माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत।

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत।
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत।

जनसंख्या सिद्धांत

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत को जानने से पहले हमे यह जानना होगा की जनसंख्या सिद्धांत क्या होता है। जनसंख्या और संसाधन के बीच संबंधो की व्याख्या जनसंख्या सिद्धांत करता है।

किस प्रकार किसी क्षेत्र की जनसंख्या बढ़ने पर उस क्षेत्र के संसाधनों पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण क्षेत्र के लोगो के सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक इत्यादि प्रभावों को देखने को मिलता है। जैसे आपदाएं, गरीबी, बेरोजगारी, महामारियां, युद्ध इत्यादि।

जनसंख्या एवं संसाधन के बीच संबंधो का प्राचीन कल से विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न प्रकार के विचार प्रस्तुत किये गए है।

जनसंख्या संसाधन संबंध पर विचार का इतिहास प्लेटो के समय से ही प्रारंभ हुआ था। प्लेटो नियंत्रणवादी थे एवं उन्होंने जनसंख्या की सुनिश्चित सीमा के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत किये थे।

चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस अनियंत्रित गति से जनसंख्या वृद्धि के पक्ष में नहीं थे उनका यह मानना था कि जनसंख्या और पर्यावरण के बीच संतुलन आवश्यक है।

जनसंख्या और संसाधन के बीच संबंधो पर व्यवस्थित विचार प्रस्तुत करने का श्रेय थॉमस राबर्ट माल्थस को जाता है। उसके बाद बहुत विद्वानों ने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने वाले नियमो को खोजने का प्रयास किया। जनसंख्या के सिधान्तो को दो वर्गो में विभाजित किया जाता है।

  1. प्राकृतिक आधार पर आधारित सिद्धांत।
  2. सामाजिक आधार पर आधारित सिद्धांत।

1. प्राकृतिक आधार पर आधारित सिद्धांत।

यहाँ प्राकृतिक आधार पर आधारित जनसंख्या सिद्धांत हमे यह बतलाता है कि अनियंत्रित रूप से बढ़ने वाली जनसंख्या को प्रकृति स्वयं प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से नियंत्रित करती है और जनसंख्या एवं संसाधन के मध्य संतुलन स्थापित करती है।

इस सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले सर्वपर्थम विद्वान् माल्थस महोदय थे।

इनके अलावे थामस सैंडलर, थॉमस डब्बले एवं हबर्ट स्पेंसर ने भी प्राकृतिक आधार पर जनसंख्या सिद्धांत का प्रतिपादन किये।

2. सामाजिक आधार पर आधारित सिद्धांत।

हेनरी जार्ज, आर्सेन ड्यूमेन्ट, डेविड रिकार्डो एवं कार्ल मार्क्स ने सामाजिक नियमो के आधार पर जनसंख्या सिद्धांत का प्रतिपादन किये है।

सामाजिक आधार पर आधारित सिद्धांत हमे यह बतलाता है कि अनियंत्रित रूप से बढ़ने वाली जनसंख्या को सामाजिक सुधारो (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार इत्यादि) के फलस्वरूप ऐसे सुंदर परिवर्तन लाये जा सकते है, कि उनसे जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता ही नहीं होगी।

समाज सुधारक आर्सेन ड्यूमेन्ट का ऐसा विश्वास है कि सामाजिक कोशिकीयता (sicial capillarity) के द्वारा छोटे परिवार के भाव का जागरण होगा तथा लोग बेहतर आर्थिक अभिलाषा के कारण कम बच्चे उत्पन्न करेंगे।

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत

थॉमस राबर्ट माल्थस (1766-1834) एक ब्रिटिश इतिहासकार एवं अर्थशास्त्री थे। इन्होने सर्वप्रथम 1798 में जनसंख्या के सिद्धांत पर एक निबंध ”प्रिंसिपल ऑफ़ पापुलेशन ”(Principle of Population) प्रकाशित किया।

इसमें जनसंख्या वृद्धि तथा सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के मध्य पारस्परिक संबंधो का निर्धारण किया है। उनका उद्देश्य मानवतावादी था। और वे सदा मानव कल्याण के विषय में ही सोचते थे। जनसंख्या वृद्धि का मानव कल्याण पर क्या प्रभाव होता है। इसकी व्याख्या इस निबंध में किया गया है।

इसी निबंध को बाद में माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत कहा गया है। जनसंख्या समस्या के प्रति उनका दृष्टिकोण अनुभववादी था क्योकि उन्होंने अपने जनसंख्या के सिद्धांत यूरोप की जनसंख्या वृद्धि के अनुभवों पर आधारित था। माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत दो मान्यताओं पर आधारित है।

  1. भोजन की आवश्यकता।
  2. स्त्री एवं पुरुष के बीच स्वभाविक कामुकता।

माल्थस का यह मानना था कि उपरोक्त दोनों लक्षण शाश्वत, प्राकृतिक और परस्पर विरोधी है।

