नमस्कार दोस्तों ! आज हमलोग भारत के तटीय मैदान के बारे में जानेंगे। यह मैदान भारत के प्रायद्वीपीय पठार के पूरब तथा पश्चिम में फैला हुआ है। यहाँ पर तटीय मैदान का संबंध समुद्री तट के सहारे विकसित जलोढ़ के मैदान से है। भारतीय तट रेखा हिंदमहासागर के अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी और प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी घाट तथा पूर्वी घाट के मध्य विकसित हुआ है।
भूवैज्ञानिकों के अनुसार भारतीय तटवर्ती मैदान का निर्माण अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के लम्बे समय तक जलोढ़ीकरण अर्थात नदियों द्वारा लाये गए निक्षेपों के लम्बे समय तक जमा होते रहने से हुआ है। इसके साथ-साथ समुद्री प्रक्रिया अर्थात समुद्र तल का ऊपर उठना तथा नीचे गिरने और समुद्रतटीय क्षेत्र को निमज्जन ( Submergence ) तथा निर्गमन ( Emergence ) होने के कारण से हुआ है।
यह मैदानी क्षेत्र भी भारत के उत्तरी मैदान के भांति ही उपजाऊ तथा जलोढ़ीकृत है। भारतीय तटीय मैदान की स्थिति और सक्रिय भूआकृतिक प्रक्रियाओं के आधार पर इसे दो भागो में बनता जा सकता है।
- पश्चिमी तटीय मैदान।
- पूर्वी तटीय मैदान।
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1. पश्चमी तटीय मैदान
इस मैदान का विस्तार गुजरात से लेकर कन्याकुमारी तक अरब सागर तथा पश्चिमी घाट के मध्य है। इस मैदान को उत्तर से दक्षिण की ओर कई भागो में बांटा जाता है। जैसे:-कच्छ और काठियावाड़ का मैदान ( गुजरात ), कोंकण का मैदान ( महाराष्ट्र ), गोवा तटीय मैदान ( गोवा ), कन्नड़ तटीय मैदान ( कर्नाटक ), मालाबार तटीय मैदान ( कर्नाटक तथा केरल )
पश्चिमी तटीय मैदान उत्तर तथा दक्षिण में चौड़ी तथा मध्य में संकरा है। गुजरात में सर्वाधिक चौड़ी तथा कन्नड़ तटीय मैदान सर्वाधिक संकरा है। इसकी चौड़ाई 10 से 80 किमी के मध्य है। इसकी औसत उचाई 150 से 300 मीटर है। इस क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली नदियाँ छोटी तथा तीव्रगामी होती है। नर्मदा और ताप्ती दो प्रमुख बड़ी नदियाँ प्रवाहित होती है। ये दोनों नदियाँ भ्रंश घाटी में प्रवाहित होने के साथ-साथ अपने मुख में ज्वारनदमुख स्थलाकृति का निर्माण करती है। इस क्षेत्र में बहने वाली नदियों में मलबों ( निक्षेपों ) के कमी होने के कारण इस मैदान की चौड़ाई काम पाई जाती है।
यह तटीय मैदान एक जलमग्न तटीय मैदान के रूप में जाना जाता है। इसका प्रमाण इस बात से होता है कि, पैराणिक शहर द्वारका पश्चिमी तट के मुख्य भूमि पर था जो अब जलमग्न हो चूका है। पश्चिमी तट के कुछ हिस्सा जलमग्न होने तथा इस क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली नदियों में अवसादों में कमी होने के कारण यह तटीय मैदान एक संकरे मैदान के रूप में स्थित है। जलमग्न तट होने के कारण इसमें कई प्रकृति बंदरगाह पाए जाते है। जैसे:- कांडला, मजगाँव, जे.एल.एन., मर्मागोओ, मैंगलौर, कोच्चि आदि।
इस मैदानी क्षेत्र में रेत के पुलिन, तटीय बालुका स्तूप, पंक मैदान, लैगून, नदियों के जलोढ़ क्षेत्र, ज्वारनदमुख, अवशिष्ट पहाड़ियाँ आदि प्रमुख स्थलाकृतियाँ पाई जाती है। मालाबार तट पर कई लैगून का विकास हुआ है। जिसे यहाँ ‘कयाल’ कहा जाता है। जिसका उपयोग मत्स्य पालन, पर्यटन तथा अन्तःस्थलीय नौकायन के लये किया जाता है।
