पृथ्वी का उद्भव एवं विकास

पृथ्वी का उद्भव एवं विकास

इस लेख में हमलोग पृथ्वी का उद्भव एवं विकास के बारे में जानेगें। पृथ्वी का उद्भव का संबंध पृथ्वी की उत्पत्ति से है। इसका रचना कैसे हुआ है ? जबकि विकास का संबंध पृथ्वी के उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक कौन-कौन से बड़े बदलाव हुए है या यूँ कहे कि वर्तमान समय से 460 करोड़ वर्षो के दौरान पृथ्वी पर कौन-कौन से बड़े परिवर्तन हुए है। इसके उत्पत्ति के विषय में अनेक विचारक, दार्शनिक, वैज्ञानिक अपने विचार, संकल्पना, सिद्धांत दिए है कि, किस प्रकार पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। इस लिंक को क्लिक करके देख सकते है।

पृथ्वी का उद्भव एवं विकास का प्रदर्शन।
पृथ्वी का उद्भव एवं विकास का प्रदर्शन।

आरम्भिक समय में पृथ्वी

पृथ्वी के स्वरूप देखने से हमारे मन में एक प्रश्न उठता है कि क्या हमारी पृथ्वी पूर्व में भी ऐसी थी ? क्या आप जानते है कि हमारी पृथ्वी वर्तमान समय में जिस रूप में दिखाई देती है। वैसा आरम्भिक समय में नहीं थी।आरम्भिक समय में पृथ्वी बहुत गर्म, चट्टानी एवं वीरान थी। यहां पर किसी प्रकार के जीवन नहीं पाया जाता था। इस ग्रह में जीवन के लिए न तो जल था और न ही जीवन के लिए अनुकूल दशाएँ थी आरम्भिक समय में पृथ्वी का वायुमंडल बहुत ही विरल था। इस ग्रह पर हल्के गैसों हाइड्रोजन एवं हीलीयम की प्रधानता थी। नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बनडाऑक्साइड नहीं पाई जाती थी जो वर्तमान समय में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाती है।

इन सभी बातो से ऐसा लगता है कि पृथ्वी के विकास के दौरान इस ग्रह पर कुछ ऐसी घटनाएँ अवश्य हुई होगी जिसके कारण गर्म, चट्टानी एवं वीरान ग्रह एक सुंदर ग्रह में परिवर्तित हो गया। जिसमे जीवन की सभी अनुकूल दशाएं उपलब्ध हो गई है। जल, औक्सीजन, कार्बनडाऑक्साइड, अनुकूल तापमान, मृदा इत्यादि के कारण वर्तमान समय में विविध प्रकार के जीव-जन्तु एवं वनस्पतियां पाई जाती है। जो पृथ्वी को अन्य ग्रहो से विशेष बनाता है। पृथ्वी का विकास कई अवस्थाओं में हुआ है कुछ अवस्थाएँ इस प्रकार है।

स्थलमंडल का विकास

  • ब्रह्माण्ड के अधिकांश खगोलीय पिंड हल्के एवं भारी पदार्थो के मिश्रण से बने है। हमारी पृथ्वी भी उनमे से एक है। उल्काओ के अध्ययन से हमे इसकी जानकारी मिलती है।
  • ग्राहणुओं के इकट्ठा होने से पृथ्वी की रचना हुई है।
  • जब ग्रहणु गुरुत्व बल के कारण आपस में मिल रहे थे जिससे अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा भी उत्पन्न हो रही थी और उत्पन्न ऊष्मा से ग्राहणु पिघल गए और यह तप्त तरल गोल पिंड के रूप में विकसित हुआ।

