नमस्कार दोस्तों ! आज हमलोग इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम भौतिक भूगोल में जलवायु विज्ञान के महत्वपूर्ण विषय वस्तु चक्रवात ( Cyclone ) के बारे में जानेंगे कि, चक्रवात क्या है ? इसकी उत्पत्ति कैसे होती है ? इसके कितने प्रकार होते है ? शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्या है इसकी विशेषताएँ क्या है तथा इसका प्रभाव विश्व के किन-किन भागो में देखने को मिलता है ? आदि इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं को जानेंगे।
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चक्रवात क्या है ?
पवनों के प्रवाहित चक्राकार रूप को चक्रवात कहा जाता है। जिसमे अंदर की ओर वायुदाब कम और बाहर की ओर अधिक होता है। दूसरे शब्दों में किसी विशाल क्षेत्र विशेषकर महासागरीय क्षेत्रो में वायुदाब में भिन्नता के कारण वायु के चक्राकार प्रवाहित होना चक्रवात कहलाता है। जिसमे अंदर की ओर वायुदाब कम और बाहर की ओर अधिक होता है।
समान्य रूप में चक्रवात गतिशील निम्न वायुदाब का केंद्र होता है, जो चारो ओर से क्रमशः अधिक होती वायुदाब वाली रेखाओं से घिरा हुआ होता है जिसके कारण परिधि से केंद्र की ओर हवाएँ बहने लगती है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण हवा का प्रवाह परिधि से केंद्र की ओर उत्तरी गोलार्द्ध में घडी की सुइयों की गति के विपरीत दिशा ( Anticlock wise ) में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घडी की सुइयों की गति के समान ( Clock wise ) रूप में बहती है।
चक्रवात में वायु चारो ओर से उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रो से निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र अर्थात केंद्र की ओर बहती है। इसका आकर प्रायः गोलाकार, अंडाकार या अंग्रेजी अक्षर के V आकर के होते है।
चक्रवात के प्रकार
इसकी उत्पत्ति क्षेत्र के आधार पर इसे दो भागो में विभाजित किया जाता है।
- शीतोष्ण / बहिरुष्ण कटिबंधीय चक्रवात। ( Temperate / Extratropical Cyclones )
- उष्ण कटिबंधीय चक्रवात। ( Tropical Cyclones )
1. शीतोष्ण / बहिरुष्ण कटिबंधीय चक्रवात
इस चक्रवात की उत्पत्ति एवं प्रभाव शीतोष्ण कटिबधिय क्षेत्रो में होता है अतः इसे शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है। इसे बहिरुष्ण कटिबंधीय चक्रवात भी कहा जाता है। इसका विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 35 डिग्री से 65 डिग्री अक्षांशो के मध्य होता है। ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में सिर्फ शीत ऋतू में आते है किन्तु यह दक्षिणी गोलार्द्ध में समुद्री क्षेत्र में अधिकता होने के कारण लगभग सालोभर चलते रहते है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति
पृथ्वी के मध्य अक्षांशों में वाताग्र ( दो विपरीत स्वभाव के वायुराशियों के मध्य सीमा क्षेत्र ) के दक्षिण में गर्म एवं हल्की वायुराशियाँ तथा उत्तर में ठंडी एवं भारी वायुराशियाँ विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है। जब वाताग्र क्षेत्र में वायुदाब कम होने लगता है तब उष्ण वायुराशि उत्तर दिशा की ओर तथा शीत वायुराशि दक्षिण दिशा की ओर घड़ी की सुइयों के विपरीत वाताग्र या निम्न वायुदाब के चारो ओर चक्रवातीय परिसंचरण करने लगती है जिससे शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति और विकास होता है । इसमें शीत तथा उष्ण दोनों वाताग्र होते है।
इसके उतपत्ति के संबंध में कई सिद्धांतो एवं परिकल्पनों का प्रतिपादन किया गया है जिसमे से संवहन सिद्धांत ( Convection Theory ), आवर्त सिद्धांत ( Eddy Theory ), प्रतिधारा सिद्धांत ( Counter Current ), एक्सनर का अवरोधी सिद्धांत ( Exner’s Barrier Theory ) तथा बर्कनीज का ध्रुवीय वाताग्र सिद्धांत अथवा तरंग सिद्धांत ( Polar Front Theory Or Weve Theory ) प्रमुख है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के आकार एवं विस्तार
इसका आकार अनियमित होता है। पूर्ण रूप से विकसित होने पर ज़्यदातर चक्रवात अंडाकार होता है जिसकी लम्बाई तथा चौड़ाई का अनुपात 2:1 का होता है। इसके अलावे यह गोलाकार, अर्द्ध गोलाकार तथा कभी- कभी यह अंग्रेजी के V अक्षर के समान हो जाता है।