पश्चिमी तटीय मैदान में नारियल, चावल, सुपारी, केला, गरम मसलो इत्यादि की खेती की जाती है।
2. पूर्वी तटीय मैदान
इसका विस्तार भारत के पूर्व में पूर्वी घाट तथा बंगाल की खाड़ी में मध्य गंगा के मुहाने से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। इस मैदान का क्षेत्रफल लगभग 1 लाख 3 हजार वर्ग किमी है इसकी चौड़ाई 100 से 120 किमी तक है। इस मैदान को उत्तर से दक्षिण की ओर उत्कल तट, उत्तरी सरकार तट, तथा कोरोमंडल तट के नाम से जाना जाता है।
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ अपने मुहाने पर लम्बे चौड़े डेल्टा का निर्माण करती है। इसमें स्वर्णरेखा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, और कावेरी नदियों के डेल्टाई क्षेत्र उभरा तट होने के कारण यहाँ पत्तन और पोताश्रय कम पाए जाते है तथा महाद्वीपीय मग्न तट की चौड़ाई लगभग 500 किमी तक पाया जाता है। इसकी चौड़ाई पश्चिमी तटीय मैदान की चौड़ाई से अधिक है।
इस तटीय मैदान का विस्तार अधिक होने एवं कृषि की दृष्टि से अधिक उपयुक्त होने के कारण पश्चिमी तट की तुलना में अधिक जनसंख्या निवास करती है। तमिलनाडु के मैदान को दक्षिण भारत का ‘अन्न का भंडार’ कहा जाता है।
इस तटीय मैदान के समुद्र निकटवर्ती क्षेत्रो में बालू के ढेरो की लम्बी शृंखला पाई जाती है, जिसका निर्माण समुद्री लहरों के द्वारा किया गया है। इन बालू के ढेरो के कारण ही इस तटीय क्षेत्रो में कई छोटे-बड़े लैगून ( झील ) पाए जाते है। जिसमे चिल्का, कोल्लेरू, पुलिकट झील प्रमुख है। चिल्का झील भारत का सबसे बड़े खारे पानी का झील है।
पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदान में अंतर
पूर्वी तटीय मैदान
- पूर्वी तटीय मैदान का विकास पूर्वी घाट तथा बंगाल की खाड़ी के मध्य हुआ है।
- इसकी चौड़ाई अधिक है।
- यहाँ प्रवाहित होने वली नदियाँ अपने मुहाने में डेल्टा का निर्माण करती है।
- इस तटीय मैदान में लैगून की संख्या कम पाई जाती है।
- इस तटीय मैदान में प्राकृतिक बंदरगाह का विकास कम हुआ है।
- पूर्वी तटीय मैदान के तीन भाग है उत्कल, उत्तरी सरकार, कोरोमंडल तटीय मैदान
- इस तटवर्ती मैदान में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदियाँ स्वर्णरेखा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी है।
पश्चिमी तटीय मैदान
- पश्चिमी तटीय मैदान का विकास पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के मध्य हुआ है।
- इसकी चौड़ाई कम है।
- इसमें प्रवाहित होने वाली नदियाँ अपने मुख पर डेल्टा का निर्माण नहीं करती बल्कि ज्वारनदमुख का निर्माण करती है।
- इस तटीय मैदान में लैगून की संख्या अधिक पाई जाती है। विशेषकर मालाबार तट पर।
- इसमें स्थित अधिकांश बंदरगाह प्रकृति बंदरगाह है।
- इस मैदान मुख्य पाँच भाग है कच्छ एवं काठियावाड़ का मैदान, कोंकण का मैदान, गोवा तटीय मैदान, कन्नड़ का मैदान, मालाबार तटीय मैदान।
- इसमें प्रवाहित होने वाली नदियों में माही, शाबरमती, नर्मदा, ताप्ती, शरावती आदि प्रमुख है।