प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत

नमस्कार दोस्तों ! आज के इस लेख का सुरुवात कुछ प्रश्नो से करना चाहूंगा कि विश्व के बड़े एवं ऊँचे मोड़दार पर्वतों जैसे:- हिमालय पर्वत शृंखला की उत्पत्ति कैसे हुई है ? अटलांटिक महासागर की उत्पत्ति कैसे हुई है ? पृथ्वी के धरातल पर गर्त, वलन, भ्रंश, भूकंप एवं ज्वालामुखी क्यों होते है ? वर्तमान समय में महाद्वीपों एवं महासागरों का वितरण जिस प्रकार से है क्या भूतपूर्व में भी ऐसे थे और क्या आने वाले समय में भी ऐसे ही रहेंगे आदि। इन सभी प्रश्नो का तर्कपूर्ण एवं वैज्ञानिक आधारों पर उत्तर देने वाला सर्वमान्य सिद्धांत प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत है।

भौतिक भूगोल के इस महत्वपूर्ण लेख में हमलोग प्लेट विवर्तनिकी / टेक्टोनिक सिद्धांत के बारे में जानेगें कि प्लेट क्या है ? प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत क्या है ? इस सिद्धांत का विकास कब हुआ ? इस सिद्धांत के विकास में किन विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ? प्लेट सीमा क्या है ? यह किस तरह से विवर्तनिक घटनाओं को अंजाम देता है ? प्लेट सीमाएं कितने प्रकार की होती है ?आदि।

Table of Contents

विवर्तनिक / टेक्टोनिक क्या है ?

स्थलमंडल के ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज संचलन के कारण स्थलमंडल पर होने वाले विशाल पैमाने पर परिवर्तन को विवर्तनिक ( Tectonic ) कहा जाता है। जैसे :- पर्वतो का निर्माण, महासागरों का निर्माण, महाद्वीपों का विकास, भ्रंश, वलन, गर्त, भूकंप, ज्वालामुखी आदि।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना में पृथ्वी के ऊपरी परत भूपर्पटी एवं ऊपरी मैंटल को मिलाकर स्थलमंडल कहा जाता है। यह स्थल मंडल आंतरिक मैंटल के ऊपर क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर रूप से गतिशील है। जिसके कारण धरातल पर गर्त, भ्रंश, वलन, पर्वत आदि का विकास होता है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत क्या है ?

यह एक भौतिक भूगोल का ऐसा सिद्धांत है जिसमे पृथ्वी पर विभिन्न उच्चावचों तथा विवर्तनिक घटनाओं जैसे:- भ्रंश, वलन, भूकंप, ज्वालामुखी, गर्त, वलन आदि के उत्पत्ति एवं विकास को विस्तार पूर्वक व्याख्या करने वाली, विभिन्न सिद्धांतों एवं मतो में सर्वाधिक मान्य एवं वैज्ञानिक आधारों पर आधारित सिद्धांत प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत है।

इसका विकास 1967 ई. में मैक्केंजी ( Mckenzie ), पारकर ( Parker ) और मोरगन ( Morgan ) ने अपने स्वतंत्र रूप में उपलब्द्ध विचारो को सम्मिलित करके वैज्ञानिक आधारों पर एक सर्वमान्य सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसे प्लेट विवर्तनिकी ( Plate Tectonics ) सिद्धांत कहा गया है। प्लेट शब्द का प्रथम बार प्रयोग कनाडा के भू-वैज्ञानिक टूजो विल्सन ( Wilson ) के द्वारा किया गया जबकि प्लेट विवर्तनिकी शब्द का सर्वपर्थम बार प्रयोग मोर्गन के द्वारा किया गया।

यह सिद्धांत पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न उच्चावचों ( पर्वत, पठार, मैदान, महासागरीय तल का विस्तार, वलन, भ्रंश, गर्त, भूकंप, ज्वालामुखी आदि ) की उत्पत्ति, विकास, वितरण आदि का तर्क संगत एवं विस्तार पूर्वक व्याख्या करता है। यह सिद्धांत महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण एवं स्थाईत्व की भी व्याख्या करता है।

प्लेट क्या होता है ?