इन दोनों मान्यताओं के आधार पर उन्होंने कहा कि जनसंख्या वृद्धि की क्षमता भूमि के जीवन निर्वाह प्रदान करने की क्षमता से अधिक होती है।

जिससे जनसंख्या एवं खाद्य समाग्री में असंतुलन पैदा हो जाता है। जिसे प्रकृति अपने अनुसार अकाल, आपदाएं, युद्ध, महामारी के द्वारा जनसंख्या को नियंत्रित करती है। और जनसंख्या एवं खाद्य समाग्री में पुनः संतुलन पैदा करती है।

जनसंख्या सिद्धांत नियमो की व्याख्या

जनसंख्या वृद्धि दर

माल्थस के अनुसार यदि जनसंख्या अनियंत्रित रहती है तो यह गुणोत्तर गति/ज्यामितीय गति से बढ़ती है जैसे (1,2,4,8,16……) यदि जनसंख्या वृद्धि दर इसी गति से जारी रहती है तो प्रत्येक 25 वर्ष में जनसंख्या दोगुनी और 200 वर्षो में 256 गुनी हो जाएगी। काम भावना के कारण लोग कम उम्र में विवाह करेंगे और अधिक संख्या में बच्चे पैदा करेंगें और यदि कष्टों और विपदाओं का नियंत्रण न हो तो अल्पावधि में जनसंख्या दोगुनी हो जाएगी।

जीवन निर्वाह क्षमता (खाद्यान) वृद्धि दर

जनसंख्या वृद्धि की तुलना में जीवन निर्वाह क्षमता (खाद्यान) की वृद्धि दर साधारण समांतर/अंकगणितीय गति से बढ़ती है। जैसे (1,2,3,4,5……..) यह वृद्धि 25 वर्षो में दोगुनी और 200 वर्षो में 9 गुनी होगी।

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत।

जनसंख्या एवं जीवन निर्वाह क्षमता में असंतुलन

माल्थस महोदय ने ज्यामितीय गति से जनसंख्या वृद्धि तथा जीवन निर्वाह क्षमता में सधारण अंकगणितीय गति से वृद्धि होने से किसी क्षेत्र में 200 वर्षो में वहां की जनसंख्या 256 हो जाएगी जबकि जीवन निर्वाह क्षमता(खाद्यान/भरण पोषण) में मात्र 9 गुनी वृद्धि होगी।

जिससे जनसंख्या और जीवन निर्वाह क्षमता में काफी असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा। असंतुलन के कारण कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाएगी जैसे: बेरोजगारी, निर्धनता, भूखमरी, अकाल, युद्ध इत्यादि।

समाज धनी एवं निर्धन दो वर्गो में विभाजित हो जयेगा एवं पूंजीवादी व्यवस्था का जन्म होगा।धनी वर्ग लाभ अर्जित करेंगें परन्तु वह अपनी जनसंख्या में वृद्धि नहीं करेगें।

जबकि गरीब की पूंजी उनके संताने होगी जिसके कारण इस वर्ग में जनसंख्या अधिक पाई जाएगी और संताने अधिक होने से गरीबी बरकरार रहेगी।

धनी वर्ग अधिक धनी होते जयेगें और गरीब वर्ग और अधिक गरीब।

असंतुलन समाप्ति के लिए प्रतिबंध

माल्थस महोदय ने संसाधन और जनसंख्या में असंतुलन के पीछे मुख्य कारण जनसंख्या के ज्यामितीय गति से जनसंख्या वृद्धि को बतलाया है उन्होंने इस असंतुलन को समाप्त करने के लिए उपाय भी सुझाएँ है जो दो प्रकार के है

1. नैसर्गिक (प्राकृतिक)प्रतिबंध (Positive Checks/Natural Checks)

इनके अनुसार जब जनसंख्या अधिक हो जाएगी और संसाधन सीमित हो जाएंगे तो प्रकृति स्वयं इसको प्राकृतिक प्रकोप, अकाल, भूखमरी, बढ़, महामारी, युद्ध, निर्धनता आदि की सहायता से नियंत्रित करेगी लेकिन यह क्रम चलता रहेगा क्योकि मानव की प्रजनन शक्ति की स्वभाविक प्रवृति के कारण जनसंख्या पुनः खाद्य समाग्री से अधिक हो जाएगी यह प्रक्रिया लगातार चलता रहेगा। प्रकृति द्वारा जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण को ही नैसर्गिक प्रतिबंध या उपाय कहा जाता है।

2. निवारक प्रतिबंध (Priventive Checks)

