का किसी प्रदेश में क्या महत्व है ? भारत कौन-कौन सी महत्वपूर्ण झीलें है। इत्यादि के बारे में विभिन्न तथ्यों से परिचित होंगे।
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झील क्या है ? या झील किसे कहते है ?
पृथ्वी के धरातल पर बने गर्तो ( गड्ढों ) में स्थित जल को झील कहा जाता है। अर्थात जल से भरे गर्तों को झील कहते है। यह प्रकृति तथा मानव निर्मित दोनों प्रकार के होते है। छोटे आकार वाले धरतलीय जलीय गर्त को तालाब कहा जाता है। जबकि बड़े आकार वाले धरातलीय जलीय गर्त को झील या सागर भी कहा जाता है। जैसे- महान झील, कैस्पियन सागर, मृत सागर, संभार झील, चिल्का झील, हुसैन सागर आदि।
झीलों को अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उत्तराखंड के हिमालीय पर्वतीय क्षेत्र में ‘ताल’ कहा जाता है जैसे – नैनीताल, भीमताल तथा लोकताल (मणिपुर में ) आदि। केरल के तटीय क्षेत्र में ‘कयाल’ कहा जाता है। पूर्वी तटीय मैदान में इसे ‘लैगुन’ या ‘अनुप’ कहा जाता है। जैसे- चिल्का लैगुन।
झीलों के प्रकार
पृथ्वी के धरातल पर कई प्रकार की झीलें पाई जाती है जो एक दूसरे से आकार तथा लक्षणों में भिन्नता पाई जाती है। कुछ झीलें स्थाई होते है तो कुछ झीलें अस्थाई। कुछ का जल खारा होता है तो कुछ का जल मीठा होता है। कुछ झीलों का विकास प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा किया जाता है तो कुछ का निर्माण मानव के द्वारा किया जाता है। झीलों का निर्माण प्रक्रिया भी अलग-अलग होती है। जो निम्नलिखित इस प्रकार है।
1 . विवर्तनिक झीलें ( Tectonic Lakes )
इस प्रकार के झीलों का विकास धरातलीय संचलन के कारण होता है। धरातल का संचलन ऊर्ध्वधर एवं क्षैतिज दोनों प्रकार से होते है। जिसके कारण धरातल पर कई दरारें एंव भ्रंश उत्पन्न हो जाते है। इन दरारों एवं भ्रंश के अंदर जल भरने के कारण झीलों का विकास होता है। भारत के जम्मु कश्मीर तथा कुमाऊँ हिमालय पर्वतीय क्षेत्रो में इसी प्रकार की झीलें पाई जाती है। जैसे वूलर झील, त्सो मोरिरि, पंगोड़ा त्सो आदि इसके उदाहरण है।
2 . ज्वालामुखी या क्रेटर झीलें ( Creater Laks )
इस प्रकार के झीलों का विकास ज्वालामुखी के ठंडा होने के बाद इसके मुँह में एक गर्त का विकास होता है जिसे ‘क्रेटर’ या ‘काल्डेरा‘ कहा जाता है। और जब इसमें जल भर जाता है तो यह एक ज्वालामुखी झील में परिवर्तित हो जाता है। बुलधाना, महाराष्ट्र में लोनार झील ज्वालामुखी या क्रेटर झील का एक अच्छा उदाहरण है।
3 . हिमानी झीलें ( Glacial Lakes )
बर्फीले क्षेत्रों में विशेष कर हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों में हिमानी क्रिया के कारण कई प्रकार के गर्तो का विकास हो जाता है इन गर्तो में हिम या बर्फ पिघलने से एक प्राकृतिक झील का विकास होता है जिसे हिमानी झील कहा जाता है। हिम गह्वर झील, पेटानास्टेर झील हिमानी क्रियाओं के द्वारा विकसित झीले है।
4 . नदीय झीलें ( Fluvial Lakes )
नदीय बहाव क्षेत्र में नदीय क्रिया के कारण नदी के पर्वतीय क्षेत्र, मैदानी क्षेत्र एवं डेल्टाई क्षेत्रो में कई प्रकार के झील विकसित हो जाते है जिसे नदीय झील कहा जाता है। ये झीले अस्थाई प्रकार के होते है जो नदियों के अवसाद एवं जल मार्ग में परवर्तन के कारण नदीये झीलों का निर्माण एवं विनास होते रहता है। नदीय झीलों में राफ्ट ( तरापा ) या अवरुद्ध झील, जलोढ़ पंख झील, जल प्रपात कुंड झील, गोखुर झील, डेल्टाई झील आदि इसके प्रमुख उदाहरण है।