या प्लेट किसे कहते है ?

प्लेट की सीमाएँ
प्लेट की सीमाएँ

पृथ्वी का बाहरी भाग अर्थात स्थलमंडल ( भूपर्पटी और ऊपरी मैंटल ) का निर्माण ठोस एवं कठोर चट्टानों से मिलकर बना हुआ है, जो कई भागो में विभाजित है। इन्ही दृढ एवं विशाल भूखंडो को भूगोल और भूगर्भशास्त्र में प्लेट कहा जाता है। प्लेट शब्द का सर्वपर्थम बार उपयोग कनाडा के भूवैज्ञानिक टूजो विल्सन के द्वारा किया गया है। ये प्लेट दुर्बलमंडल ( निचली मैंटल ) पर गतिमान अवस्था में है। इसकी प्रवाह दिशा एवं गति अलग-अलग है।

पृथ्वी की ऊपरी परत अर्थात भूपर्पटी और ऊपरी मैंटल को मिलाकर स्थलमंडल कहा जाता है। यह स्थलमंडल ठोस चट्टानों क विशाल व अनियमित आकर के है जो महाद्वीप और महासागरों के स्थलमंडल से मलकर बने हुए है जिसकी मोटाई महासागरों में 5 से 100 किमी तथा महाद्वीपों में लगभग 200 किमी तक है।

प्लेटो का वर्गीकरण

प्लेटो का वर्गीकरण महाद्वीपों एवं महासागरों की स्थिति और आकर के आधार पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।

( A ) महाद्वीपों एवं महासागरों की स्थिति के आधार पर प्लेटो को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है।

1. महाद्वीपीय प्लेट

जिन प्लेटो के अधिकांश भाग पर महाद्वीपों की स्थिति है उन प्लेटो को महाद्वीपीय प्लेट कहा जाता है। जैसे:- यूरेशियाई प्लेट, इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट, उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीकी प्लेट, अफ्रीकी प्लेट, अंटार्कटिक प्लेट, अरेबियन प्लेट आदि।

2. महासागरीय प्लेट

जिन प्लेटो के अधिकांश भाग पर महासागरों की स्थिति है ऐसे प्लेटो को महासागरीय प्लेट कहा जाता है। जैसे:- प्रशांत महासागरी प्लेट, कोकोस प्लेट, नजका प्लेट, फिलीपीन प्लेट, कैरोलिन प्लेट, स्कोशियस प्लेट आदि।

( B ) आकार के आधार पर भी प्लेटो को दो भागो में विभाजित किया जाता है।

प्रमुख प्लेटें
प्रमुख प्लेटें

1. प्रमुख या बड़े प्लेट

जिन प्लेटो केअधिकांश भाग पर सम्पूर्ण महाद्वीप एवं महासागर स्थित है उन प्लेटो को प्रमुख या बड़े प्लेट कहा जाता है। ये मुख्य रूप से सात है।

