नमस्कार दोस्तों ! आज हमलोग प्लेट विविर्तनिक सिद्धांत के अंतर्गत एक प्रमुख एवं महत्वपूर्ण प्लेट के विषय में जानेंगे जिसका नाम है, भारतीय प्लेट। इस लेख में हमलोग भारतीय प्लेट के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानने का प्रयास करेंगे। जैसे :-इसका निर्माण कैसे हुआ है ?, इसकी स्थिति और विस्तार क्या है ?, इस प्लेट की गति और दिशा क्या है ?, इसके प्रवाहित होने से कौन कौन से बड़े परिवर्तन हुए है आदि।
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भारतीय प्लेट की उत्पत्ति कैसे हुई है ?
वेगनर महोदय के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के अनुसार सभी महाद्वीप एक अकेले विशाल भूखंड में जुड़े हुए थे, जिसे इन्होने “पैंजिया” ( Pangaea ) नाम दिया था। इस पैंजिया के विखंडन लगभग 30 करोड़ वर्ष पूर्व अंतिम कार्बेनीफेरस आरम्भ हुआ था। प्रारम्भ में यह पैंजिया दो भागो में विभाजित हुआ जिसे उत्तरी भाग को लॉरेशीय या अंगारलैण्ड तथा दक्षिणी भाग को गोंडवानालैंड कहा गया।
लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व गोंडवानालैण्ड का भी विखंडन होना प्रारम्भ हुआ। इस गोंडवानालैण्ड का एक भाग ही भारतीय प्लेट है। गोंडवानालैंड के विखंडन से ही प्रायद्वीपीय भारतीय के साथ साथ दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा अंटार्कटिक भूखंड का निर्माण हुआ। इस तरह से भरतीय प्लेट अस्तित्व में आया।
भारतीय प्लेट की स्थिति और विस्तार
यह प्लेट पूर्वी गोलार्द्ध में स्थित है। गोंडवानलैंड के विखंडन के बाद भारतीय एवं ऑस्ट्रियाई प्लेट उत्तर-पूर्व में गतिशील होते हुए आपस में मिल गए जिसके कारण इसे इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेट के नाम से भी जाना जाता है। इस प्लेट का उत्तरी-पूर्वी सीमा हिमालय पर्वत द्वारा निर्धारित है, जो एक अभिसारी प्लेट सीमा है। इसके पूर्वी दिशा में म्यांमार के रकिनयोमा पर्वत होते हुए एक चाप के रूप में इंडोनेशिया के जावा खाई तक फैला हुआ है।
इसकी पूर्वी सीमा आस्ट्रेलिया के पूरब में दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागरीय कटक के रूप में है। इस प्लेट के पश्चिमी सीमा पाकिस्तान की किरथर श्रेणियों का अनुसरण करती है। यह आगे मरकाना तट के साथ-साथ होते हुए दक्षिण-पूर्वी चागोस द्वीप के साथ-साथ लाल सागर द्रोणी में जा मिलती है।
इसका दक्षिणी सीमा हिन्द महासागर और अंटार्कटिक सागर के मध्य महासागरीय कटक द्वारा निर्धारित होती है। जो एक अपसारी प्लेट सीमा है। जो चागोस द्वीप समूह से दक्षिण-पूर्व होते हुए न्यूजीलैंड के दक्षिण में विस्तारित तल से मिल जाती है।
इस प्लेट में भारतीय उपमहाद्वीप, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा हिंदमहासागर स्थित है। इसके पूरब में प्रशांत महासागरीय प्लेट, पश्चिम में सोमाली और अरेबियन प्लेट, उत्तर तथा उत्तर पूर्व में यूरेशियन प्लेट तथा दक्षिण में अंटर्कटिक प्लेट स्थित है।
भारतीय प्लेट का संचलन, गति एवं दिशा
गोंडवानालैण्ड के विभाजन लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ इसके बाद यह प्लेट उत्तर-पूर्व की ओर 1 से 3 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से प्रवाहित होना प्रारम्भ हुआ। आज से लगभग 14 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप 50 डिग्री अक्षांश पर स्थित था। और लगभग 3 से 4 करोड़ वर्ष पूर्व यह यूरेशियाई प्लेट से टकराया।
