नमस्कार दोस्तों ! आज हमलोग इस लेख में भारत का अपवाह तंत्र के अंतर्गत एक और महत्वपूर्ण एवं रोचक नदी तंत्र के बारे में जानेंगे जिसका नाम है सिंधु नदी तंत्र इसके अंतर्गत सिंधु नदी तंत्र के महत्वपूर्व तथ्यों से परिचित होंगे। तथा इसके भारत में अपवाहित क्षेत्रो तथा इसके सहायक नदियों को जानेंगे जिसका अधिकांश भाग भारत में प्रवाहित अपवाहित है।
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सिंधु नदी तंत्र
सिंधु नदी तथा इसकी सहायक नदियों के जाल को सिंधु नदी तंत्र के नाम से जाना जाता है। इसका विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम में 11 लाख 65 हजार वर्ग किमी के क्षेत्र में विस्तृत है। जो विश्व की बड़ी नदी द्रोणियों में से एक है। इसमें से भारत में इसका अपवाह क्षेत्र लगभग 3,21,289 वर्ग किमी है।
इस नदी तंत्र का अधिकांश नदियों का उद्गम हिमालय पर्वत शृंखला से हुआ है जिसमे झेलम, चिनाव, रावी, व्यास, सतलज सिंधु नदी तंत्र की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है ये नदियां ‘पंचनद’ के नाम से जानी जाती है। इनमे से झेलम नदी का उद्गम पीरपंजाल से होती है बाकि नदियां हिमालय पर्वत से निकलती है इसमें से सिंधु और सतलज नदी पूर्ववर्ती नदी है। जिसका उद्गम हिमालय के उत्थान से पूर्व हुई है जिसके कारण ये नदियाँ हिमालय पर्वत श्रेणियों में गहरे गॉर्ज , केनियन, खड्ड का निर्माण करती है।
सिंधु नदी तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण नदी सिंधु नदी है। इसी अनुवर्ती नदी में सभी सिंधु नदी तंत्र की नदियाँ समाहित होती है। अकेले सिंधु नदी का हिमालय क्षेत्र में लगभग 2 लाख 50 हजार क्षेत्र में अपवाहित होती है।
इस नदी तंत्र को ‘इंडस नदी तंत्र’ के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी तंत्र आर्थिक, ऐतिहासिक तथा सामरिक दृष्टि से भारत एवं पाकिस्तान के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस नदी तंत्र में प्राचीन कालीन सिंधु घाटी की सभ्यता विकसित हुई थी जो एक नगरीय सभ्यता थी यह नदी तंत्र भारत के हरित क्रांति के क्षेत्र तथा पाकिस्तान का जीवन रेखा मानी जाती है।
सिंधु नदी तंत्र की महत्पूर्ण नदियाँ
इस नदी तंत्र में सिंधु प्रमुख अनुवर्ती नदी है। जिसमे इसकी सहायक नदियाँ आकर मिलती है और सिंधु नदी तंत्र का निर्माण करती है। इसमें हिमालय क्षेत्र से श्योक, गिलगित, जास्कर, हुंज, नूबरा, शिगार, ग्रास्टिंग व द्रास प्रमुख है। इस नदी तंत्र के दाएं किनारे पर काबुल, खुर्रम, तोची, गोमल, विबोआ और संगर आदि मिलती है। जो सुलेमान पर्वत से निकलकर पाकिस्तान में प्रवाहित होते हुए सिंधु नदी में मिलती है। सिंधु नदी के बायें तट पर पाँच प्रमुख नदियां झेलम, चिनाव, रावी, व्यास, सतलज मिलती है। जो इस नदी तंत्र की महत्वपूर्ण नदियाँ है जो भारत की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।
सिंधु नदी
यह नदी भारत में हिमालय की नदियों में सबसे पश्चिम में है। इसका उद्गम तिब्बत क्षेत्र में कैलाश पर्वत श्रेणी में स्थित मानसरोवर झील के निकट ‘बोखर-चू ‘( Bokharchu ) हिमनद से हुआ है। जो समुद्रतल से 4,164 मीटर की उचाई पर 31 डिग्री 15 मिनट उत्तरी अक्षांश तथा 80 डिग्री 40 मिनट पूर्वी देशांतर में स्थित है। इस स्थान को ‘सिंगी खंबान’ या शेर मुख के नाम से जाना जाता है। इसकी लम्बाई 2880 किमी है जिसमे से 1114 किमी भारत में है। भारत में यह जम्मु कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित राज्य में प्रवाहित होती है।