भारत में इस प्रकार के झील गंगा नदी तंत्र, ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र, सिंधु नदी तंत्र तथा प्रायद्वीपीय नदी तंत्रो में ऊपरी, मध्य तथा नीचली नदी बेसिनों में देखने को मिलता है।
5 . वायूढ़ झीलें ( Aeolian Lakes )
इस प्रकार के झीलों का विकास शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क प्रदेशो में देखने को मिलता है। जो अस्थाई झीले होती है। इन क्षेत्रो के गर्तो में वर्षा ऋतू के समय अस्थाई नदियों द्वारा लाये गए जल के कारण इन झीलों का निर्माण होता है।
भारत में इस प्रकार के झीले राजस्थान के भारतीय मरुस्थल या थार के मरुस्थल में देखने को मिलते है सांभर झील, डीडवाना झील, देवगाना झील आदि इसके प्रमुख उदाहरण है। यहाँ पर स्थित अधिकांश झीले खारी प्रकृति की होती है। जिसमे नमक की मात्रा आधी पाई जाती है। भारत में नामक की आपूर्ति इन्ही झीलों से की जाती है।
6 . लैगुन झीलें ( Lagoons )
इस प्रकार के झीलों का विकास समुद्रतटीय क्षेत्रो के उन भागो में होता है जहाँ जहाँ महाद्वीपीय मग्न ढाल की अधिक होती है तथा ढाल मंद होता है। साथ-ही-साथ उन क्षेत्रो में भी निर्माण होता है जहाँ सागर तट की चौड़ाई कम पाई जाती है एवं सागरीय तट रेखा कटी-फटी होती है। इन क्षेत्रो में इसे कयाल कहा जाता है। चिल्का झील ( ओडिसा ), पुलिकट एवं कोलेरु झील ( आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु ), बेंबनाद तथा अष्टामुदी झील ( केरल ) में इसके प्रमुख उदहारण है।
7 . द्रवण झीलें ( Dissolution Lakes )
इस प्रकार की झीलों का विकास उन क्षेतों में होता है जहाँ पर धरातल के नीचे चुना पत्थर या लाइमस्टोन का निक्षेप पाया जाता है। चुना पत्थरों में धरतलीय जल को रिस-रिस कर मिलने से इसमें रासायनिक अभिक्रिया प्रारम्भ होती है जिसके कारण चुना पत्थरों का द्रवीकरण या छय होना प्रारम्भ हो जाता है और धीर-धीरे यहाँ धरातल के आंतरिक भाग में गुफा का निर्माण हो जाता है और जब इस गुफा के ऊपरी छत धवस्त होता है तो एक विशाल गर्त का विकास हो जाता है। जिसमे जल भर जाने के कारण झील का निर्माण होता है।
भारत में इस प्रकार की झीले मेघालय में चेरापूंजी के आसपास तथा शिलॉग में, उत्तराखंड के कुमाऊँ एवं गढ़वाल हिमालय में भीम ताल, लोक ताल आदि इसके उदाहरण है।
8 . भू-स्खलन झीलें ( Landslide Laks )
इन झीलों का निर्माण हिमालय पर्वतीय क्षेत्रो के गहरी घाटियों में देखने को मिलता है। इन पर्वतीय क्षेत्रो में भू-स्खलन के कई उत्तरदाई कारक मौजूद होते है जिससे इन क्षेत्रो में अक्सर भूस्खलन की क्रियाएँ होते रहती है। जिसके कारण गहरी घाटियों में प्रवाहित जल के मार्ग में अवरोध उत्पन्न हो जाता है और यह घाटी झील का रूप धारण कर लेती है। ये झील ज़्यदातर कम समय के लिए अर्थात अस्थाई झीले होती है।
9 . मानव निर्मित झीलें ( Man made Lakes )
