नमस्कार मित्रों ! आज के इस लेख में एक और पृथ्वी की रोचक तथ्य से रूबरू होंगें, और वह है पृथ्वी की आंतरिक संरचना कैसी है ? इसके बारे में आपका अनुमान कैसा है ? क्या यह क्रिकेट की गेंद के भांति ठोस है या अंदर से खोखली है। क्या आपने कभी मोबाईल फोन या टेलीविजन पर ज्वालामुखी विस्फोट देखा है। तो जरा गौर कीजियेगा की ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाला तप्त एवं तरल लावा या मैग्मा, गैस, धुआँ,आग इत्यादि कहाँ से आते है। तो आपके विचार या अनुमान में जल्द ही परिवर्तन हो जाता है। की पृथ्वी के आंतरिक भाग गर्म और तरल तो नहीं है। इन्ही अनुमानों को इस लेख में समेटने का प्रयास किया गया है।
मेरे ही एक लेख पृथ्वी के बार में इसकी विशालता से संबंधित विन्दुओ को देखा जा सकता है। पृथ्वी की त्रिज्या 6371 किमी है। पृथ्वी के धरातल से अंदर जाने पर यह इतनी गर्म एवं घनी हो जाती है कि इसके केंद्र तक पहूँच कर उसका निरीक्षण कर सकना या वहां के पदार्थ का कुछ नमूना प्राप्त कर सकना असंभव है। इन परिस्थितियों के बावजुद भी हमारे वैज्ञानिको ने हमे यह बताने में सक्षम हुए है की पृथ्वी की आंतरिक संरचना कैसी है। और इतने गहराई में किस प्रकार के पदार्थ पाए जाते है।
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Prithvi Ki Aantrik Sanrachna पृथ्वी की आंतरिक संरचना
हमारी पृथ्वी की आंतरिक संरचना को विभिन्न स्रोतों ( चट्टानें, ज्वालामुखी, तापमान, दबाव, घनत्व, उल्काएँ, गुरुत्वाकर्षण बल,चुंबकीय क्षत्रों में भिन्नता ) आधार पर तीन भागो में विभाजित किया जाता है।
- भूपर्पटी ( Crust )
- प्रावार या मैंटल ( Mantle )
- कोर या क्रोड या अंतरतम ( Core )
( 1. ) भूपर्पटी ( Crust )
- हमारी पृथ्वी के सबसे बाहरी परत को भूपर्पटी कहा जाता है।
- इसकी मोटाई महाद्वीपों एवं महासागरों के नीचे अलग-अलग है।
- महाद्वीपों में भूपर्पटी की औसत मोटाई 30 किमी है।
- महासागरों में भूपर्पटी की औसत मोटाई 5 किमी है।
- महाद्वीपों में ऊचें पर्वतो ( जैसे:- हिमालय, रॉकी, एंडीज इत्यादि ) के नीचे इसकी मोटाई 70 किमी तक पाई जाती है।
- महाद्वीपीय भूपर्पटी की ऊपरी भाग अवसादी शैलो से तथा इसके नीचे ग्रेनाइट जैसे रवेदार चट्टानों से बनी है।
- जबकि महासागरीय भूपर्पटी वैसाल्ट जैसे चट्टानों से बनी है।
- इस परत की औसत घनत्व 2.7 से 3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है
- भूकम्पीय तरंगो के गति में अंतर के कारण इस परत को दो भागो में विभाजित किया जाता है। ऊपरी भूपर्पटी और निचली भूपर्पटी
ऊपरी भूपर्पटी ( Upper Crust )
इस परत का निर्माण परतदार चट्टानो तथा ग्रेनाइट चट्टानों से हुआ है। इस पर प्रथमिक तरंगो की गति लगभग 6 किमी प्रति सेकण्ड होती है। इसका घनत्व 2.65 से 2.75 ग्राम प्रति गहन सेंटीमीटर होता है। चूँकि यह परत महाद्वीपों पर स्थित होता है अतः इसे महाद्वीपीय भूपर्पटी भी कहा जाता है। यह परत पूर्ण रूप से ठोस अवस्था में पाया जाता है। इसकी औसत मोटाई 30 किमी है।
नीचली भूपर्पटी ( Lower Crust )
इस परत का निर्माण वैसाल्ट चट्टानों से हुआ है। इसमें भूकम्पीय प्राथमिक तरंगो की गति 7 किमी प्रति सेकण्ड होती है। इसका घनत्व 2.75 से 3 ग्राम प्रति गहन सेंटीमीटर पाया जाता है। चूँकि यह परत महासागरों के के नीचे स्थित होता है अतः इसे महासागरीय भूपर्पटी कहा जाता है। यह परत आंशिक रूप से तरल पाया जाता है। इसकी औसत मोटाई 4 किमी है।
ऊपरी तथा नीचली भूपर्पटी में पाए जाने वाले पदार्थो के घनत्व में अंतर के कारण इस क्षेत्र में भूकम्पीय प्राथमिक तरंगों की गति में वृद्धि हो जाती है। इस परत को “कोनराड असंबद्धता” ( Conrad Discontinuity ) के नाम से जाना जाता है।
