मानव भूगोल की प्रकृति

मानव भूगोल की प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

मानव भूगोल की प्रकृति :

किसी भी विषय का अपना प्रकृति होता है। ठीक उसी प्रकार मानव भूगोल की अपनी प्रकृति है। मानव भूगोल कि प्रकृति से तातपर्य यह है कि मानव भूगोल के प्रत्येक विषय क्षेत्र में मानव तथा भौतिक तत्वों के अंतरसंबंध के विकास का अध्ययन किया जाता है। चाहे वह जनसंख्या हो या मानवीय क्रिया कलाप सभी में मानव और प्रकृति के बीच अन्तर्क्रिया के प्रतिफ़ल प्रदर्शित होता है। जैसे आदि मानव का रहन-सहन , खान-पान , जीवन-यापन वर्तमान समय के मानव के रहन-सहन, जिवन-यापन मे बहुत सारा परिवर्तन हुआ है।  इसे निम्न विचारधराओं से समझा जा सकता है। 

मानव  का प्रकृतिकरण (निश्चयवाद )

प्रकृति का मानवीयकरण (संभववाद )

नव निश्चयवाद।

मानव का प्रकृतिकरण —- मानव का प्रकृतिकरण का तातपर्य, प्रकृति के अनुसार मानव के सभी चीजों का निर्धारण होता है जैसे : मनुष्य का भोजन , पोशाक , आवास , शारीरिक गठन ,रंग ,मानव क्रियाकलाप इत्यादि इसका सबसे अच्छा उदहारण है। आदि मानव या वर्तमान समय के जनजातियाँ जो जंगलो , ध्रुवीय क्षेत्रो , समुद्रतटीय क्षेत्रो , पर्वतो मे रहते है। और प्रकृति के अनुसार जीवन यापन करते है। पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर रहते है। प्रकृति के प्रकोप से डरते है। प्रकृति का उपासना करते है।

यही विचारधारा बाद मे पर्यावरणीय निश्चयवाद या नियतिवाद के नाम से जाना जाता है जिसके समर्थक फ्रेडरिक रेटजेल ,एलन कुमारी सैम्पल , पॉल वाइडल-डी-ला ब्लास थे। सैम्पल के अनुसार ”मानव पृथ्वी का धूल है।” प्रकृति मानव को जैसा चाहे वैसा ढाल सकता है , रंग दे सकता है , बर्बाद क्र सकता है। प्रकृति के सामने मानव का कोई अस्तित्व नही है।

प्रकृति का मानवीयकरण —- जैसे-जैसे समय बीतता जाता है प्रकृति के नियमो से मानव सीखता जाता है और तरह-तरह के तकनीकों का विकास करता जाता है। तरह-तरह के यंत्रो का अविष्कार करता है और प्रकृति के नियमो के अनुसार चलेन की विवस्ता को तोड़ता है कठोर जलवयु में अपने तकनीकों की सहायता से अपने अनुकूल बनता है।

प्रकृति के प्रकोपों से बचाव के उपाय भी ढूंढ़ लेता है भोजन की अनिश्चिता को दूर करता है। और प्रकृति को बदलना सुरु करता है। जंगलो को विनास करता है। खनिज संपदा को दोहन करके प्रकृति के खिलाफ ही उपयोग करता है। मानव अपने आप को प्रकृति से बलवान समझने लगता है। प्रकृति को अंधाधुंध दोहन करता है पर्यावरण को प्रदूषित करता है। और मानव का प्रभाव प्रकृति पर दिखने लगता है

इसी परिवर्तन का प्रकृति का मनवीयकरण कहा जाता है। यही विचारधारा को बाद मे संभववाद के नाम से जाना जाता है। जिसके समर्थक लूसियन फैब्रे ,हम्बोल्ट , ब्रुंज इत्यादी भूगोलवेता थे। संभववाद के अनुसार प्रकृति पर मानव के प्रभाव प्रकृति के ऊपर दिखने लगता है। मानव प्रकृति में बहुत सारा छेड़-छाड़ करता है और अपने आप को प्रकृति से ज्यादा शक्तिशाली समझने लगता है।