इसके अंतर्गत उन झीलों को शामिल किया जाता है। जिसका निर्माण मानव के क्रियाकलापों के द्वारा होता है। मानव बहुउद्देश्यों के पूर्ति के लिए नदियों में बड़े-बड़े विशाल बांधों का निर्माण करके नदी घाटी बहुउद्देशीय परियोजनाओं का विकास करता है। जिससे विशाल-विशाल जलाशयों का विकास होता है। धरातलीय खनन कार्यो से भी झीलों का निर्माण होता है। इसके साथ-साथ जल संरक्षण एवं सिचाई के लिए धरातल पर गर्तो का निर्माण किया जाता है जिससे भी झीलों का विकास होता है।
भारत में इस प्रकार के झीलों कई उदाहरण है जैसे:- गोविन्द बल्लभ पंत सागर, सरदार सरोवर बांध, तिलैया बांध, हीराकुंड बांध, गांधी सागर, राणा प्रताप सागर आदि।
भारत के कुछ प्रमुख झीलें
हमारे भारत में लगभग सभी प्रकार की झीलें पाई जाती है भारत के कुछ प्रमुख एवं महत्वपूर्ण झीलें निम्नलिखित इस प्रकार है।
वूलर झील
भारत का सबसे बड़ी मीठे पानी का झील वूलर झील है। यह भारत के जम्मु कश्मीर में स्थित है। यह 15 किमी लम्बी तथा 10 किमी चौड़ी है इसकी औसत गहराई लगभग 5 मीटर है। यह झील सोपोर एवं बांदीपुर के मध्य स्थित है। इस झील का निर्माण विवर्तनिक क्रियाओं के द्वारा हुआ है। मौसम के अनुसार इसका आकर घटता बढ़ता रहता है। यह झील झेलम नदी से जल प्राप्त करता है इसके मुहाने पर टुलबुल परियोजना का विकास किया गया है। यह झील पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इसमें ‘शिकार’ ( एक प्रकार के नाव ) चलाये जाते है।
डल झील
यह झील भी जम्मु कश्मीर के श्रीनगर में स्थित एक प्रसिद्ध झील है। यह झील 18 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली हुई है। यह झील सेतुको (Cansewaye )द्वारा चार भागो में विभाजित गगरीबल, लोकुत डल, बोद डल तथा नाकिया है। इसके किनारे पर कई गांव एवं उपवन बने हुए है जिसमे फूलो के बैग स्थित है। ‘शालीमार’ और ‘निशांत बैग’ विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
यह झील भी शिकारे ( एक विशेष प्रकार की नाव ) के लिए प्रसिद्ध है। इस झील ‘डोंगी खेना'( canoeing ), ‘वाटर-सर्फिग’, ‘किथकींग’ जैसी सुविधाएं होने के कारण पर्यटकों को काफी आकर्षित करती है। अब यह झील प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है। इस झील में कई प्रकार के प्राकृतिक वनस्पतियां पाई जाती है जिसमे कमल के फूल, कुमुद तथा पानीफल ( सिघाड़ा ) प्रमुख है।
चिल्का झील
भारत का सबसे बड़े तटीय खारे पानी का झील चिल्का झील है। इसकी स्थिति ओडिसा राज्य में है। यह एक प्रकार के अनूप झील है। मौसम के अनुसार इसका आकर में परिवर्तन होते रहता है। वर्षा ऋतु में इसका क्षेत्रफल 1200 वर्ग किमी तथा शुष्क ऋतु में 900 वर्ग किमी होता है। यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी के द्वारा लाये गए अवसाद के जमा होने से समुद्र से अलग हो गया है। यह एक छिछली झील है जिसकी औसत गहराई 3 मीटर है।
दिसंबर से जून तक इसका जल खारा हो जाता है किन्तु वर्षा ऋतू में इसका जल मीठा हो जाता है। इस झील में नौसेना का प्रशिक्षण केंद्र भी है। इस झील में विशेष प्रकार के कछुए पाए जाते है।
सांभर झील