( 2. ) प्रावार या मैंटल ( Mantle )
- यह परत नीचली भूपर्पटी के नीचे लगभग 2900 तक आंतरिक भाग में स्थित है।
- नीचली भूपर्पटी और मैल्ट के मध्य भूकम्पीय प्राथमिक और द्वितीयक तरंगो की गति में अचानक वृद्धि हो जाती है।
- यहाँ पर भूगर्भिक पदार्थो के घनत्व में वृद्धि हो जाता है इस पतली परत को “मोहो असंबद्धता”( Moho Discontinuity ) कहा जाता है।
- “मोहो असंबद्धता”( Moho Discontinuity ) नीचली भूपर्पटी और ऊपरी मैंटल के मध्य विभाजक परत है।
- मैंटल परत की मोटाई पृथ्वी के समस्त अर्धव्यास के आधे से कम है।
- पृथ्वी के समस्त आयतन का 83 प्रतिशत हिस्सा इसी परत का है।
- पृथ्वी के समस्त द्रव्यमान का 68 प्रतिशत भाग मैंटल में स्थित है।
- भूकम्पीय तरंगो की गति भिन्नता के कारण इस परत को भी दो भागो में विभाजित किया जाता है।
- पहला ऊपरी मैंटल तथा दूसरा नीचली मैंटल
ऊपरी मैंटल ( Upper Mantle )
- मोहो असंबद्धता से 700 किमी तक आंतरिक भाग को ऊपरी मैटल कहा जाता है।
- ऊपरी मैंटल के ऊपरी भाग तथा भूपर्पटी को मिलाकर लगभग धरातल से 200 किमी की गहराई तक इसको स्थलमंडल के नाम से जाना जाता है।
- ऊपरी मैंटल के ऊपरी भाग लगभग 200 किमी तक के इससे को दुर्बलमंडल कहा जाता है। यह भाग तरल अवस्था में है।
- इस भाग में रेडिओ एक्टिव पदार्थो का आधी मात्रा में पाया जाना प्लेटो के खिसकने का कारण बनता है।
- अनुमानतः इसी भाग से ज्वालामुखी के विस्फोट के समय निकलने वाले लावा / मैग्मा का स्रोत माना जाता है।
- इस परत में भूकम्पीय द्वितीय तरंगे( S Waves ) लुप्त हो जाती है।
- इसका घनत्व 3 से 3.4 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर पाया जाता है।
- 200 से 700 किमी का शेष भाग ठोस अवस्था में पाया जाता है। इस भाग का घनत्व 3.4 से 4.3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर पाया जाता है।
- इस भाग में भूकम्पीय “पी तरंगों” की गति में कमी हो जाती है। इस कारण से इसको “निम्न गति का मंडल” भी कहा जाता है।
निचली मैंटल ( Lower Mantle )
मैंटल परत में 700 किमी के बाद घनत्व में वृद्धि हो जाती है। जिसे “रेपेटी असंबद्धता” कहा जाता है। यह परत ऊपरी तथा नीचली मैंटल के विभाजक के रूप में भी जाना जाता है। नीचली मैंटल 700 से 2900 किमी तक को कहा जाता है। इस परत का औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति गहन सेंटीमीटर हो जाता है। जिसके कारण यहाँ प्राथमिक तरंगों की गति लगभग 8 किमी प्रति सेकण्ड हो जाती है। यह परत ठोस अवस्था में है।
( 3. ) क्रोड या अंतरतम या कोर ( Core )
- निचली मैंटल के बाद अंदर की ओर एक और विभाजक पाया जाता है। जिसे ‘गुटेनवर्ग’ कहा जाता है।
- गुटेनवर्ग मैंटल को क्रोड से अलग करता है।
- यह पृथ्वी के सबसे आंतरिक परत है।
- इसे “बेरी स्फीयर” ( Bary Sphere ) भी कहा जाता है।
- यह परत 2900 से 6371 किमी केंद्र तक की गहराई तक पाई जाती है।
- भूकम्पीय तरंगों की गति के आधार पर इसे भी दो उपभागों में विभाजित किया जाता है।
- ऊपरी क्रोड तथा नीचली क्रोड।
- विभाजक परत को “लेहमन” या “कोनार्ड” कहा जाता है।
बाह्य क्रोड ( Outer Core )
- इस परत का विस्तार गुटेनबर्ग असंबद्धता से लेहमन असंबद्धता के मध्य 2900 किमी से 5150 किमी तक पाया जाता है।
- यह परत अर्धतरल अवस्था में है।
- इस परत का घनत्व 5.5 से 12.3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर पाया जाता है।
आंतरिक क्रोड ( Inner Core )
- इस परत का विस्तार लेहमन असंबद्धता से केंद्र तक, 5150 से 6371 किमी तक है।
- इसमें अत्यधिक दबाव के कारण सभी पदार्थ ठोस अवस्था में है।
- इसका घनत्व सर्वाधिक 13 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर पाया जाता है।
