नमस्कार दोस्तों ! भौतिक भूगोल के एक और महत्वपूर्ण विषय विन्दु में आपलोगो का स्वागत है। आज हमलोग धरातल के द्वितीय क्रम के उच्चावच पर्वत, पठार एवं मैदान में से पठार के विषय में जानेंगे कि पठार क्या होता है ? इसका निर्माण एवं विकास कैसे होता है ? इसके वर्गीकरण एवं प्रकार क्या है ? इसको किन आधारों पर विभाजित किया जाता है ? आदि पठार से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्यों के बारे में जानेंगे।
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पठार किसे कहते है या पठार क्या है ?
सामान्य रूप से पठार उस भू-आकृति को कहा जाता है जो आस-पास के क्षेत्रो से ऊँचा हो, जिसका शीर्ष सपाट मेज की भांति या उबड़-खाबड़ हो, जिसका कम से कम एक कगार तीव्र हो जो अन्य क्षेत्रो से इसको अलग करता हो। यह आस-पास के मैदान से ऊँचा तथा आस-पास के पर्वतो से निचा होता है।
इसकी कोई स्पष्ट उचाई नहीं होती इसी कारण से यह कुछ सौ मीटर से लेकर कई हजार मीटर तक की ऊंचाई में पाए जाते है। पठारों के संबंध में फ्रिंच एवं त्रिवार्था ने आस-पास के क्षेत्रो से 500 फिट (154 मीटर ) ऊँचे उठे हुए भाग को पठार माना है।
सामान्य रूप से इसकी उचाई समुद्र तल से 300 से 1000 मीटर के मध्य पाए जाते है किन्तु यह 4 से 5 हजार मीटर तक हो सकते है। जैसे:- तिब्बत का पठार ( 5000 मीटर ), कोलोरेडो का पठार ( 2500 मीटर ), भारत के झारखंड में पाट प्रदेश ( 900 मीटर ) आदि है।
विश्व का सबसे ऊँचा पठार तिब्बत का पठार है जो एशिया महाद्वीप में स्थित है।
पठारों की क्या विशेषताएँ होती है ?
पठारों की निम्न विशेषताएँ होती है।
- यह आस- पास के पर्वतो से निचा तथा मैदानों से ऊँचा होता है।
- इसका शीर्ष सपाट या उबड़-खाबड़ एवं विस्तृत होता है।
- यह खुले मेज की भांति या एक छोर पर पर्वतों से घिरा हुआ तथा दूसरी छोर में मैदानों या समुद्र तटीय क्षेत्र या चारो ओर से पर्वतो से घिरा हुआ हो सकता है।
- इसकी उचाई कुछ सौ मीटर से लेकर कई हजार मीटर की ऊंचाई तक हो सकते है। इसकी कोई स्पष्ट ऊंचाई नहीं होती है।
पठारों का निर्माण कैसे होता है ?
पठारों के विकास के लिए कई कारक उत्तरदाई भूमिका निभाते है, कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित इस प्रकार है।
- धरातल का अवसंवलन ( Downwarping ) – धरातल का कुछ हिस्सा नीचे धंस जाता है तो बाकि आस-पास का भाग ऊपर उठा हुआ दिखाई देता जिसे पठार के रूप में जाना जाता है।
- धरातल का उत्संवलन ( Upwarping ) – जब धरातल का कुछ हिस्सा आंतरिक बलो के कारण आस-पास के क्षेत्रो से ऊपर उठ जाता है तो वह पठार के रूप में विकसित हो जाता है।
- लावा का प्रवाह – जब किसी समतल क्षेत्र में दरारी ज्वालामुखी उद्गार के कारण लावा का फैलाव होता है तो यह आस-पास के क्षेत्रो से ऊपर उठ जाता है तो यह पठार के रूप में विकसित हो जाता है। यह लावा कुछ समय अंतराल में रुक-रुक कर होता है तो इससे संरचनात्मक सोपान जैसे पठार का निर्माण होता है जिसे ट्रैप कहा जाता है जैसे- भारत का दक्कन का ट्रैप।
