उत्तर भारत के मैदान

उत्तर भारत के मैदान

नमस्कार दोस्तों ! इस लेख में हमलोग उत्तर भारत के मैदान के बारे में जानेंगे। यह मैदान कहाँ स्थित है? इसका विस्तार क्या है ? इस मैदानी भाग का निर्माण कैसे हुआ है ? भारत के संदर्भ में इसका क्या महत्व है। इसे कितने भागो और किन आधारों पर विभाजित करके अध्ययन किया जाता है आदि। इन बातो को जानने से पहले हमे यह जानना होगा की मैदान किसे कहते है।

मैदान उस भू-आकृति को कहा जाता है जो आस-पास के क्षेत्रों से कम ऊंचाई का हो, जिसकी सतह समतल तथा ढाल अत्यधिक मंद हो और जिसमे कगार का आभाव पाया जाता हो। जिसका निर्माण मुख्य रूप से निक्षेपण, अपरदन तथा सागर से स्थलखंड के निर्गमन ( emergence ) या निमज्जन ( submergence ) के कारण हुआ हो।

उत्तर भारत के मैदान का समान्य परिचय

भारत के भौतिक स्वरूप के अंतर्गत प्रमुख भू-आकृति उत्तर भारत के मैदान की स्थिति हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा प्राद्वीपीय पठार के मध्य में इसका विकास हुआ है। यह मैदानी क्षेत्र लगभग 7 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी लम्बाई पश्चिम से पूर्व 2400 किमी तथा इसकी औसत चौड़ाई 150 से 300 किमी मध्य पाया जाता है। इस मैदानी क्षेत्र का औसत ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 150 मीटर है। इसका औसत ढाल लगभग 25 सेंटीमीटर प्रति किलोमीटर है।

यह मैदानी भाग भारत का ही नहीं अपितु विश्व का सबसे उपजाऊ मैदान के साथ-साथ घनी जनसंख्या वाला प्रदेश के रूप में जाना जाता है। इस मैदान का निर्माण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा लाये गए जलोढ़ो के निक्षेपण से हुआ है। इस जलोढ़ निक्षेप की औसत गहराई लगभग 450 मीटर है। तथा कही-कही इसकी गहराई 3000 मीटर से भी अधिक पाई जाती है।

इस मैदान का विस्तार भारत के उत्तर में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, असम, तथा पश्चिम बंगाल में है। इस मैदान के निर्माण में गंगा, यमुना, तथा ब्रह्मपुत्र नदियाँ तथा इसकी सहायक नदियों जैसे:- चंबल, केन बेतवा, सिंध यमुना की, शारदा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, सोन, दामोदर गंगा की, सिशंग, दिहांग, दिबांग, सिकंग, लोहित, ब्रह्मपुत्र के तथा सतलज, व्यास, रवि सिंधु नदी का योगदान है।

भारत के उतरी मैदान का उद्भव

समय-समय में उत्तर भारत के मैदान के उद्भव के बारे में विभिन्न विद्वानों ने अपना विचार प्रस्तुत करते रहे है कुछ विचार संक्षिप्त रूप में निम्न इस प्रकार है।

हिमालय के अग्र गर्त का जलोढ़ीकरण

एडवर्ड स्वेस महोदय के अनुसार इस मैदान का उद्भव हिमालय के उत्थान के फ़लस्वरुप इसके अग्र भाग में ( दक्षिण की ओर )तीव्र एवं गहरी कगार ( गर्त ) का विकास हुआ और इस कगार ( गर्त ) में हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा लाये गए जलोढ़ो के लम्बे काल तक निक्षेपण से इस मैदान का निर्माण हुआ है।

भ्रंश घाटी का अंतः भरण

सर जी बुर्रार्ड महोदय के अनुसार हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार के मध्य विकसित भ्रंश घाटी में हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों के द्वारा लाये गए अवसादों का लम्बे समय तक जमा होते रहने से उत्तरी भारत के मैदान का निर्माण हुआ है। इनके अनुसार हिमालय के उत्थान के कारण नर्मदा और ताप्ती भ्रंश घाटियों का भी उद्भव हुआ है।