नव निश्चयवाद — ग्रिफ़त टेलर ने निश्चयवाद और संभववाद कि विचारधारा मे बढ़ते खाई को पाटने के लिए एक नई विचारधार दिया जिसे नवनिश्चयवाद कहा जाता है नवनिश्चयवाद के अनुसार प्राकृतिक नियमो का अनुपालन करके हम प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकते है।

टेलर ने नगर के चौराहे पर यातायात नियंत्रण बत्तियो द्वारा इस संकल्पना को समझाने का प्रयास किया है। लाल बत्ती का अर्थ “रुको” , ऐंबर(पीला) बत्ती , लाल और हरी बत्तियो के बीच “रुककर तैयार रहने का अंतराल “ प्रदान करती है। और हरी बत्ती का अर्थ है “जाओ”.इससे यह पता चलता है कि यहाँ पर न तो नितांत आवश्यकता कि स्थिति (पर्यावरणीय निश्चयवाद ) है और न ही नितांत स्वतंत्रता (संभववाद ) की दशा है।

दसरे शब्दो मे प्रकृति के नियमो का पालन करके हम प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकते है जब प्रकृति अनुमति दे तो मानव विकास के पथ पर अग्रसर हो सकते है इसके विपरीत अंधाधुंध रफ़्तार से दूर्घटनएं अवश्य होती है। टेलर महोदय ने इस विचारधारा को “रुको और जाओ निश्चयवाद “भी कहा है।

 

मानव भूगोल के विषय क्षेत्र

मानव भूगोल मानव के विभिन्न पक्षों को प्रदर्शित करने का प्रयास करता है। चाहे वह जनसंख्या हो या जीवन यापन के साधन इसके प्रभावित करने वाले सभी तत्वों को मानव भूगोल के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है।

यह एक गतिशील विषय होने के कारण इसके विषय क्षेत्र विस्तारित होते जाता है। मानव भूगोल की प्रकृति अत्यधिक अंतर्-विषयक है पृथ्वी तल पर मानवीय तत्वों को समझने व उनकी व्याख्या करने के लिए मानव भूगोल सामाजिक विज्ञानो के सहयोगी विषयो के साथ अंतरापृष्ठ विकसित करती है।

इसी आधार पर मानव भूगोल के निम्न विषयक्षेत्र एवं उपक्षेत्र है तथा उससे संबंधित विषय :

मानव भूगोल और सामाजिक विज्ञानो के सहयोगी अनुशासन

मानव भूगोल के क्षेत्र उपक्षेत्र सामाजिक विज्ञानो के सहयोगी अनशसकों से आन्तरा-पृष्ठ
सामाजिक भूगोल—-सामाजिक विज्ञान – समाजशास्त्र
 व्यवहारवादी भूगोलमनोविज्ञान
 सामाजिक कल्याण का भूगोलकल्याण अर्थशास्त्र
 अवकाश का भूगोलसमाजशास्त्र
 सांस्कृतिक भूगोलमानवविज्ञान
 लिंग भूगोलसमाजशास्त्र, मानवविज्ञान, महिला अध्ययन
 ऐतिहासिक भूगोलइतिहास
 चिकित्सा भूगोलमहामारी विज्ञान
नगरीय भूगोल—–नगरीय अध्ययन और नियोजन
राजनीतिक भूगोल—–राजनीति विज्ञान
 निर्वाचन भूगोल—–
 सैन्य भूगोलसैन्य विज्ञान
जनसंख्या भूगोल—–जनांकिकी
आवास भूगोल—–नगर / ग्रामीण नियोजन
आर्थिक भूगोल—–अर्थशास्त्र
 संसाधन भूगोलसंसाधन अर्थशास्त्र
 कृषि भूगोलकृषि विज्ञान
 उद्योग भूगोलऔद्योगिक अर्थशास्त्र
 विपणन भूगोलव्यवसायिक अर्थशास्त्र, वाणिज्य
 पर्यटन भूगोलपर्यटन और यात्रा प्रबंधन
 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का भूगोलअंतर्राष्ट्रीय व्यापार

 

 

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