- पर्वतो के निर्माण के साथ-साथ आस-पास के क्षेत्र भी ऊपर उठ जाते है, किन्तु इसका शीर्ष नुकीला ना होकर सपाट होता है। इस तरह के पठार को पर्वतपदीय पठार कहा जाता है। जैसे- अमेरिका के अप्लेशियन पर्वत के पूर्व में पीडमंट का पठार।
- भूसन्नति के दोनों अग्र भाग में वलन पड़ने से दोनों छोर पर पर्वतो का निर्माण होता है, किन्तु भूसन्नति के मध्य भाग पर वलन का निर्माण नहीं होता है और यह मध्य क्षेत्र भी दोनों छोरो के पर्वतो के साथ-साथ ऊपर उठता है और अन्तर्पर्वतीय पठार का निर्माण करता है जैसे- तिब्बत का पठार।
- प्राचीनकाल के पर्वतो के अनाच्छादन ( Denudation ) के कारण उसका शीर्ष भाग घर्षित होकर छोटा होते जाता है जिससे यह बाद में पठार में विकसित हो जाता है। जैसे- अप्लेशियन पर्वत में ऐसे कई पठार देखे जा सकते है।
पठारों के वर्गीकरण
पठारों का वर्गीकरण के कई आधारों पर किया जा सकता है। जो निम्नलिखित इस प्रकार है।
- निर्माण प्रक्रिया के आधार पर।
- बहिर्जनित बल द्वारा निर्मित पठार।
- हिमानिकृत पठार।
- पवन द्वारा निर्मित पठार।
- जल द्वारा निर्मित पठार।
- अंतर्जनित बलों के द्वारा निर्मित पठार।
- पटल विरूपणी पठार ( Diastrophic Plateau )
- अंतरपर्वतीय पठार ( Intermontane Plateau )
- गिरिपद पठार ( Piedmont Plateau )
- गुम्बदीय पठार ( Dome Plateau )
- आकस्मिक अंतर्जात बल द्वारा निर्मित पठार।
- ज्वालामुखी पठार।
- लावा पठार।
- अन्तर्वेधी पठार।
- वहिर्वेधी पठार।
- केंद्रीय उद्गार द्वारा निर्मित पठार।
- लावा पठार।
- ज्वालामुखी पठार।
- मिश्रित पठार।
- पटल विरूपणी पठार ( Diastrophic Plateau )
- बहिर्जनित बल द्वारा निर्मित पठार।
- भौगोलिक स्थिति के अनुसार पठारों के प्रकार।
- अंतरपर्वतीय पठार।
- गिरिपदीय पठार।
- महाद्वीपीय पठार।
- तटीय पठार।
- आकृति के अनुसार पठारों के प्रकार।
- गुंबदाकार पठार – छोटानागपुर का पठार।
- घर्षित पठार – प्रायद्वीपी भारत का पठार।
- सोपानकार पठार – विंध्यन का पठार।
- सपाट पठार – तिब्बत का पठार।
- पुनर्युवति पठार।
- पृष्ठीय धरातल के अनुसार पठारों के प्रकार ( डॉ छिब्बर के अनुसार )
- विषम पठार।
- गिरिप्रस्थ पठार।
- जलवायु के आधार पठारों के प्रकार।
- मरुस्थलीय या शुष्क पठार।
- आर्द्र पठार।
- हिम पठार।
- अपरदन चक्र के अनुसार पठारों के प्रकार।
- तरुण पठार।
- प्रौढ़ पठार।
- जीर्ण पठार।
पठारों के प्रकार
निर्माण प्रक्रिया के आधार पर पठारों के प्रकार
पठारों के निर्मण प्रक्रिया में दो तरह के बलों का योगदान होता है, पहला धरातल के अंदर की ओर से लगने वाला बल जिसे अंतर्जनित बल कहा जाता है। तथा दूसरा बल धरातल के ऊपर लगने वाला बल जैसे- हवा, पानी, हिम, तापमान, वायुदाब आदि को बहिर्जनित बल कहा जाता है।
A . बहिर्जनित बल द्वारा निर्मित पठारों के प्रकार
1. हिमानी निर्मित पठार
विस्तृत हिमानी क्षेत्रो में हिमानियों द्वारा पर्वतीय भाग को घर्षित करके पर्वत के शीर्ष को काटकर सपाट कर देती है जिससे पर्वतीय शीर्ष भाग एक सपाट मेज के भांति विकसित हो जाता है जिसे हिमानी निर्मित पठार कहा जाता है। जैसे:- अंटार्कटिक तथा ग्रीनलैंड में विकसित पठार, भारत में गढ़वाल पठार इसी के उदहारण है।