सागर का अपगमन

ब्लैडफ़ोड के अनुसार आदिनूतन काल में अरब सागर का विस्तार ईरान, बलूचिस्तान और लद्दाख ( सिंधु घाटी) तक था। तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी का विस्तार असम घाटी से इरावदी नदी ( म्यांमार ) तक विस्तृत था मध्यनूतन ( Miocene ) काल में हिमालय के उत्थान के कारण इन सागरो में हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा निक्षेपण से सागरो के पीछे की प्रक्रिया तथा अवसादीकरण के कारण अवतलन से इस मैदान का निर्माण हुआ है।

इनके अनुसार इसी कारण से राजस्थान तथा कश्मीर में खारे पानी वाले झील, मैदानी क्षेत्रो में समुद्री जीवों का अवशेष, कुमाऊं-गढ़वाल हिमालय में चुना-पत्थर का विस्तार, कच्छ की खाड़ी द्वीपों का मुख्य भूमि से जुड़ा होना, बंगला देश के तट पर नये द्वीपों का निर्गमन इसके प्रमाण है।

टेथिस सागर का अवशिष्ट

कुछ भूगर्भवेताओं के अनुसार उत्तर भारत के मैदान टेथिस सागर का अवशिष्ट भाग है। इनके अनुसार हिमालय के अंतिम उत्थान अर्थात शिवालिक के उत्थान के बाद टेथिस का अवशेष भाग एवं वृहत द्रोणी ( घाटी ) के रूप में बची रही जिसका विस्तार पूरब में बंगाल की खाड़ी से पश्चिम में अरब सागर तक थी। यह द्रोणी कालांतर में हिमालय से निकलने नाली नदियों द्वारा भरा गया और यह मैदान अस्तित्व में आया।

आधुनिक विचार

आधुनिक विचारको द्वारा यह बतलाया जा रहा है कि, उत्तरी भारत का मैदान का निर्माण एक झील में हुआ है। और इस झील का विकास टेथिस सागर के सिकुड़ने के कारण हुआ था। टेथिस सागर के अधिकांश अवसादो के उत्थान हिमालय के रूप में होने के पश्चात इस सागर का कुछ संकरा तथा उथला हिस्सा रह गया, जिसे हिमालय के नदियों द्वारा लम्बे समय तक निक्षेप से इस मैदान का निर्माण हुआ है।

उत्तरी मैदान का भौतिक या भू-आकृतिक विभाजन

इस मैदानी भाग को एक समतल मैदान के रूप में जाना जाता है किन्तु, ऐसा नहीं है। इस विशाल मैदान में भौगोलिक आकृतियां अर्थात इसके रचना करने वाले समाग्रियों के आकारों में भिन्नता पाई जाती है। पर्वतपदीय क्षेत्रो में इसका विकास बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़ो से हुआ है। जबकि निम्न क्षेत्रो में छोटे-छोटे बारीक़ कणों से बना है। इन्ही कणों में भिन्नता के आधार पर उत्तर से दक्षिण की ओर पाँच भागो में विभाजित किया जाता है।

  1. भाबर प्रदेश।
  2. तराई प्रदेश।
  3. बांगर प्रदेश।
  4. खादर प्रदेश।
  5. डेल्टाई प्रदेश।

( 1. ) भाबर प्रदेश

इसका विस्तार शिवालिक हिमालय के गिरिपद क्षेत्रो में है तथा पश्चिम में सिंधु से पूर्व में तीस्ता नदी तक देखा जा सकता है। इसकी चैड़ाई 8 से 16 किमी के मध्य है। तथा इसका निर्माण हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा लाये गए भारी पत्थर, कंकड़, तथा बजरी से हुआ है। जिसके कारण इस क्षेत्र से गुजरने वाली छोटी नदियाँ विलुप्त हो जाती है तथा बड़ी नदियाँ कई धाराओं में विखंडित हो जाती है। इस प्रकार के चट्टानी क्षेत्र को पंजाब में ‘भाबर’ तथा असम में ‘दुआर’ कहा जाता है।

