जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत

जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत

जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत एक जनसंख्या सिद्धांत है, जिसमे किसी क्षेत्र में लम्बे समय अवधि में जनसंख्या के जन्मदर और मृत्युदर के मध्य अंतर के कारण जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि(परिवर्तन) की व्याख्या की जाती है। इसे जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत भी कहा जाता है। जनांकिकीय सक्रमण सिद्धांत का उपयोग किसी क्षेत्र की जनसंख्या के वर्णन तथा भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है।

यह सिद्धांत हमे यह बताता है कि जैसे-जैसे कोई समाज अशिक्षित, ग्रामीण और खेतिहर अवस्था से ऊपर उठकर शिक्षित, नगरीय और औद्योगिक बनता है वैसी-वैसी जनसंख्या की विशेषताओं में परिवर्तन होते जाता है। जैसे:- उच्च जन्मदर और उच्च मृत्युदर परिवर्तित होकर निम्न जन्मदर और निम्न मृत्युदर हो जाता है, जीवन सम्भाव्यता और जीवन प्रत्यासा बढ़ जाता है, परिवार का आकर बड़ा से छोटा हो जाता है।

जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत के तीन अवस्थाओं वाले मॉडल की व्याख्या करता है।
चित्र:- जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत के तीन अवस्थाओं वाले मॉडल की व्याख्या करता है।

यह सिद्धांत मूल रूप से डब्ल्यू० एस० थॉमसन ने 1929 ई० में प्रस्तुत किया था। जिसे फ्रेंक डब्ल्यू० नोटेस्टीन ने 1945 ई० में संशोधित करके वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत किया इसी कारण से नोटेस्टीन को जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का जनक कहा जाता है। इन दोनों ने यूरोप, अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया द्वारा अनुभाषित जन्मदर और मृत्युदर की प्रवृतियों को जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का आधार बनाया है।

थॉमसन और नोटेस्टीन ने जन्मदर और मृत्युदर के परिवर्तनों के आधार पर जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत को तीन अवस्थावो में विभक्त किया है। बाद में जन्मदर और मृत्युदर के परिवर्तनों के आधार पर जनककिय संक्रमण सिद्धांत को तीन से पाँच अवस्थाओं में विभाजित किया जाता रहा है। इन अवस्थाओं को सामूहिक रूप से जनांकिकीय चक्र भी कहा जाता है। सी० पी० ब्लेकर महोदय ने इन आस्थाओ को पाँच भागो में विभाजित किया है। समान्य तौर पर इस सिद्धांत को तीन अवस्थाओं के रूप में अपनाया गया है।

इन्हें भी जानें :-

जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत की अवस्थाएँ

जनांकिकीय संक्रमण ग्राफ
चित्र:- जनांकिकीय संक्रमण ग्राफ , 5 अवस्था

जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत को तीन से पाँच अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है थॉमसन और नोटेस्टीन ने इसे तीन अवस्थाओं में विभाजित किया है, तो सी० पी० ब्लेकर ने इसे पाँच अवस्थाओं में विभाजित किया है समान्य रूप से इसे तीन अवस्थाओं वाले मॉडल के रूप में अपनाया गया है।

प्रथम अवस्था

प्रथम अवस्था को पर्व आधुनिक, औद्योगिक से पूर्व की अवस्था और उच्च स्थाई अवस्था के रूप में भी जाना जाता है। इस अवस्था के निम्नलिखत कुछ जनांकिकीय विशेषताएँ है।

  • उच्च प्रजननशीलता(जन्मदर) और उच्च मर्त्यता (मृत्युदर) होती है।
  • जनसंख्या वृद्धि बहुत धीमी गति से होती है। या स्थिर रहती है।
  • जीवन सम्भाव्यता और जीवन प्रत्याशा निम्न होता है।
  • अधिकांश लोग अशिक्षित होते है।
  • ज़्यदातर लोग गाँवो में रहते है शहर का विकास नहीं के बराबर होता है।
  • लोगों का व्यवसाय प्राथमिक आर्थिक क्रियाएँ(भोजन संग्रह, आखेट, पशुपालन, कृषि इत्यादि) होती है।
  • महामारियाँ, अकाल, भोजन की अनिश्चित्ता अधिक रहती है।
  • प्रौद्योगिकी का स्तर निम्न होता है।
  • परिवारों का आकार बड़ा होता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओ का पूर्ण आभाव रहता है।
  • लगभग 200 वर्ष पूर्व विश्व के सभी देश इसी अवस्था में थे।
  • वर्तमान समय में विश्व के कई देश ऐसे हैं जिनका जन्मदर और मृत्युदर उच्च है लगभग 40 व्यक्ति प्रति हजार के आस-पास।
जननकीकीय संक्रमण सिद्धांत