2. पवन द्वारा निर्मित पठार
पवनो द्वारा लाये गए बारीक़ कणो के बार-बार निक्षेप से उत्थित भूमि पवन द्वारा निर्मित पठार कहा जाता है जैसे:- पाकिस्तान के पोटावर का पठार, चीन में लोयस का पठार इसका अच्छा उदाहरण है।
3. जल द्वारा निर्मित पठार
नदियों द्वारा लगातार निक्षेपण कार्य से विकसित समतल मैदान भूहलचल के कारण आस-पास के क्षेत्र से ऊपर उठ जाता है तो उसे जल निर्मित पठार कहा जाता है। जैसे:- भारत में चेरापूंजी तथा म्यांमार के शान का पठार इसी प्रकार के पठार का उदाहरण है।
B. अंतर्जनित बलों द्वारा निर्मित पठारों के प्रकार
धरातल के अंदर विकसित बलों या शक्तियाँ की तीव्रता के आधार पर दो तरह के बल का विकास होता है। घीमी गति एवं विस्तृत क्षेत्र में कार्य करने वाले बल को पटलविरुपण बल कहा जाता है तथा आकस्मिक अंतर्जात बल तीव्र एवं कम क्षेत्र में कार्य करने वाले बल को आकस्मिक अंतर्जात बल कहा जाता है। इस आधार पर निर्मित पठारों को दो भागो में विभाजित किया जाता है।
i. पटलविरूपणी पठार
इसके अंतर्गत उन पठारों को शामिल किया जाता है जिसका निर्माण धीमी गति से अंतर्जात बलों के द्वारा विकसित होता है एवं विस्तृत क्षेत्र में फैले पाए जाते है। यह निम्न प्रकार के होते है।
1. अन्तर्पर्वतीय पठार
चारो ओर पर्वतो से घिरे हुए पठार को अन्तर्पर्वतीय पठार कहा जाता है। इसका निर्माण घीमी गति से अंतर्जात बलों द्वारा पर्वतो के साथ-साथ होता है। इसका विकास ज़्यदातर मोड़दार पर्वतो के मध्य होता है भूसन्नति के किनारो पर पर्वत श्रेणियों का निर्माण के साथ-साथ बीच वाले मध्य पिंड के ऊपर उठ जाने के कारण होता है। हिमालय पर्वत और कुनलुन पर्वत के मध्य तिब्बत का पठार, बोलिविया तथा पिरु के पठार, कोलंबिया का पठार, मैक्सिको का पठार इसका अच्छा उदाहरण है।
2. गिरिपदीय पठार
यह पठार पर्वतो के आधार पर या पर्वत के गिरिपद पर विकसित होता है। जिसके एक ओर पर्वत तथा दूसरे मैदान या सागरतल की ओर होता है। इसका निर्माण पर्वतो के निर्माण के साथ-साथ होता है। अमेरिका के पिडमांट पठार, दक्षिण अमेरिका में पैटागोनिया का पठार इसका अच्छा उदाहरण है।
3. गुंबदाकार पठार
ज्वालामुखी क्रिया के कारण विस्तृत गुंबदाकार पठार का निर्माण होता है बीच का हिस्सा सबसे ऊपर तथा चारो ओर की ऊंचाई कम होते जाता है। भारत में छोटानागपुर के पठार, संयुक्त राज्य अमेरिका का ओजार्क का पठार इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।
4. महाद्वीपीय पठार
विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए पठार को महाद्वीपीय पठार कहा जाता है सागरीय तटों या मैदानों से घिरे हुए यह क्षेत्र होता है। जिसका एक छोर पर्वतीय भी हो सकता है। भारत का प्रायद्वीपीय पठार, अरब का पठार इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।
5. सागरतटीय पठार