  1. अंटार्कटिका प्लेट – इस प्लेट के अधिकांश क्षेत्र पर अंटार्कटिका महाद्वीप तथा महासागर स्थित होने के कारण इसे अंटार्कटिका प्लेट कहा जाता है यह प्लेट दक्षिणी गोलार्द्ध का दक्षिणी ध्रुव के चारो ओर फैला हुआ है।
  2. इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेटइस प्लेट के ऊपर भारत, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा हिन्द महासागर का अधिकांश भाग स्थित है। वर्तमान समय में यह प्लेट उत्तर-पूर्व में अग्रसारित होते हुए यूरेशिया प्लेट से टकरा गई है।
  3. अफ्रीकी प्लेट – अफ़्रीकी प्लेट के ऊपर अधिकांश भाग में अफ्रीका महाद्वीप स्थित है। इसके साथ-साथ दक्षिणी अटलांटिक महासागर के पूर्वी भाग तथा हिन्द महासागर का पश्चमी भाग इसमें स्थित है। यह धीमी गति से लगभग स्थिर अवस्था में उत्तर-पर्व की ओर अग्रसारित है।
  4. यूरेशियाई प्लेट – इस प्लेट के ऊपर यूरोप के अधिकांश भाग, अरब एवं भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़कर सम्पूर्ण एशियाई भाग, उत्तरी अटलांटिक महासागर के पूर्वी भाग तथा आर्कटिक महासागर स्थित है। इसका नामकरण यूरोप और एशिया को मिलकर किया गया है।
  5. उत्तरी अमेरिकी प्लेट – इस प्लेट पर उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड तथा उत्तरी अटलांटिक महासागर के पूर्वी भाग तथा आर्कटिक महासागर के कुछ भाग स्थित है। यह प्लेट पश्चिम की ओर खिसक रही है। कैरिबियाई प्लेट इसे दक्षिण अमेरिकी प्लेट से अलग करती है।
  6. दक्षिण अमेरिकी प्लेट – यह प्लेट वर्त्तमान समय में पश्चिम दिशा की ओर गतिशील है। इसमें दक्षिण अमेरिका तथा दक्षिणी अटलांटिक महासागर के पश्चमी भाग स्थित है इसके पश्चिम में नजका प्लेट स्थित है।
  7. प्रशांत महासागरीय प्लेट – यह एक महासागरीय प्लेट है। इसके ऊपर प्रशांत महासागर के अधिकांश भाग स्थित है। यह लगभग स्थिर अवस्था में है। इसके पश्चिम में यूरेशियाई, फिलीपीन, कैरोलिन तथा इंडो- ऑस्ट्रेलियन प्लेट तथा पूरब में उत्तरी अमेरिकी, कोकोस, नजका प्लेट तथा दक्षिण में अंटार्कटिक प्लेट स्थित है।

2. छोटे प्लेट

उपरोक्त प्रमुख या बड़े प्लेटो के अतितिक्त जितने भी शेष प्लेट है उन्हें छोटे प्लेटो के श्रेणी में रखा जाता है। कुछ प्रमुख छोटे प्लेट निम्नलिखित इस प्रकार है।

  1. नजका प्लेट – छोटे प्लेटो में सबसे बड़ा प्लेट नजका प्लेट है। यह एक महासागरीय प्लेट है इसकी स्थिति प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में है। इसके उत्तर में कोकोस प्लेट, दक्षिण में अंटार्कटिका प्लेट, पूर्व में दक्षिण अमेरिकी प्लेट तथा पश्चिम में प्रशांत महासागरीय प्लेट स्थित है।
  2. कोकोस प्लेट – यह भी एक महासागरीय प्लेट है। इसकी स्थिति पूर्वी प्रशांत महासागर में है। इसके पूरब में उत्तरी अमेरिकी प्लेट का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, पश्चिम में प्रशांत महासागर तथा दक्षिण में नजका प्लेट स्थित है।
  3. स्कोशिया प्लेट – यह भी महासागरीय प्लेट है। इसकी स्थिति दक्षिणी अटलांटिक महासागर के पश्चिम में है। इसके उत्तर तथा पश्चिम में दक्षिण अमेरिकी प्लेट तथा दक्षिण में अंटार्कटिक प्लेट स्थित है।
  4. कैरिबियाई प्लेट – इस प्लेट के ऊपर कैरिबियाई द्वीप समूह के साथ-साथ कैरिबियन सागर भी स्थित है। इसमें महाद्वीप तथा महासागर दोनों की स्थिति है।
  5. अरेबियन प्लेट – यह प्लेट एक महाद्वीपीय प्लेट है। इसकी स्थिति यूरेशियाई प्लेट के दक्षिण-पश्चिम में तथा अफ़्रीकी प्लेट के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। यह प्लेट यूरेशियाई प्लेट कोअफ़्रीकी प्लेट से अलग करता है।
  6. फिलीपीन प्लेट – यह प्लेट प्रशांत महासागर के पश्चिम में तथा यूरेशियाई प्लेट के पूरब में स्थित है। इस प्लेट के उत्तर फिलीपीन देश स्थित है।
  7. कैरोलिन प्लेट – यह प्लेट प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग में फिलीपीन प्लेट के दक्षिण पूर्व भाग में स्थित है। इसके दक्षिण पश्चिम में इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट तथा उत्तर-पूर्व में प्रशांत महासागरीय प्लेट स्थित है। यह भी एक महासागरीय प्लेट है इसमें फ्यूजी द्वीप समूह स्थित होने के कारण इसे फ्यूजी प्लेट भी कहा जाता है।
  8. ज्वान-डी-फ्यूका प्लेट – यह प्लेट प्रशांत महासागर के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। इसके दक्षिण-पश्चिम भाग में प्रशांत महासागरीय प्लेट तथा उत्तर-पूर्वी भाग में उत्तरी अमेरिकी प्लेट स्थित है।
  9. सोमाली प्लेट – यह प्लेट अफ़्रीकी प्लेट के पब में स्थित है इसके पूरब में इंडो- ऑस्ट्रेलियन प्लेट पश्चिम में अफ़्रीकी प्लेट तथा दक्षिण में अंतर्कातिक प्लेट स्थित है। इस प्लेट के ऊपर अफ्रीका के मेडागास्कर, सोमालिया, मोजाम्बिक तथा हिन्द महासागर के पश्चिमी भाग स्थित है।