यह नदी उद्गम स्थान से उत्तर पश्चिम दिशा में लद्दाख और जास्कर श्रेणियों के मध्य से प्रवाहित होते हुए लद्दाख और बालतिस्तान से गुजरती हुई ‘अटक’ में पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है और मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है इसके द्वारा निर्मित सबसे गहरे खड्ड गिलगित ( 5200 मीटर ) है। यह नदी नंगा पर्वत के निकट से होकर गुजरती है तथा दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़कर यह पाकिस्तान में चिल्ल्ड के निकट दर्दिस्तान प्रदेश में प्रवेश करती है।
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में श्योक,गिलगित, जास्कर, हुंजा, नूबरा, शिगार, ग्रास्टिंग और द्रास नदियां इसमें मिलती है। जब यह नदी पाकिस्तान के मैदानी प्रदेश में पहुँचती है तब इसके दाहिने किनारे पर सुलेमान पर्वत से निकलने वाली काबुल, कुर्रम, तोची, गोमल, विबोआ, तथा सांगर आदि नदियाँ इसमें मिलती है। मैदानी क्षेत्र में यह नदी दक्षिण की ओर प्रवाहित होते हुए मिठानकोट के निकट इसके बाएं किनारे पर मिलने वाली सबसे महत्वपूर्ण एवं लम्बी सहायक नदियाँ झेलम, चिनाव, रावी, व्यास, सतलज है। इन नदियों के समूह को पंचनद तथा अपवाहित क्षेत्र को पंजाब कहा जाता है। अंत में यह नदी दक्षिण की ओर प्रवाहित होते हुए पाकिस्तान के कराची के पूरब में अरब सागर में मिलती है।
झेलम नदी ( विस्ता ) नदी
झेलम नदी का उद्गम कश्मीर घाटी के दक्षिण-पूर्वी भाग में पीरपंजाल के गिरिपाद में स्थित वेरीनाग झरने से हुआ है। यह उत्तर-पश्चिम की ओर बहते हुए वुलर झील में प्रवेश करती है। इसके पश्चात बारामुला से आगे यह 2130 मीटर गहरी महाखड्ड का निर्माण करती है इसके बाद मुजफ्फराबाद ( पाकिस्तान ) की ओर मुड़ जाती है और पाकिस्तान में झांग के निकट चिनाव नदी से मिल जाती है।
इस नदी को प्राचीन काल में विस्ता नाम से जानी जाती थी। इस नदी की कुल लम्बाई 724 किमी है जिसमे से 400 किमी भारत में बहती है। इसकी कुल अपवाह क्षेत्र 28,499 वर्ग किमी है। इसी नदी के तट पर श्रीनगर स्थित है। यह नदी अनंतनाग एवं बारामुला के बीच नौगम्य है। यह नदी जम्मु कश्मीर की महत्वपूर्ण नदी है। इसमें ‘शिकारा’ या ‘बंजरे’ ( एक प्रकार के नाव ) चलाये जाते है। तथा इसमें फल, फूल, और सब्जियाँ उगाई जाती है।
चिनाव ( आस्किणी ) नदी
इस नदी को प्राचीन काल में आस्किणी के नाम से जानी जाती थी। यह नदी सिंधु नदी तंत्र का सबसे बड़ी एवं लम्बी सहायक नदी है इसकी उत्पत्ति हिमाचल प्रदेश में केलांग के निकट तांडी में 4900 मीटर की उचाई में चंद्र और भगा दो नदियों के मिलने से हुई है। इसलिए इसे हिमाचल प्रदेश में चंद्रभागा के नाम से जानी जाती है।
यह पीरपंजाल तथा वृहत हिमालय के बीच बहती है। और किस्तवार के निकट पीरपंजाल में गहरे गॉर्ज का निर्माण करते हुए एक कैची-मोड़ ( Hair- pin- bend ) या तीक्ष्ण मोड़ बनाते हुए पीरपंजाल के रिआसी में पार कर पाकिस्तान में प्रवेश करती है। यह भारत में 1180 किमी प्रवाहित होती है तथा इसका अपवाह क्षेत्र भारत में 26755 वर्ग किमी है।
इस नदी पर भारत के महत्वपूर्ण जल विद्युत परियोजना बगलिहार, सेलाल, तथा दुलहस्ती का विकास किया गया है।
रावी ( पुरुष्णी या इरावती ) नदी