जैसा नाम से ही स्पष्ट होता है कि जब किसी पठार का विकास सागर तट के सहारे होता है तो उसे तटीय पठार के नाम से जाना जाता है। भारत में कोरोमंडल तट के तटीय पठार इसका उदाहरण है।
ii. आकस्मिक अंतर्जात बलों द्वारा निर्मित पठार
इसके अंतर्गत क्षणिक समय में घटित होने वाले एवं सिमित क्षेत्र में फैले ज्वालामुखी पठारों को शामिल किया जाता है। इसे दो भागो में विभाजित किया जाता है।
1. लावा पठार
विस्तृत दरारी ज्वालामुखी उद्गार के कारण जब लावा का विस्तार विशाल क्षेत्र में परत दर परत हो जाता है तो इससे लावा पठार का निर्माण होता है। जिसके कारण यह क्षेत्र आस-पास के क्षेत्र से ऊपर उठ जाता है। दक्कन का पठार, अमेरिका में कोलम्बिया का पठार इसका उदाहरण है।
2. केंद्रीय उद्गार द्वारा निर्मित पठार
जब लावा गाढ़े अवस्था में होता है तो इसके जमाव ज्वालामुख के आस-पास होने लगता है इसी लावा से निर्मित छोटे क्षेत्र में फैले हुए पठार को केंद्रीय पठार कहा जाता है।
अपरदन चक्र के आधार पठारों के प्रकार
इस आधार पर लोबेक महोदय ने पठारों को तीन प्रकार बलताये है यह मैदानों की तरह पठारों में भी अपरदन चक्र की समान्य तीन अवस्थाओं से गुजरता है।
1. तरुण पठार
इस पठार में चट्टानी संरचना क्षैतिज होती है तथा यह लगभग सपाट एवं समतल होता है। इसमें नदियां कम होती है किन्तु यह अपने तली अपरदन के द्वारा गहरी घाटियों का निर्माण करती है। यह आस-पास के क्षेत्र से ऊँचा होता है तथा चारो ओर तीव्र कगारों से घिरा होता है। अमेरिका के कोलोरैडो का पठार इसी प्रकार का पठार है।
2. प्रौढ़ पठार
इस प्रकार के पठार में नदियों के अपरदन कार्य के द्वारा पठार की सतह को उबड़-खाबड़ एवं असमतल बना देती है जिसके कारण इसमें कई नुकीली पर्वत चोटियों का निर्माण हो जाता है पूरा पठारी क्षेत्र पर्वतीय क्षेत्रो में परवर्तित हो जाता है।
3. जीर्ण पठार
यह पठार अत्यधिक अपरदन के कारण इसके ऊपर विकसित उच्चावच घर्षित होकर समाप्त हो जाते है। यह पठार एक पिनीप्लेन के रूप में परिवर्तित हो जाता है। अवशेष पर्वत मेसा या बूटी के रूप में दिखाई देती है। नदियां की घाटियां अत्यधिक चैड़ी एवं उथली हो जाती है भारत में छोटानागपुर का पठार के अंतर्गत मध्य रांची का पठार इसका अच्छा उदाहरण है।
4. पुनर्युवनित पठार
जब जीर्ण पठार पुनः आंतरिक बलों के कारण उत्थान होता है तो इसे पुनर्युवनित पठार कहा जाता है। भारत में झारखण्ड का पाट प्रदेश, संयुक्त राज्य अमेरिका का मिसौरी का पठार इसका उदाहरण है।
विश्व के प्रमुख पठार
विश्व के कुछ प्रमुख पठार निम्नलिखित इस प्रकार है।
क्रम संख्या | पठार का नाम | क्षेत्र का नाम |
1 | तिब्बत का पठार | मध्य एशिया |
2 | मंगोलिया का पठार | उत्तर मध्य चीन तथा मंगोलिया |
3 | प्रायद्वीपीय भारत का पठार | भारत |
4 | ईरान का पठार | ईरान |
5 | अरब का पठार | दक्षिण-पश्चिम एशिया |
6 | तुर्की या अनातोलिया का पठार | तुर्की |
7 | यूनान या अनातोलिया का पठार | म्यांमार, चीन और वियतनाम |
8 | आस्ट्रेलिया का पठार | आस्ट्रेलिया |
9 | मेडागास्कर/मलागासी का पठार | मेडागास्कर |