प्लेट की सीमाएँ

प्लेट की गति एवं सीमा
प्लेट की गति एवं सीमाएँ

इस प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत में इन सीमाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। प्लेट के सभी किनारे वाले भाग को प्लेट सीमा कहा जाता है। इन्ही प्लेट सीमाओं के सहारे भ्रंश, वलन, भूकंप, ज्वालामुखी, पर्वत, कटक, खाईयाँ आदि विवर्तनिकी क्रियाएं सम्पन्न होती है। ये प्लेटो के गति के अनुसार तीन प्रकार की होती है।

  1. अपसारी प्लेट सीमा ( Divergent Boundaries )
  2. अभिसारी प्लेट सीमा ( Convergent Boundaries )
  3. रूपांतर प्लेट सीमा ( Transform Boundaries )

1. अपसारी प्लेट सीमा

जब दो या दो से अधिक प्लेट एक दूसरे से दूर जाते है तो उसके मध्य प्लेट की सीमा अपसारी प्लेट सीमा कहा जाता है। इस प्लेट सीमा को रचनात्मक प्लेट सीमा भी कहा जाता है। क्योकि दोनों प्लेटो के मध्य एक नए क्षेत्र का निर्माण होता है। अधिकांश अपसारी प्लेट सीमा महासागरीय कटको के दोनों किनारे होते है।

जिस स्थान से दो प्लेट एक दूसरे से दूर जाते है उस स्थान को क्षेत्र प्रसारी स्थान ( Spreading Site ) कहा जाता है। इन क्षेत्रो में धरातल की भीतर अर्थात मैंटल से लावा हमेसा ऊपर की ओर उठता रहता है जिसके कारण इन क्षेत्रो में समुद्री कटको का निर्माण होता रहता है।

अपसारी प्लेट सीमा के कारण ही अटलांटिक महासागर का निर्माण हुआ है। इस महासागर का विकास अमेरिकी प्लेटो और यूरेशियाई तथा अफ़्रीकी प्लेटो के अलग या दूर जाने के कारण हुआ है। अटलांटिक महासागर के मध्य महासागरीय कटक अपसारी प्लेट सीमा का सबसे अच्छा उदाहरण है।

2. अभिसारी प्लेट सीमा

प्लेटो का अभिसरण
प्लेटो का अभिसरण

जब दो प्लेट एक दुसरे के निकट आकर टकराते है तो इसके मध्य जिस प्लेट सीमा का निर्माण होता है उसे अभिसारी प्लेट सीमा कहा जाता है। इस प्लेट सीमा को विनाशकारी प्लेट सीमा भी कहा जाता है। क्योकि जब दो प्लेट आपस में टकराते है तो जिस प्लेट का घनत्व अधिक होता है उस प्लेट का अग्र भाग धीरे-धीरे मैटल में क्षेपण ( Subduction )द्वारा मैंटल में विलय होते जाता है। जिससे इस प्लेट के क्षेत्रफल में कमि होता जाता है। प्लेटो के अभिसरण तीन प्रकार से होते है।