इस नदी को प्राचीन काल में पुरुष्णी या इरावती नदी के नाम से जानी जाती थी। इसका उद्गम हिमाचल प्रदेश के कुल्लू पहाड़ियों में स्थित रोहतांग दर्रे के निकट से निकलती है। यह नदी पांच नदियों में सबसे छोटी नदी है। यह धौलाधर तथा पीरपंजाल श्रेणी के मध्य में गुजरते हुए गहरी एवं संकरी घाटी का निर्माण करती है। चम्बा शहर के बाद यह नदी दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ती है और धौलाधार श्रेणी में गहरे गॉर्ज का निर्माण करती है इसके बाद माधोपुर में यह मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है और आगे पाकिस्तान के मुल्तान के निकट चिनाव नदी में मिल जाती है।
उद्गम स्थल से संगम स्थल के मध्य यह 725 किमी की दूरी तैय करती है। भारत में इसका कुल अपवाह क्षेत्र 5957 वर्ग किमी है। यह पंजाब के अमृतसर और गुरुदासपुर जिलों से होते हुए पाकिस्तान पहुँचती है।
व्यास ( विपाशा या यार्गिकीया ) नदी
इसका उद्गम हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे पर स्थित व्यास कुंड से लगभग 4000 मीटर की उचाई से निकलती है। इसी नदी घाटी में कुल्लू, मनाली एवं कांगड़ की प्रसिद्ध घाटियां स्थित है।
इस नदी की कुल लम्बाई 470 किमी तथा इसका कुल अपवाह क्षेत्र 25,900 वर्ग किमी है यह नदी कुल्लू घाटी में गुजरती हुई धौलाधर श्रेणी में काती और लारंगी में महाखड्ड का निर्माण करती है तथा पंजाब के होशियारपुर जिलें में स्थित तलवाड़ नामक स्थान पर मैदानी प्रदेश में प्रवेश करती है। आगे यह कपूरथल्ला तथा अमृतसर जिले से होकर गुजरती हुई हरिके के पास सतलज नदी से मिल जाती है।
सतलज ( साताद्रू या सातुद्री ) नदी
सतलज नदी को प्राचीन काल में साताद्रू या सातुद्री नदी के नाम से जानी जाती थी इसका उद्गम तिब्बत में कैलाश पर्वत के दक्षिण में स्थित मानसरोवर झील के निकट राकस ताल से हुआ है। जहाँ यह लोंगचेन खंबाब के नाम से जानी जाती है। जो समुद्र तल से 4555 मीटर की उचाई पर स्थित है।
उद्गम के बाद यह नदी पश्चिम की ओर सिंधु नदी के समांतर 400 किमी प्रवाहित होते हुए महान हिमालय और जास्कर श्रेणियों में गहरे खड्ड का निर्माण करते हुए दक्षिण पश्चिम दिशा में शिपकिला दर्रे से होते हुए हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है।
इसके बाद यह पश्चिम की ओर मुड़ती है तथा कल्पा को पार कर रामपुर के निकट धौलाधार श्रेणी को एक संकीर्ण खड्ड के द्वारा पार करती है शिवालिक पर्वत पर एक संकरे महाखड्ड भाखड़ा गांव के निकट निर्माण करती है। जहाँ भाखड़ा बांध का निर्माण किया गया है। भाखड़ा बांध के नीचे रूपनगर के पास यह नदी पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है।
रोपड़ से यह नदी पश्चिम की ओर बहती है। और कपूरथला के दक्षिण- पश्चिम किनारे हरिके में यह नदी व्यास से मिलती है इसके बाद यह पाकिस्तान में प्रवेश करती है। भारत में इसकी लम्बाई 1050 किमी तथा इसका अपवाह क्षेत्र 28,090 वर्ग किमी है।
यह नदी एक पूर्ववर्ती नदी है। इस नदी पर भाखड़ा नांगल परियोजना निर्माण किया गया है तथा सरहिंद एवं इंदिरा गाँधी नहर परियोजना इसी नदी से जल प्राप्त होता है।
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आपको दिल से धन्यवाद! यह टाइपो एरर था। इसे मैंने सुधार लिया है।
भाई जी तथ्य बहुत बढ़िया है, पर जो मैप लगाया है वो सही नहीं है इसमें भारत का कुछ भाग(जम्मू कश्मीर का) पाकिस्तान में दिखा रखा है। 🙏🙏