पृथ्वी के तत्वों का विभेदन

  • इस तरल गोल पिंड में तरलता के कारण पदार्थो के घनत्व के अनुसार पदार्थो में एकत्रण होना प्रारम्भ हुआ और भारी पदार्थ केंद्र की ओर तथा हल्के पदार्थ केंद्र से बाहर की ओर हो गए।
  • हल्के एवं भरी पदार्थो के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभेदन ( Differentiation )कहा जाता है।
  • इसी विभेदन के कारण पृथ्वी के केंद्र में भारी पदार्थ ( लोहा ,निकेल ) तथा बाहरी परत भूपर्पटी में हल्के पदार्थ ( ऑक्सीजन, सिलिकन, अलमुनियम )पाए जाते है।
  • चन्द्रमा के उत्पत्ति के समय भी पृथ्वी का ताप बढ़ा था जिससे हल्के एवं भरी पदार्थो में पृथीकरण हुआ जो पृथ्वी पर पदार्थो का दूसरा विभेदन था।
  • 4.44 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के आकर से बड़ा पिंड पृथ्वी से टकराया था जिसे भीषण संघट्ट ( Giant Impact )कहा जाता है। जिससे पृथ्वी का एक हिस्सा टूटकर चन्द्रमाँ के रूप में विकसित हुआ। इस प्रक्रिया को ” द बिग स्प्लैट “( The Big Splat ) कहा जाता है।
  • विभेदन ( Differentiation ) के कारण पृथ्वी के पदार्थ अनेक परतो में अलग हो गए। पृथ्वी के धरातल से पृथ्वी के क्रोड तक कई परत पाए जाते है। जैसे:- भूपर्पटी ( Crust ), प्रवार ( Mantle ), क्रोड ( Core ) इत्यादि।
  • कालांतर में पृथ्वी की ऊर्जा के ह्रास के कारण ऊपरी भाग के पदार्थ ठंढे होकर ठोस अवस्था में परिणित हो गया। जिससे भूपर्पटी और स्थलमंडल ( भूपर्पटी + ऊपरी मेंटल ) का विकास हुआ जबकि पृथ्वी के आंतरिक भाग अभी भी तरल अवस्था में है।

वायुमंडल का विकास

हमारी पृथ्वी के ठंडा होने और पदार्थो के विभेदन के दौरान पृथ्वी के अंदर से बहुत सी गैसों और जलवाष्प बाहर निकला था इसी से आज के वायुमंडल का उद्भव हुआ है। पृथ्वी के वायुमंडल का विकास तीन अवस्थाओं में हुआ है।

  • प्रारम्भ में पृथ्वी के वायुमंडल में हाइड्रोजन और हीलियम गैसों की अधिकता थी जिसे आदिकालीन गैस कहा जाता है। जिसको सौर पवन के द्वारा या तो समाप्त कर दिया गया या आंतरिक ग्रहो के वायुमंडल से दूर धकेल दिया गया यह वायुमंडल के विकास का प्रथम अवस्था थी।
  • वायुमंडल के विकास के दूसरी अवस्था में पृथ्वी के ठंडा होने और पदार्थो के विभेदन के कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग से निकली भाप तथा जलवाष्प वायुमंडल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। दूसरी अवस्था में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बनडाऑक्साइड, मीथेन व अमोनिया अधिक मात्रा में थी और ऑक्सीजन बहुत कम मात्रा में थी। इन गैसों का विकास ज्वलमुखी के कारण हुआ था।
  • तीसरी एवं अंतिम अवस्था में वायुमंडल में प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन गैस की मात्रा में वृद्धि हुई और वर्तमान समय में वायुमंडल में नाइट्रोजन (78.08 % )तथा ऑक्सीजन ( 20.95 % ) हो गया।

जलमंडल का विकास

  • आरम्भिक समय में पृथ्वी के शीतलन से धरातल के विभिन्न भागो में ज्वलमुखी विस्फोट हुए जिससे वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा में वृद्धि हुई।
  • कालांतर में पृथ्वी के और ठंडा होने से वायुमंडल में विद्यमान जलवाष्प का संघनन प्रारम्भ हुआ और वर्षा होने लगी।
  • वायुमंडल में उपस्थित कार्बनडाऑक्साइड के वर्षा के जल में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट हुई। फलस्वरूप अधिक संघनन और अत्यधिक वर्षा लम्बे समय तक हुई।
  • और बाद में वर्षा का जल पृथ्वी के धरातल के गर्तो ( गड्ढो ) में इकट्ठा होने लगा जिससे महासागरों का विकास हुआ।
  • महासागरों की उत्पत्ति पृथ्वी के उत्पत्ति के लगभग 50 करोड़ साल के बाद हुई इससे पता चलता है कि महासागर 400 करोड़ साल पुराने है।