  1. महासागरीय तथा महाद्वीपीय प्लेटो के मध्य अभिसरण।
  2. दो महासागरीय प्लेटो के बीच अभिसरण।
  3. दो महाद्वीपीय प्लेटो के बीच अभिसरण।

महासागरीय तथा महाद्वीपीय प्लेटो के मध्य अभिसरण

जब महासागरीय तथा महाद्वीपीय प्लेट अभिसारित होकर टकराते है तो महासागरीय प्लेट का घनत्व अधिक होने के कारण इसके अग्र भाग धरातल के अंदर मैटल की ओर क्षेपण होने लगता है तथा कम घनत्व वाले महाद्वीपीय प्लेट के अग्र भाग में दबाव के कारण मोड़ और वलन बनना प्रारम्भ हो जाता है और यही वलन कालांतर में मोड़दार पर्वत का रूप धारण कर लेता है।

इस प्रकार के अभिसरण के कारण रॉकी एवं एंडीज पर्वत माला का निर्माण हुआ है। प्रशांत व कोकोस महासागरीय तथा उत्तरी अमेरिकी प्लेट के अभिसरण के कारण रॉकी पर्वत शृंखला का निर्माण हुआ है। दक्षिण अमेरिकी प्लेट तथा नजका प्लेट के अभिसरण से दोनों प्लेटो के अभिसारी प्लेट सीमा में एंडीज पर्वत शृंखला का निर्माण हुआ है।

दो महासागरीय प्लेटो के बीच अभिसरण

जब दो महासागरीय प्लेट अभिसारित होकर आपस में टकराते है तो दोनों प्लेटो का घनत्व अधिक होने के कारण दोनों प्लेटो के अग्र भाग नीचे की ओर क्षेपित हो जाता है। जिसके कारण इस महासागरीय क्षेत्रों में गहरे-गहरे खाइयों का निर्माण होता है। मेरियाना गर्त इस प्लेट सीमा का सबसे अच्छा उदाहरण है। जहाँ प्रशांत महासागरीय प्लेट तथा फिलीपीन व कैरोलिन महासागरीय प्लेटो के अभिसरण के फलस्वरूप हुआ है।

दो महाद्वीपीय प्लेटो के बीच अभिसरण

जब दो महाद्वीपीय प्लेट एक दूसरे की ओर अभिसारित होती है तो ऐसे प्लेट सीमा में दो स्थितियां बनती है।

पहली स्थिति में अगर दोनों प्लेटो का घनत्व समान होने पर अभिसारण के कारण दोनों प्लेटो के अग्र भाग में वलन पड़ना प्रारम्भ हो जाता है और दोनों प्लेटो का अग्र भाग ऊपर उठने लगता है और मोड़दार पर्वत का निर्माण होता है। यूरेशियाई तथा अफ़्रीकी प्लेटो के अभिसरण के कारण आल्प्स एवं एटलस पर्वत का निर्माण हुआ है।

दूसरी स्थिति में अगर एक प्लेट का घनत्व अधिक तथा दूसरे प्लेट का घनत्व कम हो तो इस स्थिति में कम घनत्व वाले प्लेट का अग्रभाग वलित होकर मोड़दार पर्वत के रूप में विकसित होता है। जबकि अधिक घनत्व वाले प्लेट का अग्रभाग नीचे की ओर मुड़कर मैंटल में क्षेपित होता जाता है। जिसके कारण इन दोनों प्लेट सीमाओं के मध्य पर्वत और खाई दोनों का निर्माण होता है।

यूरेशियाई तथा इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट के अभिसरण के कारण हिमालय पर्वत शृंखला का निर्माण हुआ है। जबकि गर्त में सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान का निर्माण हुआ है। हिमालय पर्वत शृंखला विश्व की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला है। वर्त्तमान समय में भी इसकी उचाई बढ़ रही है। जिसका प्रमाण कुछ वर्ष पहले माउन्ट एवरेस्ट की उचाई 8848 मीटर थी किन्तु वर्त्तमान समय में इसकी ऊंचाई 8850 मीटर हो गई है। वही गंगा के मैदान में तलछटों या अवसादों की गहराई 3 किमी से भी अधिक कही-कही पाई जाती है।