( 2. ) तराई प्रदेश

इसका विस्तार भाबर के दक्षिण में तराई क्षेत्र का विस्तार 10 से 20 किमी के मध्य है। भाबर में विलुप्त नदियाँ इस क्षेत्र में कई धराओं में प्रकट होती है जो निश्चित वहिकाएँ नहीं होती। है। यह क्षेत्र काफी नम तथा दलदलीय प्रकार का है। जिसके कारण यहाँ घने जंगल तथा वन्य जीवों की अधिकता पाई जाती है। इसी क्षेत्र में ‘दुधुवा, काजीरंगा, मानस राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। किन्तु वर्त्तमान समय में यहाँ पाए जाने वाले वनो को काटकर कृषि क्षेत्रो में परिवर्तित कर दिया गया है।

भाबर तथा तराई प्रदेश में अंतर

  1. भाबर प्रदेश शिवालिक पर्वत के दक्षिणी गिरिपद में सिंधु नदी से तीस्ता नदी तक विस्तृत है जबकि तराई प्रदेश भाबर प्रदेश के दक्षिण में इसके समांतर रूप में फैली हुई है।
  2. तराई प्रदेश की चौड़ाई उत्तर से दक्षिण 10 से 20 किमी के मध्य है।जबकि, भाबर प्रदेश की चौड़ाई 8 से 16 किमी के मध्य है
  3. तराई प्रदेश अपेक्षाकृत छोटे कणों वाले जलोढ़ो के निक्षेप से बना है। जबकि भाबर प्रदेश का निर्माण बड़े पत्थर, कंकड़ तथा बजरी से हुआ है।
  4. भाबर प्रदेश में अधिकांश नदियाँ विलुप्त हो जाती है। जबकि, तराई क्षेत्रो में ये नदियाँ पुनः कई धाराओं में प्रकट होती है।
  5. भाबर क्षेत्र कृषि कार्य के लिए उपयुक्त नहीं है। जबकि, तराई क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त है

( 3. ) बांगर प्रदेश

पुराने जलोढ़ मृदा तथा उच्च भूमि जहाँ बाढ़ का जल अब नहीं पहुँचता हो को बांगर क्षेत्र कहा जाता है। तथा पुराने जलोढ़ मृदा को ‘बांगर’ के नाम से जाना जाता है। बांगर मृदा को ‘भांगर’ मृदा भी कहा जाता है। इन क्षेत्रो में चूने की छोटी-छोटी संग्रन्थियाँ पाई जाती है जिसे कंकड़ कहा जाता है। इस प्रदेश के शुष्क क्षेत्रो में मृदा की प्रकृति लवणीय तथा क्षारीय पाई जाती है। जिसे स्थानीय नामो ‘रहे’, ‘कल्लर’, ‘धूड़’ से जाना जाता है।

( 4. ) खादर प्रदेश

खादर प्रदेश वह क्षेत्र होता है जो नदियों के दोनों ओर कम ऊंचाई वाले क्षेत्र जहाँ तक प्रतिवर्ष बाढ़ का जल पहुँचता हो जिसके कारण इन क्षेत्रो में प्रति वर्ष नई जलोढ़ मृदा का निर्माण होता है। इस तरह के नवीन जलोढ़ मृदा को ‘खादर’ या ‘बेट’ कहा जाता है। यह मृदा काफी उपजाऊ होती है। जहाँ पर सघन कृषि कार्य किया जाता है।