यह झील राजस्थान के जयपुर शहर से लगभग 70 किमी पश्चिम फुलेरा नामक स्थान में स्थित भारत का स्थलीय क्षेत्र का सबसे बड़े खारे पानी का झील है जिससे नमक प्राप्त किया जाता है। इस झील में बरसाती छोटी नदियां मेंढ़, रूपनगढ ,खारी और खंड़ेला आकर मिलती है। इसका अपवाह क्षेत्र लगभग 5700 वर्ग किमी है। यह समुद्र तल से लगभग 365 मीटर की उचाई पर स्थित है। यहाँ नवम्बर से फरवरी के महीनों में उत्तरी अमेरिका और साइबेरिया से हज़ारों की संख्या में प्रवासी पक्षियाँ आते रहते हैं।
कोलेरु झील
यह झील आंध्र प्रदेश में कृष्णा तथा गोदावरी जिले में कृष्ण तथा गोदावरी नदियों के डेल्टाओं में मध्य स्थित है यह एक मीठे पानी का झील है। यह झील लगभग 2 करोड़ स्थानीय तथा प्रवासीय पक्षियों का एक प्राकृतिक निवास स्थल है। यहाँ प्रतिवर्ष अक्टूबर से मार्च के मध्य कई साइबेरियाई एवं उत्तरी अमेरिका के बर्फीले क्षेत्रो से प्रवासी पक्षियां लाखों की संख्या में आती रहती है। यह झील को भारतीय वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम 1999 में एक वन्य जीव विहार ( Sanctuary ) / शरण स्थलीय क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया है।
पुलिकत झील
यह झील पूर्वी तटीय क्षेत्र के कोरोमंडल तट पर आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु सीमा पर स्थित दूसरी बड़ी खारी पानी के झील है। श्रीहरिकोटा द्वीप इस झील को बंगाल की खाड़ी से अलग करता है। यह झील 60 किमी लम्बी तथा 5 से 15 किमी चौड़ी है। यह झील भी अनेक स्थानीय एवं प्रवासी पक्षियों का निवास स्थल है।
नैनीताल झील
यह झील समुद्रतल से 1,937 मीटर की ऊंचाई पर उत्तराखंड में स्थित है। इसके दक्षिण पूर्वी भाग को छोड़कर चारो ओर ऊँचे पहाड़ो से घिरा हुआ है। इस झील से दक्षिण पूर्व की ओर बालिया नदी निकलती है। यह झील 1,410 मीटर लम्बी तथा 445 मीटर चौड़ी तथा 26 मीटर गहरी है। यह झील अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।
लोकताल झील
उत्तर-पूर्वी भारत का सबसे बड़े मीठे पानी का झील लोकताल है। यह झील पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर में स्थित है। यह विश्व में “तैरती द्वीपीय झील” के रूप में प्रसिद्ध है क्योकि इसमें तैरत हुए ‘फुमडीज’ ( तैरता हुआ द्वीप ) होते है। फुमडीज मुख्य रूप से वनस्पति, मिट्टी एवं विभिन्न प्रकार के जीवो के ढेर होते है जो तैरते रहते है। इस झील में ” केबुलामजाओ” नामक तैरता हुआ राष्ट्रिय पार्क / उद्यान है।
भीमताल झील
यह एक प्राकृतिक एवं त्रिभुजकर झील है जो उत्तराखंड में काठगोदाम से 10 किमी उत्तर की ओर स्थित है यह झील समुद्रतल से 1,332 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है इसके मध्य में एक छोटा सा द्वीप है जो ज्वालामुखी चट्टानों से बना है इसकी लम्बाई 1,674 मीटर, चौड़ाई 447 मीटर तथा गहराई 26 मीटर है।
अष्टामुदी झील
यह झील भारत के पश्चिमी तट पर केरल के कॉलम जिले में एक लैगून है अष्टामुदी का अर्थ होता है ‘आठ सीर’ अर्थात आठ शाखाएं। इस झील के अनेक शाखाएं होने के कारण ही इसे अष्टामुदी कहा जाता है।
बेम्बानद झील
यह झील केरल का सबसे बड़ी झील है यह एक प्रकार के लैगुन झील है इस झील पर वेलिंग्टन द्वीप है जहाँ पर राष्ट्रिय नौकायन प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है। बेलिंगटन द्वीप पर भारत का सबसे छोटा राष्ट्रिय राजमार्ग NH -47A स्थित है। इसी झील से होकर राष्ट्रिय जलमार्ग संख्या 3 गुजरती है।