जीवन की उत्पत्ति

जीवन की उत्पत्ति एवं विकास।
जीवन की उत्पत्ति एवं विकास।
  • पृथ्वी का उद्भव एवं विकास का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति एवं विकास से है।
  • पृथ्वी का आरम्भिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था।
  • आधुनिक वैज्ञानिक एक प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रिया को जीवन की उत्पत्ति का स्रोत मानते है।
  • इनके अनुसार पहले जटिल जैव ( कार्बनिक )अनु बने और उनका समूहन हुआ। यह समूहन ऐसा था जो अपने आपको दोहराता था।
  • आगे चलकर इन जटिल जैव समूहन का वर्धन से निर्जीव तत्व जीवित तत्वों में परिवर्तित हो गए।
  • पृथ्वी पर जीवन के चिन्ह विभिन्न कालों के चट्टानों में पाए जाने वाले जीवश्मों के रूप में पाए जाते है।
  • 300 करोड़ साल पुराणी भूगर्भिक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी जैविक संरचना आज की शैवाल की संरचना से मिलती है। इससे यह पता चलता है कि सबसे पहले जीवन के रूप में शैवाल का विकास हुआ।
  • एक कोशीय जीवाणु ( ब्लू-ग्रीन शैवाल ) का विकास 2.5 अरब से 3.8 अरब वर्ष पहले हुआ है।
  • 57 करोड़ से 2 अरब 50 करोड़ वर्ष पूर्व कैम्ब्रियन महाकल्प ( Era ) में कई जोड़ो वाले जीवो का विकास हुआ
  • 50.5 से 57 करोड़ वर्ष पूर्व तक स्थल पर कोई जीवन विकास नहीं हुआ था सिर्फ जल में ही बिना रीढ़ की हड्डी वैसे जिव का विकास हुआ था।
  • स्थल पर प्रथम जीवन का चिन्ह पौधे के रूप में 40.8 करोड़ से 43.8 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था सिलोरियन युग ( Epoch ) में।
  • डेवोनियन युग ( 36 से 40.8 करोड़ वर्ष पूर्व ) उभयचर प्राणी (जो स्थल और जल दोनों जगह पर रह सकते थे ) का विकास हुआ।
  • डायनासोर का युग 6.5 करोड़ से 20.8 करोड़ वर्ष पूर्व जुरैसिक एवं क्रिटेशियस युग में था।

मानव का विकास

मानव का विकास।
  • मनुष्य से मिलता-जुलता वनमानुस का विकास 3.7 करोड़ से 5.8 करोड़ वर्ष पूर्व आदिनूतन युग में हुआ था।
  • वनमानुष, फूल वाले पौधे और वृक्ष का विकास 50 लाख से 2.4 करोड़ वर्ष पूर्व अल्पनूतन युग में हुआ था।
  • आरम्भिक मानव के पूर्वज आज से लगभग 20 लाख से 50 लाख वर्ष पूर्व अतिनूतन युग में पाए जाते थे।
  • आदिमानव ( Homosapience ) आज से 10 हजार से 20 लाख वर्ष पूर्व पाए जाते थे इस युग को अत्यंतनूतन कहा जाता है।
  • आधुनिक मानव का विकास 10 हजार वर्ष पूर्व से वर्तमान समय को माना जाता है जिसे अभिनव युग कहा जाता है।

उपरोक्त विन्दुओं को देखने से पता चलता है कि पृथ्वी का उद्भव एवं विकास की कहानी काफी रोचक है।

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