मानव भूगोल को जानने से पहले हमे भूगोल के विषय में जानना होगा क्योकि मानव भूगोल , भूगोल के ही एक महत्वपूर्ण शाखा है।
भूगोल :–
भूगोल पृथ्वी के भौतिक एवं मानवीय तत्वों का अध्ययन करता है। यह एक समाकलात्मक , अनुभविक , व्यावहारिक विषय है और दिक् (देश ,क्षेत्र ) एवं काल के संबंध में परिवर्तित होने वाली घटनाओ एवं परिघटनाओं का अध्ययन करता है। अतः इसे भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल दो मुख्य भागो मे बंटा जाता है।
भौतिक भूगोल:–
पृथ्वी के भौतिक तत्वों जैसे जल (महासागर ,नदियाँ ,झील ,भूमिगत जल इत्यादि ) वायुमंडल ( संगठन ,संरचना , वायुपरिसंचरन , वायुदाब ,वर्षा, बदल इत्यादि ) स्थलमंडल (स्थलाकृतियाँ — पर्वत , पठार , मैदान इत्यादि ) का अध्ययन किया जाता है।
मानव भूगोल Manav Bhugol :–
भूगोल की इस शाखा में पृथ्वी पर मानव और प्रकृति के अंतरसंबंध /अंतर्प्रक्रिया से उत्तपन्न तत्वों जैसे – मानव (जाति , प्रजाति , जनसंख्या वितरण, जनसंख्या घनत्व,जनसंख्या वृद्धि, प्रवास , निवास , मानवीय क्रियाएँ जैसे -कृषि , पशुपालन ,उद्योग सेवाएँ , परिवहन , संचार ,व्यापार इत्यादि ) का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल के जनक जर्मन भूगोलवेता फ्रेड्रिक रैटज़ेल को कहा जाता है। इनके द्वारा लिखित पुष्तक ”एंथ्रोपोजियोग्राफी’‘ मे मानव पर प्रकृति का प्रभाव एवं प्रकृति के ऊपर मानव का प्रभाव विसद रूप से प्रस्तुत किया गया है। इसी रचना के कारण इन्हें मानव भूगोल के जनक के रूप में जाना जाता है।
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मानव भूगोल कि परिभाषा
फ्रेड्रिक रैटज़ेल (1844 – 1904 ) — “मानव भूगोल भूपृष्ठ , मानव समाजो तथा पृथ्वी तल के बीच संबंधो का संश्लिष्ट अध्ययन है।”
एलन कुमारी सेंपल (1863 – 1932 ) —- “मानव भूगोल , अस्थिर पृथ्वी एवं क्रियाशील मानव के परस्पर परिवर्तनशील संबंधो का अध्ययन है। “
पॉल वाइडल-डी-ला ब्लाश(1848 -1918 ) —- मानव भूगोल पृथ्वी एवं मनुष्य के बीच पारस्परिक संबंधो को एक नई समझ देता है , जिसमे पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमो तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक संबंधो का अधिक संयुक्त ज्ञान समाविष्ट होता है।”
मानव भूगोल का विकास
जब से लोग इस पृथ्वी में आया है तब से इसका विकास चला या रहा है। मानव भूगोल के अध्ययन के क्षेत्र उस समय से की जा रही है , जबसे मनुष्य प्रकृति के साथ अंतरप्रक्रिया करना प्रारम्भ किया। इसका इतिहास काफी प्राचीन है। समय के साथ इसके उपागम में होते रहा है। खोज के युग से पहले विभिन्न समाजो के बीच अंतर्क्रिया लगभग नहीं के बराबर थी और एक दूसरे के विषय में ज्ञान काफी सीमित था। मानव भूगोल के इतिहास को निम्न कड़ियों के द्वारा जानने का प्रयास करेंगे।
आरम्भिक उपनिवेश युग
इस काल में मानव भूगोल के अन्वेषण और विवरण उपागम का विकास हुआ। साम्राज्य और व्यापारिक रुचियों में नए क्षेत्रो में खोजों व अन्वेषणों को प्रोत्साहित किया। क्षेत्र का विश्वज्ञानकोषिय विवरण भूगोलवेतावों द्वारा वर्णन का महत्वपूर्ण पक्ष बना
उत्तर उपनिवेश युग
इस काल में प्रादेशिक विश्लेषण का विकास हुवा। प्रदेश के सभी पक्षों के विस्तृत वर्णन किए गए। यह विचार विकसित हुआ कि सभी प्रदेश पूर्ण एवं पृथ्वी का भाग है। अतः इन भागो की पूरी समझ पृथ्वी के पूर्ण रूप से समझाने में सहायता करेगी।
अंतर विश्व युद्ध के बीच 1930 का दशक
इस अवधि में क्षेत्रीय विभेदन पर बल दिया गया। एक प्रदेश किसी अन्य प्रदेशो से किस प्रकार और क्यों भिन्न है। यह समझने के लिए तथा किसी प्रदेश की विलक्षणता की पहचान करने पर बल दिया गया।
1950 के दशक के अंत से 1960 के दशक के अंत तक
इस काल में स्थानिक संगठन मानव भूगोल के अध्ययन का मुख्या विषय रहा। कम्प्यूटर और परिष्कृत सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग प्रमुख रहा। मानचित्र और मानवीय परिघटनाओं के विश्लेषण में प्रायः भौतिक विज्ञान के नियमो का अनुप्रयोग किया गया। इस प्रावस्था को विभिन्न मानवीय क्रियाओ के मानचित्र योग्य प्रतिरूप की पहचान कर्ण इसका मुख्य उदेश्य था।
1970 के दशक
मानवतावादी, आमूलवादी, और व्यवहारवादी विचारधाराओ का इस काल में विकास हुआ। मात्रात्मक क्रांति से उत्तपन्न असंतुष्टि और अमानवीय रूप से भूगोल के अध्ययन के चलते मानव भूगोल में 1970 के दशक में तीन नए विचारधाराओं का जन्म हुआ। इन विचारधाराओ के विकास से भूगोल की यह शाखा सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ के प्रति अधिक प्रासंगिक बना।
मानवतावादी विचारधारा
इस विचारधारा का संबंध मुख्यतः लोगो के सामाजिक कल्याण के विभिन्न पक्षों से था। इसमें आवासन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे पक्ष सम्मिलित थे। भूगोलवेतावों ने पहले ही स्नातकोत्तर पाठ्यचर्या में सामाजिक कल्याण के रूप में भूगोल का एक कोर्स आरम्भ कर दिया था।
आमूलवादी (रेडिकल) विचारधारा
इस विचारधारा ने विर्धनता के कारण, बंधन और सामाजिक असमानता की व्याख्या के लिए मार्क्स के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। समकालीन सामाजिक समस्याओ का संबंध पूंजीवादी का विकास का विकास से था।
व्यवहारवादी विचारधारा
इस विचधारा ने प्रत्यक्ष अनुभव के साथ-साथ मानव जातीयता, प्रजाति, धर्म इत्यादि पर आधारित सामाजिक संवर्गो के देश काल बोध पर ज्यादा जोर दिया।
1980 के बाद
वर्तमान समय को भूगोल में उत्तर-आधुनिकवाद कहा जाता है। इस काल में सामान्यीकरण तथा मानवीय दशाओ की व्याख्या करने वाले वैश्विक सिधान्तो की प्रयोग पर प्रश्न उठने लगे। अपने आप में प्रत्येक स्थानिक संदर्भ की समझ के महत्व पर जोर किया गया।