3. रूपांतर प्लेट सीमा

जहाँ दो प्लेटो एक दूसरे के अगल-बगल से एकदूसरे के विपरीत दिशा में खिसकते है तो ऐसे प्लेट सिमा को रूपांतर प्लेट सीमा कहा जाता है। इस प्लेट सीमा में ना तो विनास की प्रक्रियाएं होती है और ना ही रचनात्मक प्रक्रियाएं होती है। अतः इसे संरक्षी प्लेट सीमा भी कहा जाता है।

रूपांतरण भ्रंश महासागर में दो प्लेटो के अलग करने वाले तल होते है जो मध्य महासागरीय काटको से लंबवत स्थिति में याये जाते है। इन रूपांतरण सीमाओं पर सर्वाधिक मात्र में भूकंप एवं ज्वालामुखी का उद्गार होते रहता है। सभी प्रकार की प्लेट सीमाओं के आसपास के क्षेत्रो में सर्वाधिक भूकंप से प्रभावित क्षेत्र होते है जहाँ अक्सर भूकंप के झटके आते रहते है।

कैलिफोर्निया के सन एंड्रियास भ्रंश रूपांतरण प्लेट सीमा का सबसे अच्छा उदाहरण है।

प्लेटो की प्रवाह दरें

विभिन्न कालो में प्लेटो की प्रवाह :-ट्रेयासिक युग से वर्त्तमान समय तथा आने वाले 50 मिलियन वर्ष के बाद तक प्रवाह की स्थिति  1. ट्रियासिक युग -200 मिलियन वर्ष पूर्व, 2. अंतिम ट्रियासिक-180 मिलियन वर्ष पूर्व, 3. अंतिम जुरैसिक-135 वर्ष पूर्व, 4.  अंतिम क्रिटैसियस युग-65 मिलियन वर्ष पूर्व, 5. वर्तमान स्थिति तथा 6. आगामी 50 मिलियन वर्षों में संभावित स्थिति
विभिन्न कालो में प्लेटो की प्रवाह :-ट्रेयासिक युग से वर्त्तमान समय तथा आने वाले 50 मिलियन वर्ष के बाद तक प्रवाह की स्थिति 1. ट्रियासिक युग -200 मिलियन वर्ष पूर्व, 2. अंतिम ट्रियासिक-180 मिलियन वर्ष पूर्व, 3. अंतिम जुरैसिक-135 वर्ष पूर्व, 4. अंतिम क्रिटैसियस युग-65 मिलियन वर्ष पूर्व, 5. वर्तमान स्थिति तथा 6. आगामी 50 मिलियन वर्षों में संभावित स्थिति

सभी प्लेटो की प्रवाह दरें एक समान से नहीं है। कुछ प्लेटो की गति तीव्र है तो कुछ की मंद वहीं कुछ प्लेटो की गति इतनी मंद है कि वह स्थिर अवस्था में प्रतीत होता है।

मध्य महासागरीय कटक के सहारे समानांतर चुम्बकीय क्षेत्र की पटियों के विसंगति तथा विस्तार से इनकी गति की जानकारी के लिए वैज्ञानिको के लिए सहायक सिद्ध हुआ है। इसके साथ-साथ महासागरीय नितल के प्रसारण गति के आधार पर समाकलित रेखा की आयु निर्धारित किया गया है। समाकलित रेखा ( Isochrons ) वह रेखा होती है जो धरातल या महासागरीय नितल पर निर्माण की तिथि का समान विन्दुओ को मिलाती है। यह रेखा का निर्माण 10 मिलियन वर्षो के अंतराल पर किया गया है।

इन आधारों पर अटलांटिक एवं हिन्द महासागर की तली का प्रसार सबसे कम गति से 1.5 सें.मी. से 2.5 सें.मी प्रति वर्ष तक हो रही है। जबकि ईस्टर द्वीप के शेयर दक्षिण प्रशांत महासागर में इसकी परवाह डॉ सर्वाधिक 5 सें.मी से अधिक प्रति वर्ष है। दक्ष्णि अटलांटिक कटक के सहारे 2 सें.मी प्रति वर्ष और हिन्द महासागर में 1.5 से 3 सें.मी प्रति वर्ष की डॉ से प्रसारित हो रही है।