10 | दक्षिण अफ्रीका का पठार | दक्षिण अफ्रीका |
11 | अबीसीनिया या इथोपिया का पठार | इथोपिया, सोमालिया |
12 | मेसेट्टा का पठार | स्पेन |
13 | ब्राजील का पठार | ब्राजील |
14 | बोलीबिया का पठार | बोलीबिया |
15 | मैक्सिको का पठार | मैक्सिको |
16 | अलास्का का पठार अलास्का | अलास्का ( अमेरिका ) |
17 | कोलंबिया का पठार | अमेरिका |
18 | कोलोरेडो का पठार | अमेरिका |
19 | ग्रेट बेसिन का पठार | अमेरिका |
20 | ग्रीनलैंड का पठार | ग्रीनलैंड |
पठारों के महत्व
पठारों के महत्व को निम्न विन्दुओ द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।
1. खनिजों का भंडार
पठार में कई प्रकार के खनिज सम्पदा का भंडार पाए जाते है। इसमें अधात्विक खनिज,जैसे:- पत्थर, रेट, फास्फेट लवण, जिप्सम, सल्फर, चूने का पत्थर, भवन निर्माण के पत्थर, कोयला, तेल, अभ्रक आदि तथा धात्विक खनिजों में लोहा, तांबा, मैगनीज, निकल, जिनक, कांच, सोना, चाँदी आदि प्रमुख रूप से पाए जाते है।
कनाडा के कनाडियन सील्ड में सडबरी खान विश्व का सबसे अधिक निकल का उत्पादन करता है यहाँ से विश्व का 90 प्रतिशत निकल का उत्पादन किया जाता है। भारत में छोटानागपुर के पठार में भारत का 40 प्रतिशत से अधिक खनिजों की प्राप्ति की जाती है, जिसमे लोहा, कोयला, मैगनीज, अभ्रक, बॉक्साइट आदि प्रमुख खनिज है। आस्ट्रेलिया के पठार में सोना, चाँदी, अफ्रिका मे सोना, तांबा, हीरा, आदि प्रमुख खनिज पाए जाते है।
2. पठारों में कृषि कार्य
यद्यपि पठार कृषि का दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं होते है, फिर भी कुछ पठारों में विशेष प्रकार की मिट्टी पाई जाती है जहाँ विशेष प्रकार के फसलों का उत्पादन किया जाता है। भारत में दक्कन के पठार में काली मिट्टी पाए जाने के कारण यह क्षेत्र कपास, गन्ना, केला, मूंगफली, आदि फसलों का उत्पादन विशेष रूप से किया जाता है।
3. पठारी वनस्पतियों का महत्व
अलग-अलग जलवायु प्रदेशो के पठारों में अलग-अलग प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पाई जाती है जिसका अपना विशेष महत्व होता है। भारत के प्रायद्वीपीय पठार में उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते है जहाँ पर विशेष रूप से इमारती लकड़ियाँ साल, सागवान, शीशम, आम, जामुन आदि महत्वपूर्ण पेड़ पाए जाते है। इसी प्रकार शीत वाले प्रदेशो में मुलायम लकड़ियाँ पाइन, फर, चीड़, सिनकोना आदि पाए जाते है।
4. जल विद्युत उत्पादन में
पठार के चारो ओर या कम से कम एक ओर का कगार तीव्र एवं ऊँचा पाया जाता है जहाँ से नदियां अपने मार्ग में ऊँचे-ऊँचे जलप्रपातो की रचना करती है जो जल विद्युद उत्पादन की दृष्टी से एक आदर्श स्थिति उत्पन्न करता है जहाँ जल विद्युत् का उत्पादन किया जाता है।
निष्कर्ष
इस तरह से हम देखते है कि पठार धरातल पर के विशेष प्रकार की भू-आकृति होती है जिसका विस्तार धरातल के लगभग 33 प्रतिशत भू-भाग पर पाया जाता है। ये अपने विशेष आकर, संरचना, खनिज सम्पदा के कारण अपना एक विशेष स्थान रखता है।