दूसरी अवस्था

इस अवस्था को विस्फोटक अवस्था, पश्चमिकरण की अंतिम अवस्था ,औद्योगीकरण की अवस्था इत्यादि के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था के निम्न जनांकिकीय विशेषताएँ है।

  • दूसरी अवस्था के प्रारंभ में उच्च जन्मदर बना रहता है, किन्तु यह समय के साथ घटते जाता है।
  • इस अवस्था का प्रारंभ मृत्युदर में ह्रास के साथ शुरू होता है।
  • इस अवस्था के मध्य में जन्मदर और मृत्युदर में अधिक अंतर होने के कारण जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती है। इसी कारण से इस अवस्था को जनसंख्या का विस्फोटक अवस्था कहा जाता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में विकास एवं स्वच्छता में सुधर के कारण मृत्युदर में कमी आती है।
  • जीवन सम्भव्यता और जीवन प्रत्यासा में वृद्धि होती है।
  • साक्षरता दर में सुधर होता है।
  • औद्योगिक विकास तथा नगरीय विकास की क्रियाओं में तेजी आती है।
  • प्राथमिक व्यवसाय के साथ-साथ लोग द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाओ में संलग्न होते जाते है और इसका प्रतिशत बढ़ता जाता है।
  • परिवार नियोजन के साधनो को अपनाने से परिवार का आकार भी धीरे-धीरे छोटा होते जाता है।
  • जनसंख्या काआकार और घनत्व अधिक हो जाता है।
  • वर्तमान समय में विश्व के विकासशील देश इसी अवस्था में है। भारत, चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको इस अवस्था के अंतिम चरण में है। जबकि अधिकांश इस्लामिक देश इसके प्रारम्भिक अवस्था में है। द्वितीय अवस्था के मध्य में श्रीलंका, पेरू, चिली इत्यादि देश है।
  • इस अवस्था में कार्यशील जनसंख्या का प्रतिशत अधिक रहता है।
  • इस अवस्था को संक्रमण की अवस्था भी कहा जाता है

तृतीय अवस्था

तृतीय अवस्था को पश्चिमीकरण की अंतिम अवस्था, निम्न स्थाई की अवस्था, औद्योगीकरण के बाद की अवस्था इत्यादि के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था के निम्नलिखित जननिकीय विशेषताएँ होती है।

  • जन्मदर और मृत्युदर दोनों निम्न हो जाती है। यह पाँच व्यक्ति प्रति हजार से भी कम हो जाता है।
  • जनसंख्या वृद्धि रुक जाती है यह निम्न स्थाईत्व को प्राप्त कर जाती है। हलांकि जनसंख्या बहुत धीमी गति से बढ़ती है।
  • जीवन सम्भव्यता एवं जीवन प्रत्यासा उच्च हो जाता है।
  • नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत अधिक हो जाता है।
  • तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम आर्थिक क्रियाओ में लगे लोगो का प्रतिशत अधिक हो जाता है। और प्राथमिक एवं द्वितीयक आर्थिक क्रियाओ का प्रतिशत बहुत कम हो जाता है।
  • भोजन की अनिश्चित्ता, अकाल इत्यादि की समस्या लगभग समाप्त हो जाती है।
  • प्रौद्योगिकी का स्तर उच्च हो जाता है।
  • परिवार का आकर एकल अथवा छोटा हो जाता है।
  • साक्षरता व शिक्षा का स्तर उच्च हो जाता है।
  • श्रम विशिष्टीकरण उच्च होता है। अकुशल श्रमिकों का आभाव पाया जाता है। निर्भर जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ जाता है।
  • अधिकांश विकसित देश इसी श्रेणी में आते है। जैसे: यूरोप के अधिकांश देश -फ़्रांस, जर्मनी, रूस, इंग्लैण्ड इत्यादि। उत्तरी अमेरिका के USA , कनाडा। एशिया में जापान, सिंगापुर। आस्ट्रेलिया में आट्रेलिया और न्यूजीलैंड इत्यादि।

इस तरह से हम देखते है कि कोई भी समाज प्रारम्भिक काल से लेकर वर्तमान समय तक जनांकिकी अवस्थाओं से गुजरते हुए आगे बढ़ता है। इस सिद्धांत से सभी देश अपने आप को आंकलित करते है। और भविष्य की जनसंख्या का पूर्वानुमान लगाकर भविष्य के लिए नीतियाँ निर्धारित करती है। और देश को आगे बढ़ाने के लिए अग्रसर होते है।

13 Comments on “जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत”

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