प्लेटो को गतिशील करने वाले बल

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत, सागरीय अधस्तल विस्तार सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत ने इस बात पर बल दिया की पृथ्वी की धरातल व भूगर्भ दोनों स्थिर नहोकर गतिशील अवस्था में है और स्थलमंडल मैंटल के ऊपर तैर रहा है।

आर्थर होम्स ने 1930 के दशक में यह संभावना व्यक्त किया कि मैंटल में ताप भिन्नता के कारण संवहनीय धाराओं का प्रवाह हो रहा है। मैंटल के जिन क्षेत्रो में तापमान अधिक होता है रेडियो एक्टिव तत्वों के कारण वहाँ संवहनीय धाराओं का विस्तार होता है वहां धाराएं चारो ओर फैलती है। जबकि जिस स्थान पर तापमान कम होता है वहां धाराएं आकर मिलती है अर्थात अभिसरण होता है। और इस प्रकार मैंटल में संवहनीय धाराओं का चक्रीय रूप निरंतर चलते रहता है।

प्लेटो में गति मैंटल में स्थित संवहनीय धाराओं में कारण होता है। जिन प्लेटो की स्थिति अभिसारी संवहन धाराओं के ऊपर स्थित है उनका प्रवाह अभिसारी है तथा जिन प्लेटो की स्थिति अप्सरी धाराओं के ऊपर होती है उनका गति अपसारी होता है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की आलोचनाएँ

हालांकि यह सिद्धांत धरातल पर विभिन्न विवर्तनिकी घटनाओं ( भ्रंश, वलन, कटक, पर्वत, खाईयाँ, भूकंप, ज्वालामुखी आदि ) की उत्पत्ति एवं विकास की व्याख्या करने वाले सर्वमान्य सिद्धांत है किन्तु इस सिद्धांत को कुछ विन्दुओं पर आलोचना किया जा सकता है। जो निम्लिखित इस प्रकार है।

  1. इसमें अभी तक प्लेटो की सही संख्या का ज्ञात न होना इस सिद्धांत को आलोचना के घेरे में लता है।
  2. इस सिद्धांत के अनुसार एक प्लेट एक दिशा की ओर गति कर रही होती है। किन्तु कई ऐसे स्रोत मिले है जो अंतर्विरोधी दिशाओं को बताते है। जैसे:- अफ़्रीकी प्लेट, भारतीय प्लेट आदि की गति।
  3. यह सिद्धांत प्रचीन काल के वलित पर्वतो की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं कर पाता है। जैसे:- भारत के अरावली पर्वत, दक्षिण अफ्रीका के ड्रेकेन्सबर्ग, ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट डिवाइडिंग रेंज आदि।
  4. इस सिद्धांत में अंटार्कटिक प्लेट के चारो ओर अपसारी प्लेट सीमाएं है, कारणों की व्याख्या नहीं करता है।
  5. वर्त्तमान समय में जितने महासागरीय कटको का विस्तार देखा जाता है उतनी मात्रा में खाईयाँ नहीं देखी जाती है। अतः यह संतुलन अवस्था में प्रतीत नहीं होता है।
  6. इस सिद्धांत में यह बतलाया गया है की प्लेट दुर्बलमंडल में गति कर रही है। किन्तु वास्तव में दुर्बलमंडल तरल अवस्था में नहीं है।
  7. इसमें प्लेटो की वास्तविक मोटाई के विषय में स्पष्टता का आभाव देखा जाता है।

उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत वर्त्तमान समय में सबसे मान्य एवं गत्यात्मक सिद्धांत है। जो भूगर्भशास्त्र और भूगोल की अधिकतर विवर्तनिक जटिलताओं को तर्कपूर्ण एवं संतोषजनक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

1 thought on “प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत”

Leave a Comment

Scroll to Top