निवारक प्रतिबंध वैसे उपाय को कहा जाता है जिसे मानव स्वयं अपनाकर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित कर सकता है। माल्थस के अनुसार नैसर्गिक प्रतिबंध अधिक कष्टदायक होते है। अतः इनसे बचने के लिए निवारक प्रतिबंध जैसे: संयमित जीवन, विवाह न करना, देरी से विवाह करना आदि को अपनाकर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है।

आलोचनाएँ

  • काम वासना को संतान की कामना के साथ नहीं मिलाया जा सकता है ,क्योकि काम वासना एक जैविक आवश्यकता है,जबकि संतनोत्तपत्ति एक सामाजिक आवश्यकता है।
  • जनसंख्या वृद्धि ज्यामितीय दर से नहीं होती है और न ही संसाधन गणितीय दर से बढ़ती है। जनसंख्या वृद्धि के क्षेत्रीय स्वरूप में भी अत्यधिक विविधता पाई जाती है तथा यह वृद्धि भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारको आदि से प्रभावित होती है।
  • माल्थस ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन हेतु कृत्रिम उपायो को ध्यान में नहीं रखा है।
  • जनसंख्या आधिक्य एवं प्राकृतिक नियंत्रण के बीच सकारात्मक संबंध नहीं पाया जाता है। कम जनसंख्या वाले क्षेत्रो में भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित होते रहती है।
  • माल्थस ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी परिवर्तन तथा उसके फ़लस्वरुप सामाजिक एवं आर्थक ढांचे में होने वाली परिवर्तन पर ध्यान नहीं दिया है।

सिद्धांत की व्यवहारिकता

वर्तमान समय में माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की व्यवहारिकता क्या है। इसको निम्न विन्दुओ के सहयोग से समझा जा सकता है

  • इनका सिद्धांत अल्पविकसित देशो में लागु होता है किन्तु विकसित देशो में यह सिद्धांत लागु नहीं होता है। विभिन्न अर्थशास्त्रियो द्वारा इसकी सत्यता की पुष्टि की गई है।
  • जनसंख्या के लिए खाद्यान सामग्री की आवश्यकता होती है।
  • विभिन्न देशो में नैसर्गिक निवारक प्रतिबंध जैसे: महामारी, गरीबी, युद्ध आदि वर्तमान समय में लागु होते है।
  • वर्तमान समय में भी अगर निवारक उपयो को नहीं अपनाया जाता तो जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है।

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत एवं भारत

भारत में माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत 1921 ई० तक पूर्ण रूप से लागु होता था कियोकि उस समय भारत में जनसंख्या और खाद्यान में असंतुलन के कारण नैसर्गिक तरीके जैसे अकाल, महामारी, गरीबी इत्यादि के कारण जनसंख्या नियंत्रित हुई थी।

किन्तु हरित क्रांति के पश्चात खाद्यान उत्पादन में आत्म निर्भर होने के कारण खाद्यान आपूर्ति पूर्ण हो गई। फिर भी वर्तमान समय में भी माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के कुछ नियम अभी भी लागु है जैसे :-

  • जनसंख्या और खाद्यान सामग्री में असंतुलन जिसके कारण खाद्य समाग्री का मूल्य वृद्धि हो रही है।
  • नैसर्गिक प्रतिबंध जैसे बाढ़, सूखा, गरीबी, भूखमरी, महामारी इत्यादि के कारण लाखो लोगो की जान प्रति वर्ष जाते रहती है।
  • सरकार द्वारा भी वर्तमान समय में निवारण प्रतिबंधो को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जैसे: विवाह देरी से करना, हम दो हमारे दो पर जोर देना इत्यादि।
  • भारत के लोगो का निम्न जीवन स्तर, गरीब और अमीर के दो वर्ग, जीवन प्रत्यासा निम्न, जीवन सम्भब्यता निम्न, प्रति व्यक्ति निम्न आय इत्यादि।
  • भारत में हमेशा यह भय भी बना रहता है कि जनसंख्या तीव्र गति से और न बढ़ जाय जिसके लिए सरकार परिवार नियोजन के उपायों को बढ़ावा दे रही है।

निष्कर्ष

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत कि आलोचना के बावजूद आज भी विश्व के विभिन्न भागो में यह प्रसांगिक है। माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत, जनसंख्या सिद्धांत में बड़ा योगदान है।

उन्होंने जीवन निर्वाह और संसाधनों के संतुलन पर बल दिया है। इसकी सत्यता के कारण आज भी लोग जनसंख्या नियंत्रण के कृत्रिम साधनो का प्रयोग कर रहे है। ताकि जनसंख्या जीवन निर्वाह सीमा से उच्च न हो सके।

माल्थस के कारण ही जनसंख्या का अध्ययन सामाजिक विज्ञानो के अध्ययन की परिधि में आया इससे नई जागृति आई और जनसंख्या वृद्धि मानव कल्याण के संदर्भ में सोची जाने लगी।

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