- इस परत में लोहा तथा निकल जैसे धात्विक पदार्थो की प्रधानता पाई जाती है।
- इसमें प्राथमिक तरंगों की गति सर्वाधिक अंकित किया जाता है।
पृथ्वी के आंतरिक परतो का आयतन एवं द्रव्यमान
परत | आयतन | द्रव्यमान |
भूपर्पटी | 0.5 % | 0.2 % |
मैंटल | 83.5 % | 67.8 % |
क्रोड | 16.0 % | 32.0 % |
सम्पूर्ण पृथ्वी में विभिन्न तत्वों की मात्रा
क्रम संख्या | तत्व | वजन के अनुसार तत्वों की मात्रा ( प्रतिशत में ) |
1 | लोहा | 35 % |
2 | ऑक्सीजन | 30 % |
3 | सिलिकन | 15 % |
4 | मैग्नेशियम | 13 % |
5 | निकेल | 2.4 % |
6 | सल्फर | 1.9 % |
7 | कैल्सियम | 1.1 % |
8 | एल्युमिनियम | 1.1 % |
9 | अन्य | 0.5 % |
भूपर्पटी में तत्वों की मात्रा
क्रम संख्या | तत्व | वजन के अनुसार तत्वों की मात्रा ( प्रतिशत में ) |
1 | ऑक्सीजन | 46.60 % |
2 | सिलिकन | 27.72 % |
3 | एल्युमिनियम | 8.13 % |
4 | लोहा | 5.00 % |
5 | कैल्शियम | 3.63 % |
6 | सोडियम | 2.83 % |
7 | पोटेशियम | 2.59 % |
8 | मैग्नेशियम | 2.09 % |
9 | अन्य | 1.41% |
रासायनिक संगठन के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना
आस्ट्रिया के प्रसिद्ध भूगोलवेता एडवर्ड स्वेस महोदय ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना को रासायनिक संगठन के आधार पर तीन परतो में विभाजित किया है।
1. सियाल ( SIAL )
यह पृथ्वी का सबसे बाहरी परत है। धरातल के ऊपरी वा अवसादी ( परतदार ) शैलो के नीचे वाली परत को इन्होने सियाल नाम दिया है। जिसकी रचना मुख्य रूप से आग्नेय चट्टानों से हुई है। तथा इसमें सिलिकन एवं एल्युमिनियम तत्वों की प्रधानता पाई जाती है। और इन्ही तत्वों के पहले दो अक्षरों SI और AL को मिलाकर इसका नामकरण किया गया है।
इनके अनुसार इस परत की गहराई 50 से 300 किमी के मध्य पाई जाती है। इस परत का औसत घनत्व 2.9 ग्राम प्रति गहन सेंटीमीटर पाया जाता है। इस परत में अम्लीय पदार्थो की अधिकता पाई जाती है तथा पोटेशियम सोडियम एवं एल्युमिनियम के सिलिकेट पाए जाते है। स्वेस महोदय के अनुसार महाद्वीपों का निर्माण इसी सियाल परत से हुई है।
2. सीमा ( SIMA )
सियाल परत के नीचे सिलिकन और मैग्नीशियम की प्रधानता वाली परत को सिमा परत कहा है। और इन दोनों तत्वों के पहले दो अक्षरों को मिलाकर इसका नामकरण क्या गया है। अर्थात SI और MA को मिलाकर SIMA कहा है। इस परत में बैसाल्ट आग्नेय चट्टानो की प्रधानता पाई जाती है जिसके कारण यहां के पदार्थो की प्रकृति क्षारीय होती है।
इस परत का औसत घनत्व 2.9 से 4.7 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर तथा इसकी गहराई 300 से 2900 किमी तक बताई गई है। यह परत तरल अवस्था में पाया जाता है। ज्वालामुखी के उद्गार के समय निकलने वाले गर्म गैस एवं लावा/मैग्मा इसी क्षेत्र से निकलता है।
3. नेफे ( NIFE )
सीमा परत के नीचे निकेल और फेरस ( लोहा ) तत्वों की अधिकता पाई जाती है। अतः इन तत्वों के प्रथम दो अक्षरों NI और FE को मिलाकर इसका नाम NIFE रखा गया है। इसका विस्तार 2900 किमी से पृथ्वी के केंद्र तक अर्थात 6371 किमी तक है। इस परत में लोहा तथा निकेल जैसे भरी तत्वों के होने तथा पृथ्वी के सर्वाधिक दबाव के कारण इसका घनत्व लगभग 11 से 13 ग्राम प्रति घन सैंटीमीटर पाया जाता है।
निष्कर्ष
इस तरह से हम पाते है की पृथ्वी की आंतरिक संरचना को विभिन्न अधरों पर तीन भागो में विभजित कर पृथ्वी के भूगर्भ का अध्ययन किया जाता है। इस लेख को बनाने में मैंने NCERT कक्षा 11 के भूगोल विषय के पुष्तक भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत, सविन्द्र सिह के भौतिक भूगोल तथा इंटरनेट का सहायता लेकर तैयार किया गया है।