चित्र के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप लगभग 7.1 करोड़ वर्ष पूर्व इसकी स्थिति लगभब 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश से 20 डिग्री अक्षांश के मध्य थी। लगभग 5.5 करोड़ वर्ष पूर्व इसकी स्थिति 20 डिग्री दक्षिणी अक्षांश से 5 डिग्री उत्तरी अक्षांश के मध्य हो गया।
3.8 करोड़ वर्ष पूर्व इसकी स्थिति लगभग 5 डिग्री दक्षिणी अक्षांश से 20 डिग्री उत्तरी अक्षांश के मध्य हो गया। इस समय यह प्लेट यूरेशियाई प्लेट के सम्पर्क में आया। लगभग 1 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप का सम्पूर्ण हिस्सा विषुवत रेखा को पार करके उत्तरी गोलार्द्ध में पहुंच गया और वर्त्तमान समय में यह उत्तर-पूर्व की ओर अग्रसारित है।
प्रवाहित भारतीय प्लेट के परिणाम
इस प्लेट के उत्तर-पूर्व में प्रवाहित होने से इसके प्लेट सीमाओं पर कई परिवर्तन उभरकर सामने आये है। इन सीमाओं के साथ-साथ इसके आंतरिक भागो में कई परिवर्तन देखने को मिलते है कुछ महत्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित इस प्रकार है।
- इसके उत्तर में यूरेशियाई प्लेट के साथ अभिसारी प्लेट सीमा पर विश्व के सबसे ऊँची पर्वत शृंखला हिमालय का निर्माण हुआ है। इसकी निर्माण की प्रक्रिया आदिनूतन कल में 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर वर्त्तमान समय तक जारी है।
- टेथिस सागर का विनास इस प्लेट के उत्तर-पूर्व में अभिसरण के कारण ही हुआ है। जहाँ पर हिमालय तथा भारत के उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण हुआ है।
- इसके यूरेशियाई प्लेट के टकराने से ही भारत में विंध्याचल पर्वत, सतपुड़ा की श्रेणियों एवं भ्रंश नर्मदा घाटी का विकास हुआ है।
- भारतीय प्लेट के प्रवाह के कारण लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व दरारी ज्वालामुखी के उद्गार से लावा प्रवाह के कारण दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ। यह लावा प्रवाह लम्बे समय तक जारी रहा था।
- हिन्द महासागर तथा अंटार्कटिक महासागर के मध्य और अधिक क्षेत्र का विस्तार तथा भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रफल में कमि हो रही है।
- ऐसा माना जाता है कि, इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेट के उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होने के कारण ही आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर ग्रेट डिवाइडिंग रेंज का भी निर्माण हुआ है।
- अंटर्कटिक प्लेट तथा इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेट के अपसारी प्लेट सीमा पर कटको का विकास इसी कारण से हुआ है।
निष्कर्ष
भारतीय प्लेट 7 प्रमुख प्लेटो में से एक प्रमुख प्लेट है। इसका निर्माण गोंडवानालैण्ड के विखंडन के फलस्वरूप लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है तब इसकी स्थिति दक्षिणी ध्रुव के आस-पास थी। कालांतर में इसका प्रवाह उत्तर-पूर्व की ओर हुआ। यह प्लेट ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के साथ मिलने के बाद इसे इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट के नाम से जाना जाता है। इसके प्रवाह के कारण ही हिमालय पर्वत का निर्माण टेथिस सागर के स्थान पर हुआ है।
Bahut achha dhanyawad
Bahut achha lekh, dhanyawad
Very nice 👍 thanks 🙏