यह झील 200 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है यह झील राष्ट्रिय जलमार्ग संख्या 3 नहरों के माध्यम से उत्तर तथा दक्षिण के तटीय झीलों से जुडी हुई है। केरल में प्रवाहित होने वाली अनेक नदियां इस झील में मिलती है। जिसमे से पम्बा और पेरियार प्रमुख नदियां है।
ढेबर झील ( जयसमंद )
यह झील भारत का दूसरा बड़ा मानव निर्मित झील है। यह झील राजस्थान में उदयपुर से लगभग 45 किमी पूर्व में स्थित 87 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली हुई है। यह झील उदयपुर के राणा जयसिंह के द्वारा 1687 से 1691 ईस्वी के मध्य बनाई गई है। इसका निर्माण राजस्थान के गोमती नदी पर संगमरमर के चट्टानों से बांध का निर्माण किया गया है। इसे जयसमंद, जलतारो की बस्ती एवं इसमें सात द्वीपों की स्थिति होने के कारण इसे सात टापुओं वाली झील भी कहा जाता है। यह राजस्थान में मीठे पानी का झील है।
गोविन्द बल्लभ पंत सागर
भारत का सबसे बड़ी कृत्रिम या मानव निर्मित झील गोविन्द बल्लभ पंत सागर है। यह जलाशय रिहन्द नदी पर रिहन्द बांध बनाकर किया गया है। जो सोन नदी की सहायक है। यह जलाशय उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले, मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले फैली हुई है। रिहन्द बांध का निर्माण उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के रेणुकूट नगर के पिपरी नामक स्थान पर पिपरी पहाड़ियों को जोड़कर बनाया गया है। इस बांध की उचाई 91.216 मीटर तथा लम्बाई 934.45 मीटर है। यह झील 181 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली हुई है।
गोविन्द सागर झील
यह झील भी मानव निर्मित झील है इसका निर्माण सतलज नदी पर भारत के सबसे ऊँचा बांध भाखड़ा बांध (225.5 मीटर ) बनाकर किया गया है। यह जलाशय हिमाचल प्रदेश के विलासपुर जिले में फैली हुई है। इसका नामकरण सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह के नाम पर किया गया है। इसका निर्माण 1976 ईस्वी में किया गया है।
हुसैन सागर झील
यह झील तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में स्थित है। इसका निर्माण 1563 ईस्वी में हजरत हुसैन साह के द्वारा मुसी नदी की एक सहायक नदी पर किया गया है। इस झील की अधिकतम लम्बाई 3.2 किमी, अधिकतम चौड़ाई 2.8 किमी तथा इसकी गहराई लगभग 9.75 है। यह झील 5.7 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है।
यह झील हैदराबाद और सिकंदराबाद को अलग करता है। हैदराबाद और सिकंदराबाद को जुड़वाँ नगर भी कहा जाता है। इस झील के मध्य में महत्मा गौतम बुद्ध की 16 मीटर ऊँची प्रतिमा इसके मध्य में स्थित द्वीप में किया गया है जो आकर्षण का केंद्रे है। यह झील हैदराबाद और सिकंदराबाद के लिए जल का स्रोत है। मुसी नदी पर हिमायत सागर और उस्मान सागर झील का निर्माण हुसैन सागर से पहले ही कराया गया है।
चोलामु झील
भारत के सबसे ऊंचाई पर स्थित झील चोलामु सिक्किम में है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 5,330 मीटर की उचाई पर स्थित है। यह झील चाइना बॉर्डर से महज 4 किमी दक्षिण में स्थित है। इसी झील से ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र की प्रमुख सहायक नदी तीस्ता निकलती है।