आकार की भांति इसका विस्तार भी अलग होता है। इन चक्रवातों का व्यास की लम्बाई 150 से 3200 किमी तक होती है। किन्तु ज़्यदातर शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात का व्यास 300 से 1500 किमी के मध्य होते है। इन चक्रवातों का विस्तार विस्तार 16 लाख वर्ग किमी तक अनुमानित किया गया है। एक समान्य चक्रवात का ऊर्ध्वाधर विस्तार वायुमंडल में 10 से 12 किमी की ऊंचाई तक होता है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में पवनो का वेग तथा प्रवाह
इन चक्रवातों में समदाब रेखाएँ एक दूसरे से दूर-दूर तथा कम होती है। जिसके कारण शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में दाब प्रवणता तथा पवनों का वेग कम होता है। यह शीत ऋतू में 40 से 60 किमी प्रति घंटे तथा ग्रीष्म ऋतू में 15 से 20 किमी प्रति घंटे से बहती है।
ये चक्रवात पछुवा पवनों से प्रभावित होती है जिससे इसका प्रवाह दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलीय भाग अधिक होने के कारण यह हल्के घुमावदार मार्ग पर प्रवाहित होती है, किन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में इसके उत्पत्ति क्षेत्र में स्थल भाग के कम होने से तथा जलीय भाग अधिक होने के कारण ये चक्रवात सीधी मार्ग में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात और मौसम
इन चक्रवातों के आने से पहले वायु का वेग मंद पड़ जाता है एवं वायुदाब गिरने लगता है। आकाश में पक्षाभ एवं पक्षाभ स्तरीय बदलो की सफेद पतली परते फ़ैल जाती है जिसके कारण सूर्य और चन्द्रमा के चारो ओर प्रभामंडल/ ज्योतिर्मंडल ( Solar and Lunar Holo ) का निर्माण होता है।
जैसे जैसे चक्रवात निकट आता है तापमान में वृद्धि एवं वायुदाब कम होता जाता है,पवनो की दिशा बदल जाती है , हल्की-हल्की वर्षा की बौछारे लगभग 24 घंटा पड़ती रहती है। उष्ण वाताग्र के आने के बाद वर्षा रुक जाती है, वायुदाब स्थिर हो जाता है तथा आकाश पर मेघों का आवरण कम होने लगता है। यह स्थिति शीतल वाताग्र के आने की सूचना है।
शीतल वाताग्र के आते ही कपासी मेघ घिर जाते है और वर्षा होने लगती है। ज़्यदातर वर्षा में ओला वृष्टि होती है, शीत वाताग्र के गुजर जाने के बाद मौसम साफ हो जाता है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात चक्रवात के मुख्य क्षेत्र
यह चक्रवात दक्षिणी गोलार्द्धो में पछुवा पवनो के साथ लगभग 35 डिग्री से 65 डिग्री के मध्य सालोभर चलती रहती है, परन्तु उत्तरी गोलार्द्ध में इन्ही अक्षांशो के मध्य इसका प्रवाह केवल शीत ऋतू में ही होती है। इन चक्रवातों का प्रभाव विशेष रूप से उत्तरी गोलार्धो में देखने को मिलता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इसके निम्लिखित क्षेत्र है।
( i ) उत्तरी अटलांटिक महासागर
यहाँ पर शीत ऋतू में उत्तर की ओर से ग्रीनलैंड तथा आइसलैंड से आने वाली ध्रुवी शीत पवनें तथा दक्षिण में गल्फ की खाड़ी की ओर से आने वाली गर्म पवन के अभिसरण या मिलने से इसका निर्माण होता है। इस चक्रवात का प्रभाव उत्तरी पश्चिमी यूरोप के देशों जैसे- ग्रेट ब्रिटेन, नार्वे, स्वीडेन, फ़्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, आयरलैंड आदि देशो में विशेष रूप से देखने को मिलता है।
( ii ) भूमध्य सागर
इस सागर में शीत काल में आर्द्र पछुवा पवनें चलती है। इन पवनो का सम्पर्क मध्य यूरोप से आने वाली शीतल एवं शुष्क पवनो तथा उत्तरी अफ्रीका से आने वाली शुष्क एवं गर्म पवनो से होता है जिसके कारण शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति और विकास इस क्षेत्र में होता है। इसे पश्चिमी विक्षोभ भी कहा जाता है।
ये चक्रवात भूमध्य सागरीय क्षेत्रो को पार करके मध्य पूर्व के यूरोपीय देश तथा पश्चिमी एशियाई देशो से होते हुए पाकिस्तान एवं भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रो तक पहुँचती है। इन चक्रवाती पवनो का भारत में विशेष महत्व है, क्योकि भारत के पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड आदि राज्यों में रवि के फसल के लिए अमृत का काम करता है। पुरे उत्तर पश्चिम भारत में शीतकालीन वर्षा इसी कारण से होती है।
( iii ) उत्तर पश्चिमी प्रशांत महासागर
यहाँ पर ये चक्रवात अल्यूशियन द्वीप समूह के निकट उत्पन्न होती है। और रॉकी पर्वत को पर करके संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दक्षिणी कनाडा में वर्षा कराती है।
( iv ) चीन सागर
यहाँ पर यह शीत ऋतू में जापान सागर के निकट उत्पन्न होती है और चीन सागर से होते हुए उत्तरी एवं कढ़ी चीन तक पहुँचती है। इसी कारण से उत्तरी पूर्वी चीन में शीतकालीन वर्षा होती है।