बांगर तथा खादर प्रदेश में अंतर

  1. बांगर प्रदेश पुराणी जलोढ़ मृदा से निर्मित क्षेत्र होता है जबकि, खादर प्रदेश नई जलोढ़ मृदा का क्षेत्र होता है जिसका निर्माण प्रति वर्ष होता है।
  2. खादर प्रदेश नदियों के किनारे तथा निम्न ऊंचाई के होते है जबकि, बांगर प्रदेश नदियों से दूर तथा ऊँचे होते है।
  3. खादर प्रदेश की मृदा सर्वाधिक उर्वरक होती है जबकि, बांगर प्रदेश की मृदा अपेक्षाकृत काम उपजाऊ होती है।
  4. बांगर प्रदेश में कैल्सियम कार्बोनेट युक्त छोटी-छोटी संग्रन्थियाँ पाई जाती है। जिसे कंकड़ के नाम से जाना जाता है। जबकि खादर प्रदेश में इसका आभाव पाया जाता है।
  5. बांगर प्रदेश कृषि के लिए उतनी उपयुक्त नहीं है जितनी खादर प्रदेश की। खादर प्रदेश प्राकृतिक रूप से सबसे उपजाऊ भूमि होती है।
  6. खादर प्रदेश को पंजाब में ‘बेट’ कहा जाता है जबकि बांगर को ‘धाया’ कहा जाता है।

( 5. ) डेल्टाई प्रदेश

डेल्टाई प्रदेश खादर प्रदेश का ही विस्तार है। जिसका विकास नदियों के मुहाने वाले भाग में होता है। भूमि में ढाल के आभाव में नदियों के प्रवाह धीमी हो जाती है जिसके कारण नदियों द्वारा लाई गई सम्पूर्ण अवशेष जलोढ़ को यहां जमा कर देती है। जिसके कारण नदियां कई धाराओं में विभाजित हो जाती है जिसे नदी वितरिकाएं कही जाती है। जैसे हुगली नदी यह गंगा नदी का एक वितरिका है। डेल्टाई प्रदेश के उच्च भूमि को ‘चार’ और दलदलीय क्षेत्र को ‘बिल’ के नाम से जाना जाता है।

उत्तर भारत के मैदान का क्षेत्रीय विभाजन

भारत का विशाल उत्तरी मैदान को क्षेत्रीय विभिन्नता एवं उच्चावच के आधार पर चार भागो में विभाजित करके इस मैदान का अध्ययन किया जाता है।

  1. पंजाब-हरियाणा का मैदान।
  2. राजस्थान का मैदान।
  3. गंगा का मैदान।
  4. ब्रह्मपुत्र का मैदान।

1. पंजाब-हरियाणा का मैदान

इस मैदान का विस्तार पंजाब, हरियाणा के साथ-साथ दिल्ली तक है। यह मैदान यमुना और रावि नदी के बीच स्थित है इसका निर्माण सतलज, ब्यास और रावि नदियों के निक्षेप से हुआ है। यह 1.75 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका समुद्रतल से औसत ऊंचाई 250 मीटर है। उत्तरी-पश्चिमी भाग में यह 300 मीटर तक ऊँचा पाया जाता है। इस मैदान का समान्य ढाल उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर है।

यहाँ शवालिक पर्वत से निकलने वाली छोटी नदियों को ‘चोस’ कहा जाता है यह मैदान मुख्य रूप से बांगर से निर्मित है हलांकि नदियों के किनारे एक संकरी पट्टी बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र खादर का पाया जाता है जिसे यहाँ ‘बेट‘के नाम से जाना जाता है।

दो नदियों के बीच की भूमि को ‘दोआब’ कहा जाता है। जैसे:- पंजाब ( सतलज, ब्यास, रावि, चिनाव तथा झेलम ), विस्ता दोआब ( ब्यास और सतलज के मध्य ), बारी दोआब ( ब्यास और रावी के मध्य ), रचना दोआब ( रावि और चिनाव के मध्य ), चाज दोआब ( चिनाव और झेलम के मध्य ) आदि।

2. राजस्थान का मैदान

इस मैदान का विस्तार अरावली के पश्चिम से लेकर भारत-पाकिस्तान सीमा तक है इसका पूर्वी भाग अपेक्षाकृत आद्र होने के कारण यहाँ स्टेपी प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती है। इस मैदानी भाग का ढाल पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर है। इस मैदान का एक बड़ा भाग निर्माण सागर के पीछे हटने से हुआ है। जिसका प्रमाण यहाँ पाए जाने वाले लवणीय झील जैसे:- सांभर, देगाना, डीडवाना, कुचमान आदि से पता चलता है।

यहाँ प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदी लूनी है जो कच्छ की खाड़ी में गिरती है। इस नदी का जल बलटोरा तक मीठा एवं उसके आगे जल खारा होता जाता है। इस मैदान के दक्षिणी-पश्चिमी भागो में जलोढ़ के मैदान पाए जाते है। जिन्हे यहाँ ‘रोहो’ कहा जाता है।

3. गंगा का मैदान

गंगा का मैदान पश्चिम में यमुना नदी से पूर्व में बंगलादेश एवं बंगाल की खाड़ी की सीमा तक लगभग 3.75 लाख वर्ग किमी तक फैला हुआ है। इसकी लम्बाई 1400 किमी तथा औसत चौड़ाई 300 किमी है। इसकी औसत ढाल प्रवणता 15 सेंटीमीटर प्रति किमी है। यह पश्चिम में ऊँची जैसे सहारनपुर ( 276 मीटर ) सर्वाधिक, रुड़की ( 274 मीटर ) तथा पूरब की ओर बढ़ने पर इसकी ऊंचाई कम होते जाती है। जैसे:- पटना ( 53 मीटर ), कोलकाता ( 6 मीटर ) आदि। इसकी समान्य ढल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है।

इस मैदान में भाबर, तराई, बांगर तथा खादर, नदी तटबंध, नदी विसर्प, गोखुर झील, मृत वहिकाएँ, ‘खोल’, ‘बिल’ प्रकुख स्थलाकृतियाँ पाई जाती है। इस मैदान को निम्न तीन भागो में विभाजित किया जाता है।

  • ऊपरी गंगा का मैदान।
  • मध्य गंगा का मैदान।
  • निचली गंगा के मैदान।

ऊपरी गंगा का मैदान

इसके अंतर्गत गंगा यमुना दोआब, रोहेलखण्ड का मैदान, अवध का मैदान, को सम्मिलित किया जाता है। इसके उत्तरी सीमा शिवालिक, दक्षिणी सीमा 125 मि समोच्च रेखा, पश्चिमी सीमा यमुना नदी तथा पूर्वी सीमा मध्य गंगा के मैदान द्वारा निर्धारित है। इस क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली नदियों में गंगा, यमुना के अतितिक्त काली, शारद, रामगंगा, घाघरा, राप्ती भी प्रवाहित होती है। इस क्षेत्र में लहरदार रेत के टीले पाए जाते है जिसे ‘भूड़’ कहा जाता है।

मध्य गंगा का मैदान

इसके अंतर्गत गंगा-घाघरा जल विभाजक, सरयूपार मैदान, मिथिला का मैदान आदि आते है। इसका विस्तार 1.44 लाख वर्ग किमी में है। इस मैदान का ढाल अत्यंत मंद होने के कारण नदियाँ अपना मार्ग बदलते रहती है। इस क्षेत्र में नदी विसर्प, नदी तटबंध, गोखुर झील इत्यादि प्रमुख स्थलाकृतियाँ पाई जाती है।

निचली गंगा का मैदान

यह मैदान पश्चिम में पटना, उत्तर में दर्जिलिंग हिमालय के गिरिपद तथा दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक लगभग 80970 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस मैदान के पश्चिम में छोटानागपुर का पठार तथा पूरब में बंगलादेश स्थित है। इस मैदान के सबसे नीचले हिस्से में विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा सुंदरवन डेल्टा स्थित है।

इस मैदान के पूर्व भाग में तीस्ता, जलधकिया, और संकोश नदियाँ ब्रह्मपुत्र में मिलती है। तथा पश्चिम में महानंदा, अजय और दामोदर नदियाँ प्रवाहित होती है। इसके दक्षिणी-पश्चिमी सीमा में कसाई और स्वर्णरेखा नदियां प्रमुख है।

राढ़ मैदान – छोटानागपुर पठार के पूरब में स्थित निचली गंगा के मैदान को राढ़ के मैदान कहा जाता है। यह क्षेत्र दामोदर और स्वर्णरेखा नदियों से अप्रवाहित है।

सुंदरवन डेल्टा – यह निचली गंगा के मैदान का सबसे निचली हिस्सा है। यह एक नम एवं दलदलीय क्षेत्र है। जहाँ ‘सुंदरी’ नामक वृक्ष अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है जिसके कारण इस डेल्टाई भाग को सुंदरवन डेल्टा कहा गया है। इसी डेल्टाई या दलदलीय क्षेत्र में ‘रॉयल बंगाल टाईगर’ और मगरमच्छ पाए जाते है।

ब्रह्मपुत्र का मैदान

यह मैदान भारत के उत्तरी विशाल मैदान का पूर्वी विस्तार है। इसकी लम्बाई लगभग 720 किमी और चौड़ाई लगभग 80 किमी है तथा इसका क्षेत्रफल 56,275 वर्ग किमी है। यह मैदान पश्चिम को छोड़कर चारो ओर से ऊँचे पर्वतो से घिरा हुआ है।

इस मैदान को 94 डिग्री पूर्वी देशांतर के आधार पर दो भागो में विभाजित किया जाता है। पहला, उत्तरी असम घाटी जिसमे असम घाटी के लखीमपुर, डिब्रूगढ़, जोरहट, सिंबसागर जिले और दरांग जिले की तेलपुर तहसील शामिल है। तथा दूसरा, निचली असम घाटी में नागांव, घुबरी, ग्वालपाड़ा, बारमेटा, कामरूप, नलबाड़ी, कोकराझार जिले तथा दरांग जिले का कुछ हिस्सा आते है।

इस मैदान का ब्रह्मपुत्र तथा इसकी सहायक नदियों द्वारा लाये गए निक्षेपो से बना है। यह मैदान चावल, चाय तथा पटसन के लिए काफी उपयुक्त है। इसी मैदान में काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान स्थित है।

उत्तर भारत के मैदान का महत्व

यह मैदान विश्व के सर्वाधिक उपजाऊ मैदान में से एक है। यहाँ विविध प्रकार के उष्ण तथा समशीतोष्ण कटिबंधीय फसलों का उत्पादन किया जा सकता है। उत्तरी भारत के मैदान का महत्व निम्न विन्दुओ से चिन्हित किया जा सकता है।

  • इस मैदान को ‘भारत का अन्न भंडार’ कहा जाता है क्योकि, यहाँ विविध प्रकार के खद्यान तथा व्यावसायिक फसलों का उत्पादन किया जाता है जैसे चावल, गेहूँ, गन्ना, जुट आदि।
  • यहाँ प्रवाहित होने वाली अधिकांश नदियाँ बारहमासी होती जिसके कारण यह क्षेत्र सालोभर सिचाई की सुविधा उपलब्ध रहती है।
  • इस मैदान में भूमिगत जलस्तर ऊपर होने के कारण नहर के अलावे नलकुप, कुवाँ, पम्पसेट, आदि का उपयोग घरेलू तथा औद्योगिक कार्यो के लिए आसानी से किया जा सकता है।
  • समतल भूभाग होने के कारण परिवहन और संचार के साधनो का नेटवर्क आसानी से बिछाया जा सकता है। जिसके कारण इन क्षेत्रो में इन सुविधाओं का जाल पाया जाता है।
  • मैदान का ढाल प्रवणता कम होने के कारण यहाँ प्रवाहित होने वाली नदियों का उपयोग जलमार्ग यातायात के रूप में लाया जा रहा है।
  • इस मैदान का विकास टेथिस सागर में होने के कारण यहाँ पर कुछ स्थानों में पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के भंडार पाए गए है तथा अत्यधिक संभावना भी है।
  • यह मैदान अत्यधिक उपजाऊ, जल की उपलब्धता तथा समतल भूभाग होने के कारण इस क्षेत्र में भारत की विशाल जनसंख्या निवास करती है।

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